India News (इंडिया न्यूज),Syria War: पिछले एक साल से भी ज़्यादा समय से मध्य पूर्व भीषण युद्ध की आग में जल रहा है। एक साल से यह लड़ाई गाजा, वेस्ट बैंक और इजराइल में चल रही थी। एक साल के अंदर ही यह लड़ाई लेबनान और ईरान तक पहुंच गई। अब इन सबके बीच सीरिया के विद्रोही समूहों ने अचानक हमला करके असद सरकार को उखाड़ फेंका है। 27 नवंबर को शुरू हुई इस लड़ाई ने असद की सेना को महज़ दस दिनों के अंदर भागने पर मजबूर कर दिया।सीरिया पर इतनी जल्दी कब्ज़ा करना कोई आसान काम नहीं है, इस लड़ाई में कई कारकों ने विद्रोही समूहों का साथ दिया है। वहीं गाजा, लेबनान और ईरान का इजराइल से उलझना और रूस का यूक्रेन से युद्ध भी अहम कारक साबित हुए हैं।
यह पहली बार नहीं है जब विद्रोही समूहों ने सीरिया के बड़े शहरों पर कब्ज़ा किया हो। इससे पहले भी अलेप्पो, इदलिब आदि शहरों पर विद्रोहियों का कब्ज़ा हो चुका है। जिसे 2016 में हिज़्बुल्लाह और रूस की मदद से सीरियाई सेना ने पीछे धकेल दिया था। 2016 में भारी बमबारी और लड़ाई के बाद असद सरकार सीरिया के 65 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्से पर कब्ज़ा करने में सफल रही. बाकी इलाके कुर्द, ISIS, हयात तहरीर अल-शाम जैसे संगठनों के हाथों में थे। इजरायल द्वारा लेबनान पर हमला करने के बाद हिजबुल्लाह ने सीरिया में मौजूद अपने लड़ाकों को बड़ी संख्या में लेबनान वापस बुला लिया। साथ ही ईरान के इजरायल से उलझने के बाद उसने भी सीरिया में अपनी मौजूदगी कम कर दी। जिसके बाद सीरिया की सुरक्षा का पूरा भार सीरियाई अरब सेना पर आ गया. जिसका फ़ायदा उठाते हुए विद्रोहियों ने तुर्की और अमेरिका की मदद से 27 नवंबर को अचानक हमला शुरू कर दिया।
यूक्रेन युद्ध से भी फ़ायदा सीरियाई विद्रोहियों को सिर्फ़ गाजा युद्ध से ही नहीं बल्कि अपनी ज़मीन से हज़ारों किलोमीटर दूर चल रहे यूक्रेन युद्ध से भी फ़ायदा मिला. बताया जाता है कि यूक्रेन के साथ लड़ाई का दायरा बढ़ने के बाद रूस ने भी सीरिया से अपने सैनिकों की मौजूदगी कम कर दी. दावा यह भी किया जा रहा है कि विद्रोही लड़ाकों को यूक्रेनी अधिकारियों ने ट्रेनिंग और ड्रोन मुहैया कराए थे. इन सभी कारणों से सीरियाई सेना कमजोर हो गई जिसका सीधा फायदा विद्रोही समूहों को मिला और उन्होंने नया हमला कर बशर अल-असद की सरकार को उखाड़ फेंका। तो ये कहा जा सकता है कि अगर पुतिन यूक्रेन युद्ध शुरु नहीं किए होते तो सीरीया का हाल कुछ और होता।
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