India News (इंडिया न्यूज), Begum samru: मुगल काल में तवायफों का काम नाचना, गाना और मनोरंजन करना था। समाज के उच्च वर्ग के लोग उनका सम्मान करते थे। आज भले ही वैश्या होने का अर्थ वेश्यावृत्ति से जोड़ दिया गया है, लेकिन असल में उस समय इनका संबंध संगीत, नृत्य, संस्कृति, परिष्कार और कला से देखा जाता था। तवायफों के कोठरों पर उस्तादों के साथ नृत्य और संगीत की महफिलें सजती थीं। उस समय में एक वैश्या थी जो अपनी सल्तनत पर अच्छे से शासन करती थी। वह सरधना की बेगम समरू थीं।

चावड़ी बाज़ार की वैश्या

18वीं सदी में दिल्ली का चावड़ी बाज़ार तवायफों का इलाका हुआ करता था। उस दौरान कई ब्रिटिश और अन्य विदेशी सैनिक भी यहां की कोठरियों में अपनी शामें बिताने आते थे। उनमें से एक वाल्टर रेनहार्ड सोम्ब्रे थे। वाल्टर रेनहार्ड फ्रांस के निवासी थे और मुगलों के लिए भाड़े के अधिकारी के रूप में काम करते थे। बात 1767 की है, वाल्टर रेनहार्ड चावड़ी बाजार के एक वेश्यालय में पहुंचे। तभी उनकी नजर तबले की थाप पर नाचती हुई एक खूबसूरत लड़की पर पड़ी। वाल्टर रेनहार्ड को उस लड़की को देखते ही उससे प्यार हो गया। यह लड़की कोई और नहीं बल्कि फरजाना थी, जो बाद में बेगम समरू बन गई। फरजाना की मां चावड़ी बाजार की मशहूर तवायफ थीं। अपनी मौत से पहले उन्होंने अपनी बेटी को दूसरी वैश्या खानम जान को सौंप दिया था।

वाल्टर रेनहार्ड ने फरजाना से रखा था  शादी का प्रस्ताव

बता दें कि, वाल्टर रेनहार्ड ने फरजाना से शादी का प्रस्ताव रखा, जो उनसे 30 साल छोटी थीं. फरजाना ने कहा कि तुम्हें मेरे साथ तलवारबाजी में मुकाबला करना होगा। अगर आप जीत गए तो मैं धार्मिक रीति-रिवाज से शादी करूंगी।’ दरअसल फरजाना भी वाल्टर रेनहार्ड से प्यार करने लगी थीं। उन्हें वाल्टर रेनहार्ड का साथ इतना पसंद आया कि वह उनके साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में हिस्सा लेने लगीं। लखनऊ, रोहिलखंड, आगरा, भरतपुर और अस्मिता की लड़ाई में दोनों साथ रहे। आख़िरकार वे सरधना पहुँचे। यह जगह मेरठ से करीब 40 किमी दूर है। दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ने लगा था। बाद में उन्होंने ईसाई रीति-रिवाज से शादी कर ली। फरजाना ने उपनाम सोम्ब्रे अपनाया और बेगम समरू बन गईं।

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वॉल्टर रेनहार्ड को मिली जागीरदारी

मुगल शासक शाह आलम के आदेश पर वाल्टर रेनहार्ड ने सहारनपुर के रोहिल्ला सेनानी जबीता खान को हराया। दरअसल, रोहिल्ला सेनानियों ने मुगल शासक को परेशान कर रखा था। शाह आलम ने खुश होकर दोआब में एक बड़ी जागीर वाल्टर रेनहार्ड के नाम कर दी। इसके बाद वाल्टर रेनहार्ड अपनी पत्नी बेगम समरू के साथ सरधना में बस गये। शादी के पाँच साल बाद वाल्टर रेनहार्ड की अचानक मृत्यु हो गई।

पति की मृत्यु के बाद राजगद्दी संभाली

इतिहासकार दुर्बा घोष अपनी पुस्तक ‘सेक्स एंड द फैमिली इन कोलोनियल इंडिया’ में लिखती हैं कि 1778 में वाल्टर रेनहार्ड की मृत्यु के बाद, शाह आलम द्वितीय ने बेगम समरू को सरधना की जागीरदार घोषित कर दिया। बेगम समरू ने 18 यूरोपीय अधिकारियों और 4000 सैनिकों वाली सरधना की सेना की कमान संभाली और गद्दी संभाली। बेगम समरू हथियार चलाने में भी माहिर थीं, इसलिए वह 48 साल तक सरधना पर शासन करने में सफल रहीं। एक समय था जब बेगम समरू का शासन अलीगढ से लेकर सहारनपुर तक फैला हुआ था।

पति की याद में बनवाया गया चर्च

सरधना में ऐतिहासिक रोमन कैथोलिक चर्च का निर्माण बेगम समरू ने करवाया था। कहा जाता है कि उन्होंने यह चर्च अपने पति की याद में बनवाया था। बेगम समरू ने इसे बनवाने की जिम्मेदारी मेजर एंथोली रेगीलेनी को सौंपी थी। ऐसा माना जाता है कि मेजर एंथोली को वास्तुकला का अच्छा ज्ञान था। चर्च का निर्माण 1809 में शुरू हुआ और इसे पूरा होने में 11 साल लगे। चर्च के निर्माण में कई हजार लोग शामिल थे। यह 1822 में बनकर तैयार हुआ था। कहा जाता है कि बेगम समरू ने चर्च में स्थापित सभी मूर्तियों के लिए विदेशी कारीगरों को बुलाया था। इटालियन कारीगरों ने इसके लिए मजदूरी के रूप में 2700 सोने के सिक्के लिए।

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