India News (इंडिया न्यूज),Switzerland burqa ban:स्विट्जरलैंड में बुधवार यानी 1 जनवरी 2025 से बुर्का बैन लागू हो गया है। इस नए कानून के तहत सार्वजनिक जगहों पर चेहरा ढकना प्रतिबंधित होगा, वहीं इस नियम का उल्लंघन करने पर एक हजार स्विस फ्रैंक (करीब 96 हजार रुपये) तक का जुर्माना लग सकता है। स्विट्जरलैंड में 2021 में हुए जनमत संग्रह में पारित इस प्रतिबंध की मुस्लिम संगठनों ने आलोचना की थी।खास बात यह है कि बुर्का पर प्रतिबंध का प्रावधान उसी समूह ने पेश किया था जिसने 2009 में देश में नई मीनारों के निर्माण पर रोक लगाई थी।
बुर्का बैन को लेकर हुआ था जनमत संग्रह 2021 में हुए जनमत संग्रह के दौरान स्विट्जरलैंड की 51.21 फीसदी जनता ने इस प्रतिबंध के समर्थन में वोट दिया था। दक्षिणपंथी स्विस पीपुल्स पार्टी ने देश में बुर्का बैन का प्रस्ताव रखते हुए तर्क दिया था कि इससे देश के सांस्कृतिक मूल्यों और सार्वजनिक सुरक्षा की रक्षा होगी। इसके बाद साल 2022 में देश की नेशनल काउंसिल ने इस कानून को मंजूरी दे दी थी। जिसके अनुसार, सार्वजनिक स्थानों, कार्यालयों, दुकानों और रेस्तरां में महिलाओं को अपना चेहरा पूरी तरह से ढकने पर प्रतिबंध रहेगा।
रॉयटर्स के अनुसार, स्विस सरकार ने बुर्का प्रतिबंध के बारे में स्पष्ट किया है कि चेहरा ढकने पर प्रतिबंध हवाई जहाज या राजनयिक और वाणिज्य दूतावास परिसर में लागू नहीं होगा। इसके अलावा, धार्मिक स्थलों और अन्य पवित्र स्थानों पर भी व्यक्ति को चेहरा ढकने की अनुमति होगी।सरकार ने यह भी कहा है कि स्वास्थ्य और सुरक्षा कारणों, पारंपरिक रीति-रिवाजों या मौसम की स्थिति के कारण चेहरा ढकने की अनुमति दी जाएगी। उन्हें कलात्मक या मनोरंजन के साथ-साथ विज्ञापन उद्देश्यों के लिए भी यह मंजूरी दी जाएगी।
सितंबर 2022 में, स्विट्जरलैंड की संसद के निचले सदन ने कुछ मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले बुर्का जैसे चेहरे को ढकने वाले कपड़े पर प्रतिबंध लगाने के लिए मतदान किया। राष्ट्रीय परिषद ने इस कानून को 29 मतों के मुकाबले 151 मतों से मंजूरी दी। दक्षिणपंथी स्विस पीपुल्स पार्टी ने कई मुस्लिम संगठनों की आपत्तियों के बावजूद इस कानून को आगे बढ़ाया था।
स्विटजरलैंड ऐसा करने वाला पहला देश नहीं है, बल्कि यूरोप के बेल्जियम, डेनमार्क और फ्रांस जैसे देश भी इसी तरह के प्रतिबंध लागू कर चुके हैं। हालांकि, इन यूरोपीय देशों में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि सार्वजनिक सुरक्षा के नाम पर बनाए गए इन कानूनों के जरिए मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है।
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