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किस डर से Putin को ठुकरा रहे हैं ये दो ताकतवर देश? Brics से सामने आया भयंकर ड्रामा, जानें क्या है अंदर की बात

Subham Srivastava • LAST UPDATED : October 23, 2024, 11:06 am IST

India News (इंडिया न्यूज), Suspense On Saudi Arabia Participation In Brics : इस बार 16वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन रूस के कज़ान में हो रहा है। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पीएम मोदी कज़ान पहुंच चुके हैं। इसके अलावा चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग समेत दो दर्जन विश्व नेता बैठक में हिस्सा लेंगे। रूस में हो रहे इस कार्यक्रम में सऊदी अरब को लेकर काफी चर्चा हो रही है। भारत, चीन और रूस सभी इस समय सऊदी अरब के फैसले पर नजर रखे हुए हैं। दरअसल, सऊदी अरब को 2023 में ब्रिक्स में शामिल होने का न्योता दिया गया था, लेकिन सऊदी अरब ने अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। सऊदी अरब की ब्रिक्स में सदस्यता फरवरी 2024 से शुरू होनी थी। लेकिन आखिरी वक्त में उसने फिलहाल समूह में शामिल होने से इनकार कर दिया है।

ब्रिक्स में शामिल होने पर कर रहा विचार

इससे पहले फरवरी में अमेरिका और रूस-चीन गठबंधन के बीच तनाव के बीच सऊदी मंत्री फैसल इब्राहिम ने भी कहा था कि उनका देश अभी समूह में शामिल नहीं हुआ है। फर्स्टपोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल फरवरी में सऊदी अरब के एक आधिकारिक सूत्र ने रॉयटर्स को बताया था कि सऊदी अरब अभी भी ब्रिक्स का सदस्य बनने पर विचार कर रहा है। इसके पीछे क्या कारण है

ब्रिक्स के मूल सदस्य ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका हैं। सऊदी को 2023 में इसमें शामिल होने का न्योता दिया गया था, लेकिन अब तक सऊदी ने इसमें शामिल होने को लेकर सस्पेंस बनाए रखा है। कज़ान में 16वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन भी शुरू हो चुका है। सऊदी के ब्रिक्स में शामिल होने के पीछे फिलहाल अमेरिका को भी वजह बताया जा रहा है। दरअसल, अमेरिका सऊदी अरब का प्रमुख सहयोगी रहा है, इसलिए वह अमेरिका और ‘पश्चिमी विरोधियों’ (रूस और चीन) के साथ बढ़ते जुड़ाव को लेकर भी सशंकित है।

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अर्जेंटीना ने किया है पहले ये काम

सऊदी के ब्रिक्स में शामिल होने को लेकर सस्पेंस बना हुआ है। इससे पहले अर्जेंटीना ने भी कुछ ऐसा ही किया था। दक्षिण अफ्रीका में हुए शिखर सम्मेलन में अर्जेंटीना को समूह में शामिल होने की मंजूरी दी गई थी। लेकिन बाद में अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर मेलेई ने ब्रिक्स में शामिल होने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह कम्युनिस्टों के साथ नहीं जाएंगे। लेकिन असलियत में ब्रिक्स को पश्चिम को कमजोर करने के एजेंडे के तौर पर देखा जाता रहा है। इसलिए सऊदी अरब जैसे देशों को इसमें शामिल होने से पहले बहुत सोच-समझकर फैसला लेना होगा।

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