India News (इंडिया न्यूज), Russia Ukraine War: अमेरिका और यूरोप के उकसावे पर यूक्रेन युद्ध की दहलीज पर पहुंच गया, लेकिन रूस से युद्ध लड़ने का फैसला उसका अपना था। यूक्रेन जानता था कि वह रूस के सामने टिक नहीं पाएगा, फिर भी उसने यह आत्मघाती कदम क्यों उठाया? आप यकीन नहीं करेंगे, लेकिन इसके पीछे एक यूक्रेनी टीवी शो है, जिसने दो सगे भाइयों (रूस और यूक्रेन) को एक-दूसरे का जानी दुश्मन बना दिया। दरअसल हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, यूक्रेन में साल 2015 में एक टीवी सीरियल रिलीज हुआ था, जिसका नाम है, ‘सर्वेंट ऑफ द पीपल’ जो बताता है कि एक आदर्श राष्ट्रपति कैसा होना चाहिए। यह सीरीज इतनी मशहूर हुई कि 2016 में इसके कॉमेडी एक्टर ने इसी नाम से एक राजनीतिक पार्टी बनाई और चुनाव मैदान में उतर गया। 

यूरोप के जाल में फंस गया यूक्रेन

कमाल की बात यह है कि, कॉमेडी एक्टर ने राष्ट्रपति चुनाव जीतकर शीर्ष पद पर कब्जा कर लिया। वह कॉमेडी एक्टर कोई और नहीं बल्कि वोलोडोमर जेलेंस्की है। सत्ता में आते ही उसने नाटो में शामिल होने की बात शुरू कर दी, जबकि रूस के साथ सीमा विवाद के कारण वह इसका हिस्सा बनने के योग्य भी नहीं था। वोलोडोमर जेलेंस्की यूरोप के जाल में फंस गया और उसने यूक्रेन को युद्ध में धकेल दिया। आज यूक्रेन युद्ध की आग में जल रहा है, लेकिन रूस इस युद्ध से अमीर हो गया है। ‘गेसेटफैक्टफ्लाई फैक्ट’ के मुताबिक रूस ने यूक्रेन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर रखा है। उसने तेल और खाद्य पदार्थों पर नियंत्रण कर यूरोप को अपने सामने झुकने पर मजबूर कर दिया

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इस तरह रूस से अलग हुआ यूक्रेन

1991 में यूएसएसआर के विघटन के बाद यूक्रेन रूस से अलग हो गया, लेकिन वहां रूसी भाषी लोगों की संख्या बहुत ज्यादा थी, जिनका झुकाव हमेशा रूस की तरफ रहा। दोनों के बीच दोस्ती जारी रही, लेकिन समय के साथ यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से में रूस का प्रभाव कम होता गया और पश्चिमी देशों का प्रभाव बढ़ने लगा। लेकिन पूर्वी हिस्से में रूस का प्रभाव बना रहा।

हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, रूस और यूक्रेन के रिश्ते 2014 तक अच्छे थे, लेकिन जब यूरोपीय संघ ने यूक्रेन को ‘मुक्त व्यापार समझौते’ पर हस्ताक्षर करने के लिए आमंत्रित किया, तो उसके राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने न सिर्फ समझौते से इनकार कर दिया, बल्कि यूरेशियन आर्थिक संघ में शामिल हो गए, जो यूएसएसआर से अलग हुए देशों का एक व्यापारिक समूह है। कहा जाता है कि इस कदम की वजह से यूरोपीय संघ यूक्रेन से नाराज हो गया और उसे बरगलाने की कोशिश करने लगा, जिसमें वह सफल भी रहा।

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