होम / 'दो दोस्तों' के साथ मिलकर डॉलर का बुरा हाल करेंगे पीएम मोदी, निकाली जाएगी नई करेंसी! लिक हुआ प्लान, अमेरिका के छूटे पसीने

'दो दोस्तों' के साथ मिलकर डॉलर का बुरा हाल करेंगे पीएम मोदी, निकाली जाएगी नई करेंसी! लिक हुआ प्लान, अमेरिका के छूटे पसीने

Subham Srivastava • LAST UPDATED : October 25, 2024, 9:29 am IST

India News (इंडिया न्यूज), Putin Unveil BRICS Currency Note : रूस के कज़ान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 2024 में कई बड़े फैसले लिए गए हैं। इनमें से एक फैसला व्यापार में अमेरिकी डॉलर का विकल्प तलाशना भी शामिल है। शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने नई ब्रिक्स मुद्रा जारी की है। ब्रिक्स मुद्रा जारी करने के पीछे का उद्देश्य अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना है। इसके अलावा डी-डॉलराइजेशन के विचार को भी आगे बढ़ाना है। अब इस मुद्रा को लेकर सोशल मीडिया पर नई बहस शुरू हो गई है। यह भी सामने आ रहा है कि ब्रिक्स मुद्रा पर भारत के ताजमहल की तस्वीर होगी! इसके अलावा इस बात को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या ब्रिक्स देशों ने इस मुद्रा को अपनी सहमति दी है या नहीं?

मुद्रा पर ताजमहल को लेकर भारत में विवाद बढ़ा

समिट में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा दिखाए गए नोट को लेकर भारत में विवाद छिड़ गया है। सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे हैं कि क्या इस नोट पर ताजमहल की जगह अयोध्या के राम मंदिर, अशोक चक्र या ओडिशा के “कोणार्क मंदिर” की तस्वीर नहीं होनी चाहिए और क्या इस नोट पर ताजमहल को दिखाना भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का अपमान नहीं है? लोगों का मानना ​​है कि ताजमहल एक मकबरा है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक कभी नहीं हो सकता?

अभी उपलब्ध जानकारी के अनुसार, नोट को केवल प्रतीकात्मक माना गया है, जिसका मतलब है कि न तो ब्रिक्स देशों ने इस नोट को स्वीकार किया है और न ही ब्रिक्स देशों के अंतिम करेंसी नोट पर ताजमहल की तस्वीर होगी?

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डी-डॉलराइजेशन का क्या मतलब है?

अगर भारत सऊदी अरब से कच्चा तेल खरीदता है, तो वह अमेरिकी डॉलर में भुगतान करता है। जबकि भारत की अपनी मुद्रा रुपया है और सऊदी अरब की अपनी मुद्रा सऊदी रियाल है। दुनिया के ज़्यादातर देश अमेरिकी मुद्रा में व्यापार करते हैं। इसकी शुरुआत 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई थी। उस समय अमेरिकी मुद्रा स्थिर थी और इसे देखते हुए लगभग सभी देशों ने निर्णय लिया कि अब से वे एक दूसरे के साथ अमेरिकी डॉलर में व्यापार करेंगे।

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