India News (इंडिया न्यूज), Tuvalu Country: हवाई और ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रशांत महासागर में एक खूबसूरत पोलिनेशियाई द्वीप देश है। यहां करीब 11 हजार लोग रहते हैं। यहां रहने वाले लोगों के पास ज्यादा समय नहीं है, क्योंकि उनका देश समुद्र में डूब रहा है। हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, यह देश 9 छोटे-छोटे द्वीपों से बना है। इसके मुख्य द्वीप का आकार एक संकरी पट्टी जैसा है, जिस पर आबादी बसी हुई है। इसका नाम तुवालु है। यह दुनिया का तीसरा सबसे कम आबादी वाला संप्रभु देश है। इसके कम आबादी वाले देशों मेंवेटिकन और नारू ही हैं।
हम आपको बतातें चलें कि, क्षेत्रफल की दृष्टि से तुवालु दुनिया का चौथा सबसे छोटा देश है, अगर हम इसके क्षेत्रफल की बात करें तो ये मात्र 26 वर्ग किमी है। वेटिकन सिटी (0.44 वर्ग किमी), मोनाको (1.95 वर्ग किमी) और नारू (21 वर्ग किमी) ही इससे छोटे हैं। जानकारी के अनुसार, यह द्वीप देश 19वीं सदी के अंत में यूनाइटेड किंगडम के प्रभाव में आ गया था। 1892 से 1916 तक यह ब्रिटिश संरक्षित राज्य था और 1916 से 1974 तक यह गिल्बर्ट और एलिस द्वीप कॉलोनी का हिस्सा था। 1974 में स्थानीय निवासियों ने एक अलग ब्रिटिश निर्भरता के रूप में रहने के लिए मतदान किया। फिर इसके बाद 1978 में तुवालु एक पूर्ण स्वतंत्र देश के रूप में राष्ट्रमंडल का हिस्सा बन गया।
तुवालु और इसके 11,000 लोग जो प्रशांत महासागर में फैले नौ एटोल पर रहते हैं। बताया जा रहा है कि, इन लोगों का वक्त खत्म होता जा रहा है। नासा के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2050 तक मुख्य फुनफुटी का आधा हिस्सा, जहां तुवालु की 60% आबादी रहती है, जलमग्न हो जाएगा। जहां एक शहर जमीन की एक संकरी पट्टी पर बसा हुआ है। यह देश समुद्र के बीच में आसमान की तरह बेहद खूबसूरत दिखता है। लेकिन यहाँ के लोगों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सबसे पहले यह समुद्र में डूब रहा है। दूसरी तरफ यहां पीने के पानी की समस्या है। तुवालुवासी सब्जियां उगाने के लिए वर्षा जल के टैंकों पर निर्भर हैं, क्योंकि खारे पानी ने भूजल को बर्बाद कर दिया है, जिससे फसलें प्रभावित हो रही हैं।
तुवालु समुद्र में डूबने से पहले समय खरीदने की कोशिश कर रहा है। फुनाफुटी पर बिगड़ते तूफानों से बचाने के लिए समुद्री दीवारें और अवरोध बनाए जा रहे हैं। तुवालु ने 17.3 एकड़ कृत्रिम भूमि बनाई है। इसके अलावा, यह और अधिक कृत्रिम भूमि बनाने की योजना बना रहा है, जिसके बारे में उसे उम्मीद है कि 2100 तक यह ज्वार से ऊपर रहेगी। ऑस्ट्रेलिया के साथ 2023 में घोषित एक ऐतिहासिक जलवायु और सुरक्षा संधि अगले साल से हर साल 280 तुवालुवासियों को ऑस्ट्रेलिया में प्रवास करने की अनुमति देगी।
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