India News (इंडिया न्यूज),Syria Bashar al Assad:सीरिया में करीब 5 दशक से असद परिवार के चल रहे शासन का अंत हो चुका है। हयात तहरीर अल-शाम सीरियाई विद्रोही संगठन (HTS) ने सीरिया पर कब्जा कर लिया है। जिसकी वजह से बशर अल-असाद को देश छोड़ कर रुस भागना पड़ा। अब सीरिया के लोगों को आने वाले नए सरकार से कई उम्मीदें हैं और ये सरकार सीरियाई लोगों के उम्मीदें पर कितनी खरी उतरती है ये आने वालो दिनों में ही पता चलेगा।
बता दें सीरिया में दो दशक से ज्यादा समय तक शासन करने वाले बशर अल-असद भी जब 2000 में पिता की मौत के बाद वह सीरिया के राष्ट्रपति बने तो लोगों से उनसे काफी उम्मीदें थी। क्योंकि वह पेशे से एक डॉक्टर थे उन्होंने लंदन के वेस्टर्न आई हॉस्पिटल से ऑप्थैल्मोलॉजी की पढ़ाई की है। उनका राजनिती में आने का कोई प्लान नहीं था लेकिन 1994 में हुए एक कार एक्सीटेंड में बड़े भाई की मौत के बाद उन्हें मजबूरन सियासत में कदम रखना पड़ा। लोगों को लगा कि पश्चिम से मेडिकल पढ़ कर आया एक इंसान देश का राष्ट्रपति बनेगा तो लोगों को काफी आजादी मिलेगी। लोगों ने बशर अल-असद से कई उम्मीदें लगाई थी लेकिन हुआ इसके बिल्कुल उलट असद का शासन अपने पिता के शासन से भी ज्यादा कठोर साबित हुआ।
सीरिया के लोगों को ब्रिटेन से पढ़ कर आए एक नौजवान से काफी उम्मीदें थी लेकिन देखते ही देखते यह पश्चिम से आया एक डॉक्टर डिक्टेटर बन गया। बशर अल-असाद की यही तानाशाही उनके पतन का कारण बनी। तीन देश जो बसर अल असाद को तानाशाह बनने में उनकी सहायता तो किए लेकिन पतन का कारण भी बने वो देश हैं लेबनाना, इरान और रुस।
2001 से ही बशर अल-असद पर सीरिया में विरोधियों के खिलाफ दमनकारी रवैया अपनाने का आरोप लगता रहा है। लेकिन इराक युद्ध के दौरान पश्चिमी देशों के साथ तनाव शुरू हो गया था। असद ने इराक पर अमेरिकी आक्रमण का विरोध किया था, उन्हें डर था कि अमेरिका का अगला निशाना सीरिया हो सकता है।इसके बाद 2005 में लेबनान के बेरूत में एक विस्फोट हुआ, इस हमले में पूर्व प्रधानमंत्री रफीक हरीरी को निशाना बनाया गया था। हरीरी सीरिया विरोधी थे, यही वजह है कि सीरिया की असद सरकार और लेबनान में उसके सहयोगियों पर उनकी हत्या का आरोप भी लगा। असद सरकार ने लेबनान में हिजबुल्लाह को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई और ईरान से आने वाले हथियारों की डिलीवरी के लिए सुरक्षित मार्ग मुहैया कराया। असद के नेतृत्व में सीरिया ईरान द्वारा बनाए गए ‘प्रतिरोध की धुरी’ का अहम घटक रहा है। 2006 में उन्होंने इजरायल के खिलाफ फिलिस्तीनियों और हिजबुल्लाह के संघर्ष का खुलकर समर्थन किया और यही वजह है कि असद सरकार हमेशा से अमेरिका की आंखों में खटकती रही है।
असद के अंत का दूसरा कारण ईरान है। बता दें ईरान एक शिया बहुल देश है और असद परिवार भी शिया इस्लाम को मानता है। यही वजह है कि बशर अल-असद के शासन के दौरान ईरान के साथ रिश्ते गहरे हुए। ईरान ने ‘प्रतिरोध की धुरी’ को मजबूत करने के लिए सीरिया को ‘सुरक्षित मार्ग’ के रूप में इस्तेमाल किया, ऐसे आरोप हैं कि ईरान इराक और सीरिया के जरिए हिजबुल्लाह को हथियार सप्लाई करता रहा है। इतना ही नहीं, ईरान ने सीरिया की धरती पर हिजबुल्लाह के लड़ाकों को ट्रेनिंग भी दी है। ईरान ने 2011 में सीरिया में शुरू हुए गृहयुद्ध के दौरान असद सरकार का समर्थन किया था। ईरान ने हथियारों, सैन्य सहायता और इराक में मौजूद शिया मिलिशिया के जरिए असद सरकार को सत्ता में बने रहने में मदद की थी। लेकिन पिछले महीने नवंबर में जब अचानक विद्रोह शुरू हुआ तो ईरान खुद कमजोर पड़ गया था। इजराइल के साथ युद्ध में उसके छद्म समूहों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है और वह खुद किसी युद्ध में शामिल होने की स्थिति में नहीं है। यही वजह है कि ईरान मदद का आश्वासन तो देता रहा लेकिन समय रहते असद सरकार को बचाने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठा पाया।
रूस सीरिया में असद सरकार का सबसे बड़ा सहयोगी है। गृहयुद्ध के दौरान रूसी हमलों में लाखों लोग मारे गए थे। बशर अल-असद ने 2015 में रूस से मदद मांगी और इसके बाद रूसी सेना ने विद्रोहियों के साथ-साथ सीरियाई लोगों पर कहर बरपाया। रूस को सैन्य सहायता के बदले सीरिया के दो रणनीतिक हिस्सों में नौसैनिक ठिकानों के लिए 49 साल का पट्टा मिला। इससे मध्य पूर्व में रूस की मजबूत उपस्थिति का पता चला। यही वजह है कि रूस ने असद सरकार को बचाने के लिए अलेप्पो शहर पर ताबड़तोड़ हमले किए। इन हमलों ने बशर अल-असद की छवि को काफी नुकसान पहुंचाया।
रूस खुद 2022 से यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में उलझा हुआ है, उसने सीरिया में अपने सैन्य ठिकानों से पहले ही महत्वपूर्ण लड़ाकू विमानों और रक्षा प्रणालियों को वापस बुला लिया था, ताकि उनका इस्तेमाल यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में किया जा सके। अब विद्रोहियों के अचानक हमले ने रूस को असद सरकार को कोई महत्वपूर्ण मदद देने का अवसर नहीं दिया। 8 दिसंबर को असद सरकार का तख्तापलट हो गया और उसे दमिश्क छोड़कर मॉस्को भागना पड़ा। रूस ने बशर अल-असद और उनके परिवार को राजनीतिक शरण दी है, लेकिन सीरिया में असद शासन के साथ ही मध्य पूर्व में रूस का प्रभाव भी खत्म हो गया है।
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