India News (इंडिया न्यूज),Bangladesh: शेख हसीना के देश छोड़ के भागने और नई सरकार के बनने के बाद से लगातार भारत और बांग्लादेश के रिश्ते खराब हो रहे हैं। जिसकी एक वजह बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हिंसा भी है।बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से हिंदुओं समेत सभी अल्पसंख्यक समुदाय निशाने पर हैं। इसलिए भारत के सैकड़ों प्रतिष्ठित लोगों ने बांग्लादेश के लोगों के नाम एक खुला पत्र लिखा है।
बांग्लादेश उच्चायोग को सौंपा गया पत्र
भारत के 19 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, 139 सेवानिवृत्त नौकरशाहों, 300 कुलपतियों, 192 सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों और नागरिक समाज के 35 लोगों समेत 685 हस्ताक्षरकर्ताओं ने पत्र के जरिए बांग्लादेश के लोगों से देश में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता बहाल करने की दिशा में काम करने की अपील की है। यह पत्र सोमवार सुबह नई दिल्ली स्थित बांग्लादेश उच्चायोग को सौंपा गया।
भारतीय समुदाय की ओर से लिखे गए इस पत्र में कहा गया है, ‘हमें उम्मीद है कि इससे भारत और बांग्लादेश दोनों देशों के लोगों को शांति, मित्रता और आपसी समझौते की दिशा में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।’ बांग्लादेश में बिगड़ते हालात को भारत के लोग बढ़ती चिंता के साथ देख रहे हैं। बांग्लादेश में अराजक हालात का खामियाजा 1.5 करोड़ अल्पसंख्यक समुदाय, खास तौर पर हिंदू, बौद्ध, ईसाई, शिया, अहमदिया और अन्य को भुगतना पड़ रहा है।
डर का माहौल बनाना है इस्लामिक ताकतों का एजेंडा
बांग्लादेश में इस्लामिक ताकतों का एजेंडा डर का माहौल बनाना है, ताकि धार्मिक अल्पसंख्यक आबादी को बांग्लादेश छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सके। बांग्लादेश में रहने वाले हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय इस्लामिक समूहों के इन प्रयासों का कड़ा विरोध कर रहे हैं। वे बांग्लादेश के नागरिक के तौर पर सुरक्षा की मांग कर रहे हैं, जैसा कि देश के संविधान में उन्हें वादा किया गया है।
चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी का जिक्र
इस्कॉन के प्रमुख चेहरे चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए पत्र में कहा गया है, ‘चिन्मय कृष्ण दास को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया और बिना सुनवाई के जमानत देने से इनकार कर दिया गया। साथ ही, उनके वकील को संगठित तरीके से धमकाया जा रहा है। उन्हें स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई का मौका भी नहीं दिया गया।’
‘1971 के युद्ध में भारत ने बांग्लादेश का पूरा साथ दिया’
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों ने भारत में गहरी चिंता पैदा कर दी है। दोनों देशों की सीमा लंबी है, इसलिए बांग्लादेश में अस्थिर हालात सीमा पार भी फैल सकते हैं, इससे सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ेगा और भारत में कानून-व्यवस्था का गंभीर संकट पैदा हो सकता है।
पत्र में कहा गया है कि बांग्लादेश की आजादी में भारतीय सैनिकों ने कंधे से कंधा मिलाकर योगदान दिया, 1971 के युद्ध में भारत ने बांग्लादेश का पूरा साथ दिया, इतना ही नहीं, उस दौरान भारत ने बिना किसी बाहरी मदद के करीब एक करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थियों को शरण दी।
धर्मनिरपेक्षता की बहाली की मांग
बांग्लादेश की आजादी के बाद 1972 में अपनाए गए संविधान के 4 प्रमुख स्तंभ हैं- लोकतंत्र, राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय। इसलिए हम भारत के लोग बांग्लादेश के लोगों और संस्थाओं से अपील करते हैं कि वे अपने देश में हिंदुओं और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा समेत लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की बहाली की दिशा में कदम उठाएं।
भारतीय समुदाय के लोगों की ओर से लिखे गए इस पत्र में कहा गया है कि बांग्लादेश इस समय जिस संकट से जूझ रहा है, उसका समाधान स्वतंत्र, निष्पक्ष और समावेशी चुनावों से ही हो सकता है। हम अल्पसंख्यकों, उनकी संपत्ति, कारोबार पर हमलों और उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर करने के प्रयासों पर तत्काल रोक लगाने की मांग करते हैं। बांग्लादेश में ऐसी स्थितियां भारतीय लोगों के लिए असहनीय और अस्वीकार्य हैं।
इन लोगों को भूलकर भी नहीं पहनना चाहिए रुद्राक्ष, शिव जी का ऐसा प्रकोप दिखाता है कि…?