इंडिया न्यूज, नई दिल्ली: चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने वाले छोटे और विकासशील देशों में आर्थिक मंदी का खतरा मंडरा रहा है। श्रीलंका की हालत किसी से छुपी नहीं हुई। आर्थिक मंदी के चलते वहां के लोग बदतर जीवन जी रहे हैं। अब एशिया के दो अन्य छोटे देशों और भारत के पड़ौसियों बांग्लादेश और नेपाल में भी आर्थिक मंदी का खतरा मंडरा रहा है।

इस बात का खुलासा गत दिनों बांग्लादेश के वित्त मंत्री मुस्तफा कमाल के एक बयान से हुआ। कमाल ने कहा चीन अपनी परियोजनाओं को लेकर ईमानदार और ट्रांसपेरेंट नहीं है। कर्ज देने की उसकी शर्तों खराब और बेहद कड़ी हैं। लिहाजा, कई छोटे और गरीब देश मुश्किल में फंस रहे हैं। श्रीलंका इसका उदाहरण है।

श्रीलंका को चीन ने कैसे बनाया कर्जदार

चीन अपनी विस्तारवादी सोच के चलते भारत को चारों तरफ से घेरना चाहता है। इसी के चलते उसने अपने प्रोजेक्ट बीआरआई में श्रीलंका को हिस्सेदार बनाया। इसके बाद श्रीलंका की तत्कालीन सरकार ने हम्बनटोटा पोर्ट के लिए चीन से 1.26 अरब डॉलर का कर्ज लिया। चीन के कड़ी शर्तों और नियमों के चलते श्रीलंका लोन नहीं चुका पाया और उसे लाचार होकर हम्बनटोटा पोर्ट चीन को 99 साल की लीज पर देना पड़ा। अब चीन पोर्ट का प्रयोग अन्य गतिविधियों के साथ-साथ भारत की जासूसी के लिए भी कर रहा है।

बांग्लादेश कैसे हो सकता है आर्थिक मंदी का शिकार

बांग्लादेश भी चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट का हिस्सा है। शेख हसीना ने 2016 में इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने पर अपनी स्वीकृति दी थी। इसके साथ ही इस प्रोजेक्ट के चलते 34 अरब डॉलर दोनों देशों के ज्वाइंट एडवेंचर के लिए जारी हुए। अब बांग्लादेश में फोरन रिजर्व तेजी से कम हो रहा है। ताजा आंकड़ों के अनुसार बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार 40 अरब डालर से कम रह गया है। पिछले दिनों सरकार ने यह घोषणा की थी उसके पास पांच माह के इंपोर्ट के लिए ही रकम बची है। जिसके बाद पेट्रोलियम पदार्थों के दाम करीब 52 प्रतिशत तक बढ़ गए थे।

नेपाल पर ड्रैगन की शुरू से नजर

नेपाल शुरू से ही चीन से ज्यादा भारत के करीब रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में चीन ने पैसे के बल पर नेपाल से अपने रिश्ते मजबूत करने की कोशिश की है। इसी का नतीजा है कि नेपाल भी चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट में शामिल हो गया। चीन 2022 में नेपाल को विभिन्न परियोजनाओं में निवेश करने के लिए 15 अरब रुपए का लोन देगा। चीन ने 2012 में नेपाल को करीब 6.67 अरब रुपए का कर्ज दिया था। नेपाल के लिए चिंता की बात यह है कि उसका विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम होता जा रहा है।

इसका एक कारण यह भी है कि नेपाल में चीन का सामान बिना किसी ड्यूटी पर बेचा जाता है। मतलब चीन का जो भी सामान नेपाल में बिकेगा उससे नेपाल सरकार को कोई आमदन नहीं होगी। मौजूदा समय में नेपाल का विदेशी मुद्रा भंडार एक हजार करोड़ से भी कम है। दूसरी तरफ नेपाल अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए भारत सहित दूसरे देशों पर निर्भर है। जिससे आने वाले समय में उसके लिए आर्थिक परेशानियां बढ़ सकती हैं।

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