विदेश

World Mental Health Day : विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) के लिए विशेष मानसिक स्वास्थ्यः सरोकार की दरकार

India News (इंडिया न्यूज़), डॉ. आनंद प्रकाश श्रीवास्तव, World Mental Health Day : विकास की दौड़ में, किसी देश का आगे निकलना तभी संभव होता है, जब वहां की अधिकांश आबादी शारीरिक और मानसिक, दोनों तरह से स्वस्थ हो। विडंबना यह है कि शारीरिक तौर पर स्वस्थ होने को ही स्वास्थ्य का पैमाना मान लिया जाता है। लेकिन यह अर्धसत्य है।

स्वस्थ मन अथवा मानसिक तौर पर स्वस्थ हुए बिना, स्वास्थ्य की कल्पना बेमानी है। दरअसल, मानसिक स्वास्थ्य, जीवन की गुणवत्ता का पैमाना होने के साथ-साथ सामाजिक स्थिरता का भी आधार होता है। जिस समाज में मानसिक रोगियों की संख्या जितनी अधिक होती है, वहां की व्यवस्था और विकास पर उतना ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

मानसिक स्वास्थ्य को अपेक्षित महत्व नहीं

शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर बेशक सरकार और समाज दोनों में काफी जागरूकता नजर आती है, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य को लेकर किसी तरह की चर्चा/परिचर्चा शायद ही कभी सुनने को मिलती है। यह सर्वथा दुर्भाग्यपूर्ण है, कि आजादी के 75 साल बाद भी यानी जब हम अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। तब भी भारत में मानसिक स्वास्थ्य को अपेक्षित महत्व नहीं मिल पाया है। जबकि यह किसी व्यक्ति के सोचने, समझने, महसूस करने और कार्य करने की क्षमता को सीधे-सीधे प्रभावित करता है।

उदासी व एकाग्रता की क्षमता में कमी

मानसिक अस्वस्थता या मनोरोग को आमतौर पर हिंसा, उत्तेजना और असहज यौनवृत्ति जैसे गंभीर व्यवहार संबंधी विचलन से जुड़ी बीमारी माना जाता है, क्योंकि ऐसे विचलन अक्सर गंभीर मानसिक अवस्था का ही परिणाम होते हैं। हाल के वर्षों में अवसाद यानी डिप्रेशन, सबसे आम मानसिक विकार के तौर पर सामने आया है।

हालांकि मनोरोग के दायरे में अल्जाइमर, डिमेंशिया, ओसीडी, चिंता, ऑटिज़्म, डिस्लेक्सिया, नशे की लत, कमज़ोर याददाश्त, भूलने की बीमारी एवं भ्रम आदि भी आते हैं। इस तरह के लक्षण पीड़ित व्यक्ति की भावना, विचार और व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं। उदासी महसूस करना, ध्यान केंद्रित करने या एकाग्रता की क्षमता में कमी, दोस्तों और अन्य गतिविधियों से अलग-थलग रहना, थकान एवं अनिद्रा को मनोरोग का लक्षण माना जाता है।

मनोरोगी होने के पीछे कई कारण होते जिम्मेदार

किसी व्यक्ति के मनोरोगी होने के पीछे कई कारण जिम्मेदार होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारण होता है आनुवंशिक। विक्षिप्तता या स्कीजोफ्रीनिया से पीड़ित होने की आशंका उन लोगों में ज्यादा होती है, जिनके परिवार का कोई सदस्य इनसे पीडि़त रहा हो। पीड़ित व्यक्तियों की संतान में यह खतरा लगभग दोगुना हो जाता है। गर्भावस्था से संबंधित पहलू, मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन, आपसी संबंधों में टकराहट, किसी निकटतम व्यक्ति की मृत्यु, सम्मान को ठेस, आर्थिक नुकसान, तलाक, परीक्षा या प्रेम में नाकामयाबी इत्यादि भी मनोरोग का कारण बनते हैं।

मादक पदार्थों भी व्यक्ति को मनोरोगी का कारण

कुछ दवाएं, रासायनिक तत्व, शराब तथा अन्य मादक पदार्थों का सेवन भी व्यक्ति को मनोरोगी बना सकते हैं। दुनिया भर में अवसाद, तनाव और चिंता को आत्महत्या का प्रमुख कारण माना जाता है।15 से 29 आयु वर्ग के लोगों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण आत्महत्या ही होता है। गौर करने वाली बात यह है कि चूंकि महिलाओं को मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से पुरुषों की तुलना में ज्यादा संवेदनशील माना जाता है, इसीलिए उनकी आत्महत्या की दर भी पुरुषों से काफी ज्यादा है।

भारत में करीब आठ प्रतिशत आबादी मनोरोग से पीड़ित

भारत में मानसिक स्वास्थ्य की मौजूदा स्थिति की बात करें तो यहां की तकरीबन आठ प्रतिशत आबादी किसी ना किसी मनोरोग से पीड़ित है। वैश्विक परिदृश्य से तुलना करें तो आंकड़ा और भी भयावह नजर आता है, क्योंकि दुनिया में मानसिक और तंत्रिका (न्यूरो) संबंधी बीमारी से पीड़ितों की कुल संख्या में भारत की हिस्सेदारी लगभग 15 प्रतिशत है। गौर करने वाली बात है कि यह संख्या तब है जब, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भारत के आम जनमानस की स्थिति बेहद दयनीय है। देश की बहुत बड़ी आबादी आज भी गावों में रहती है, जो कि गरीबी और तंगहालीपूर्ण जीवन जीने को मजबूर है।

मानसिक समस्याओं से मुक्ति मे झाड़-फूक का सहारा

खेतों में काम करके थके-हारे किसान-मजदूरों के लिए तो दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ही सबसे बड़ी प्राथमिकता होती है। अवसाद, तनाव और चिंता जैसी मानसिक समस्याओं की तरफ तो ना ही उनका ध्यान जाता है, और ना ही वे इसे बीमारी मानते हैं। तुलनात्मक रूप से देखें तो मानसिक स्वास्थ्य को लेकर महानगरों और शहरों में जागरूकता जरूर है, लेकिन उसे भी पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। आज भी ऐसे तमाम लोग मिल जाते हैं जो मानसिक समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए सबसे पहले झाड़-फूक और ओझा-सोखा का ही सहारा लेते हैं। ऐसे ही लोग, स्थिति गंभीर होने पर पीड़ित व्यक्ति को पागल करार देकर, भगवान भरोसे छोड़ देते हैं।

जागरूकता की कमी सबसे बड़ी चुनौती

मनोरोग के संबंध में जागरूकता की कमी एक बड़ी चुनौती है। जागरूकता की कमी और अज्ञानता के कारण, मानसिक विकार से पीड़ित व्यक्ति के साथ आमतौर पर अमानवीय व्यवहार किया जाता है। इसके अलावा, मनोरोगियों के पास देखभाल की आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। यदि थोड़ी बहुत सुविधाएं हैं भी तो गुणवत्ता के पैमाने पर वे खरी नहीं उतरती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वह दिन दूर नहीं जब अवसाद यानी डिप्रेशन दुनिया भर में दूसरी सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या होगी। चिकित्सा विशेषज्ञ दावा करते हैं कि अवसाद, हृदय रोग का मुख्य कारण है। मनोरोग बेरोज़गारी, गरीबी और नशाखोरी जैसी सामाजिक समस्याओं का भी कारण बनता है।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य बेहद उपेक्षित मुद्दा

सरकारी, सार्वजनिक और निजी यानी सभी स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य बेहद उपेक्षित मुद्दा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2011 में भारत में मानसिक स्वास्थ्य विकार से पीड़ित प्रत्येक एक लाख मरीजों के लिए महज तीन साइकियाट्रिस्ट और मात्र सात साइकोलॉजिस्ट थे। जबकि विकसित देशों में एक लाख की आबादी पर करीब सात साइकियाट्रिस्ट हैं।

आंकड़ों की बात करें तो भारत में करीब 15 लाख लोग, बौद्धिक अक्षमता और तकरीबन साढ़े सात लाख लोग मनो-सामाजिक विकलांगता के शिकार हैं। मानसिक चिकित्सालयों की संख्या भी विकसित देशों के मुकाबले भारत में बहुत कम है। मानसिक चिकित्सालय की चर्चा होते ही आज भी लोगों के जेहन में रांची, आगरा और बरेली का ही नाम आता है।

मनोरोगियों के लिए दिल्ली मे महज तीन अस्पताल

यहां तक की राष्ट्रीय राजधानी, नई दिल्ली तक में मनोरोगियों के लिए महज तीन अस्पताल हैं, जिनमें एम्स और इहबास सरकारी अस्पताल हैं, जबकि विमहांस प्राइवेट। मनोरोगियों की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद भारत में सरकारी स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य पर किया जाने वाला खर्च बहुत मामूली है। मानसिक रोगों से पीड़ित करीब 80 प्रतिशत लोग बेरोज़गार हैं, इस लिहाज से यह बड़ी सामाजिक समस्या भी है।

1982 में शुरू हुए ‘राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम’

देश भले ही 1947 में आजाद हो गया, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत शायद बहुत बाद में महसूस की गई। केंद्र सरकार को सबके लिये न्यूनतम मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्धता और पहुंच सुनिश्चित कराने की समझ आजादी के करीब 35 साल बाद आई । सन 1982 में शुरू हुए ‘राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम’ का मूल उद्देश्य प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को एकीकृत करते हुए सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल की ओर अग्रसर होना था। इस कार्यक्रम के मुख्यत: तीन पहलू हैं। पहला, मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति का इलाज, दूसरा पुनर्वास और तीसरा मानसिक स्वास्थ्य संवर्द्धन और रोकथाम।

2014 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति की घोषणा

करीब तीन दशक बाद, अक्टूबर 2014 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति की घोषणा हुई। इसके बाद ‘मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017’ अस्तित्व में आया। मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में इसे मील का पत्थर कहा जा सकता है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य मानसिक रोगियों को मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करना है। यह अधिनियम मानसिक रोगियों के गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार को भी सुनिश्चित करता है। इसमें साफ-साफ कहा गया है कि आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति को मानसिक बीमारी से पीड़ित माना जाएगा एवं उसे भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जाएगा।

पूर्व में इसे माना जाता था अपराध

जबकि पूर्व में इसे अपराध माना जाता था, और इसके लिए एक वर्ष कारावास की सजा का प्रावधान था। एक औऱ अच्छी बात यह है कि इस अधिनियम में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले सभी मनोरोगियों को निशुल्क इलाज का भी अधिकार दिया गया है।
पिछले दिनों आई वैश्विक महामारी यानी कोरोना काल के बाद मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है। इससे निपटने के लिये क्षमताओं का विकास और संसाधनों में वृद्धि जरूरी है। मानसिक रोगियों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने और उपेक्षावादी रवैये को कमजोर करने में मीडिया की भी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

शिक्षा व्यवस्था में हैं सुधार की जरूरत

शिक्षा व्यवस्था में भी सुधार की जरूरत है, क्योंकि मौजूदा व्यवस्था में ऐसे विषयवस्तु एवं पाठ्य संरचना का नितांत अभाव है, जिससे व्यक्ति में स्वयं ही निराशा-अवसाद जैसे मनोविकारों से जूझने के सामर्थ्य का विकास संभव हो सके। इसके अलावा स्वास्थ्य चूंकि राज्य सूची का विषय है, इसलिये मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिये राज्य और केंद्र के बीच बेहतर तालमेल होना भी जरूरी है।

बजटीय आवंटन की चिंताजनक स्थिति भी मानसिक स्वास्थ्य सुधारों में बड़ी बाधा है। सरकारों को इस पर भी गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।समय का तकाजा है कि सरकार के साथ-साथ समाज भी यह समझे कि मानसिक स्वास्थ्य कितना महत्वपूर्ण है। अगर सही ढंग से इस समस्या का समाधान नहीं ढूंढा गया तो भविष्य में इसके मानसिक महामारी में तब्दील हो जाने से इनकार नहीं किया जा सकता।

ये भी पढ़े:

Itvnetwork Team

Recent Posts

प्रदीप मिश्रा की कथा में चल रही थी लूट…पुलिस ने गैंग को दबोचा, 15 महिलाएं गिरफ्तार

India News(इंडिया न्यूज), UP news: यूपी के बनारस में कथा के अंदर जमकर लूट पाट…

2 seconds ago

संत माइकल हाई स्कूल में ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ थीम पर खास कार्यक्रम, नन्हे बच्चों ने दिया बड़ा संदेश

India News (इंडिया न्यूज), Saint Michael High School: संत माइकल हाई स्कूल के प्री-प्राइमरी सेक्शन…

1 minute ago

Delhi Pollution News: प्रदूषण से दिल्लीवाले हुए परेशान, SC ने सरकार और पुलिस को लगाई फटकार, दिए सख्त निर्देश

India News (इंडिया न्यूज),Delhi Pollution News: दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण ने हालात को चिंताजनक बना…

10 minutes ago

‘वो मेरी बेटी नहीं’, जब Aishwarya Rai का नाम आते ही ऐसा बोल पड़ी थी Jaya Bachchan, सास-बहू के रिश्ते में क्या हुई ऐसी बात

Jaya Bachchan On Aishwarya Rai: जया बच्चन का एक पुराना वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल…

15 minutes ago

‘भारत कभी हिंदू राष्ट्र नहीं…’, धीरेंद्र शास्त्री के इस कदम पर भड़क गए मौलाना रिजवी, कह डाली चौंकाने वाली बात

यह यात्रा 160 किलोमीटर लंबी होगी और बागेश्वर धाम से ओरछा तक जाएगी। यात्रा शुरू…

24 minutes ago

फेमस होने के चक्कर में क्लास रूम में ही कर डाली अनोखी शादी, मचा बवाल

India News(इंडिया न्यूज),MP News: आजकल रील बनाने का चलन इतना बढ़ गया है कि बच्चों से…

26 minutes ago