India News (इंडिया न्यूज), Siege of Mecca 1979: दुनिया भर से लाखों मुसलमान हज यात्रा के लिए सऊदी अरब जाते हैं। वर्ष 1979 में इस पवित्र तीर्थयात्रा के बाद यहां एक ऐसा हमला हुआ जिसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। खुद को ईश्वर का भेजा मसीहा बताकर 200 से अधिक आतंकवादियों ने मक्का की मस्जिद अल-हरम में घुसकर हजारों नमाजियों को बंधक बना लिया था। इस हमले को सऊदी के आधुनिक इतिहास का सबसे बड़ा हमला माना जाता है।
20 नवंबर 1979 वह दिन था जब मक्का मुकर्रमा और मदीना मुनव्वरा में हज की सभी रस्में पूरी हो चुकी थीं और बहुत से लोग अपने-अपने देश लौट चुके थे। इसके बावजूद काबा में करीब एक लाख लोग मौजूद थे क्योंकि यह साल का पहला दिन यानी मुहर्रम था। ये लोग उम्मीद कर रहे थे कि बादशाह अरब शाह खालिद काबा आएंगे और सदी की पहली फज्र की नमाज में हिस्सा लेंगे। हमलावरों ने नमाजियों को घेर लिया
मक्का की मस्जिद अल-हरम में सुबह की नमाज (फज्र) (5:15) के समय लोग नमाज अदा करके बैठे ही थे कि सफेद कपड़े पहने और हथियारबंद हमलावरों ने नमाजियों को घेर लिया। उन्होंने माइक लिया और अपने लोगों को पोजीशन लेने का आदेश देना शुरू कर दिया। वे अरबी भाषा में बोल रहे थे। मस्जिद अल-हरम में चींटी को भी मारना अपराध है, वहां तैनात सुरक्षाकर्मी कभी हथियार नहीं रखते। ऐसे में बड़ा सवाल यह था कि इन लोगों के पास हथियार कहां से आए। वे पहले से ही मस्जिद में मौजूद थे और उनके हथियार वहां ताबूतों में रखे हुए थे। सुरक्षा बलों की आंखों में धूल झोंककर उन्हें जनाजे की शक्ल में अंदर लाया गया।
मस्जिद अल-हरम में जैसे ही नमाज खत्म हुई और लोगों ने सलाम किया, लोगों के कानों में गोलियों की आवाज आने लगी। इससे हरम शरीफ में बेखौफ घूम रहे पक्षी भी फड़फड़ाने लगे और हथियारबंद लोग इधर-उधर पोजीशन लेने लगे। इसी बीच मस्जिद के माइक से घोषणा हुई कि इमाम मेहंदी आ चुके हैं और अब इस जुल्म और नाइंसाफी से भरी दुनिया में इंसाफ होगा। माइक के पास खड़े शख्स जिसका नाम जुहा मान अल ताबी था, ने नमाजियों में से एक की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह इमाम मेहंदी हैं। जिस शख्स को इमाम मेहंदी बताया गया, उसका असली नाम मोहम्मद अब्दुल्ला अल कहतानी था।
जब डर से भरे करीब 1 लाख लोग मस्जिदुल हराम से बाहर निकलने के लिए दरवाजों की ओर भागे तो पाया कि दरवाजे पहले से ही लोहे की जंजीरों से बंद कर दिए गए थे। इसके बाद हथियारों से लैस 45 वर्षीय शख्स हैमन अल ताबी फिर से खान-ए-काबा के इमाम के माइक पर पहुंचता है और धमकी देता है कि अगर किसी ने कुछ गलत किया तो उसे मार दिया जाएगा।
वहां मौजूद एक लाख लोगों में से ज्यादातर लोग अरबी नहीं जानते थे, इसलिए आतंकियों ने भारत और पाकिस्तान के नागरिकों को अलग कर दिया। उनमें से उन्होंने एक ऐसे शख्स को उठा लिया जो अरबी, हिंदी और उर्दू जानता था। उनके पास दूसरे देशों के लोगों को अंग्रेजी में संदेश देने वाले लोग थे। इस हमले का नेतृत्व जुहेमान अल ओतैबी ने किया था, जो पहले सेना में काम कर चुके थे और इस्लामी शिक्षा देने वाले छात्रों के एक समूह के नेता थे।
अफरातफरी की खबर फैलते ही मस्जिद परिसर में तैनात पुलिसकर्मी वहां पहुंच गए। मस्जिद पर हमला हुआ। उस समय सऊदी खुफिया विभाग के प्रमुख प्रिंस तुर्की अरब लीग में हिस्सा लेने के लिए क्राउन प्रिंस फहद के साथ ट्यूनीशिया गए हुए थे। इसके अलावा सऊदी नेशनल गार्ड्स के प्रमुख प्रिंस अब्दुल्ला भी मोरक्को में थे। इस हमले की जानकारी मिलने के बाद ऑपरेशन की तैयारियां शुरू कर दी गईं।
इस ऑपरेशन में सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि मस्जिद में कोई बड़ा सैन्य हमला नहीं किया जा सकता था, क्योंकि यह मस्जिद इस्लाम के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है और यहां काबा भी मौजूद है। सऊदी सेना ने सैन्य अभियान शुरू करने के लिए धार्मिक नेताओं से अनुमति मांगी। अनुमति मिलने के बाद सऊदी सेना मस्जिद परिसर की ओर बढ़ने लगी। कमज़ोर हथियारों से लैस होने और परिसर के अंदर सीमित कार्रवाई कर पाने के कारण सेना अपने मिशन में सफल नहीं हो पाई। एक सप्ताह बीत गया और हमलावर अभी भी अंदर ही थे।
इसके बाद सऊदी अरब सरकार ने पाकिस्तान और फ्रांस से मदद मांगी, जिसके बाद दोनों देशों की सेनाएं सऊदी के लिए रवाना हो गईं। विदेशी मदद मिलने के बाद सऊदी सेना की स्थिति मजबूत हो गई। करीब दो सप्ताह तक चले ऑपरेशन के बाद मस्जिद का एक हिस्सा सऊदी सेना के कब्जे में और एक हिस्सा हमलावरों के कब्जे में रह गया। कुछ हमलावरों ने मस्जिद के भूमिगत इलाके में शरण ले ली। हमलावरों को बाहर निकालने के लिए सुरक्षा बलों ने धुआं बम फेंके, जिससे उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी और हमलावरों ने आत्मसमर्पण कर दिया।
14 दिनों तक चले इस ऑपरेशन के बाद करीब 137 हमलावर मारे गए और 63 को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के एक महीने बाद 63 हमलावरों को सरेआम फांसी दे दी गई। ईरान ने इस हमले के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया और पूरी दुनिया में मुसलमानों ने इस हमले का विरोध किया। पाकिस्तान के इस्लामाबाद में गुस्साई भीड़ ने अमेरिकी दूतावास को आग के हवाले कर दिया।
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