Dharm: हम अक्सर ईश्वर से जब भी प्राथना करते है तो अपनी आंखों को बंद कर लेते है। ये प्राथना चाहे अकेले में की जा रही हो या फिर किसी भी ईश्वर के स्थान पर, हमारी आखें ईश्वर के समक्ष प्रार्थना करते समय अपने आप ही बंद हो जाती है। दुनिया भर के सभी धर्मों में ज्यादातर इस तरह से ही प्रार्थना की जाती है। प्रार्थना के आंखे बंद करने के विषय में सभी धर्मों ने अपने- अपने तरीके से कहा है। लेकिन, इस विषय पर सभी धर्मों का एक ही मत है कि प्रार्थना के समय ईश्वर पर अपने ध्यान को पूरी तरह लगा देना। जिसके बाद आपको शांति और विश्वास प्राप्त होगा।
वैसे तो हिंदु, बुद्ध और अन्य धर्मों में ईश्वर की कई ऐसी मूर्तियां है जिसमें ईश्वर की आखे खुली दिखाई देते है। लेकिन, इन ही मूर्तियों में अधिक्तर जगह आंखें बंद दिखाई देती है। ऐसे अलग-अलग धर्मों के ईश्वर की मूर्तियों और कई धर्म ग्रंथों अनुसरण करने पर प्रार्थना के समय आंखें बंद करना का उद्देश्य ढूंढा जा सकता है।
इस बात में कोई दोराय नहीं है कि ईश्वर की प्रार्थना का मतलब ईश्वर पर ध्यान एकाग्र करने से है। भगवान श्री कृष्णा द्वारा दिए गए गीता के ज्ञान में भी इस बाद के संकेत दिए है। गीता का छठा अध्याय (ध्यान योग) में इस बात के संकेत है कि मन की चचलता को रोकते हुए ईश्वर पर कैसे ध्यान एकाग्र किया जा सकता है और ईश्वर पर अपने मन को कैसे लगाया जा सकता है। गीता में भगवान से आखों को बंद करते हुए “भृकुटी” पर ध्यान केंद्रित करके, ईश्वर पर ध्यान लगाने को कहा है।
ईश्वर के सामने प्रार्थना करते समय आखें बंद होने के विषय में सिख धर्म में काफी विशेष तौर कहा गया है। सिख धर्म के ग्रंथ गुरुवाणी में कहा गया है कि “हरि मंदरु एहु सरीरु है गिआनि रतनि परगटु होइ।” अर्थात् यह शरीर ही हरि का मंदिर है, जिसमें वे हर पल निवास करते हैं तथा इसी आंतरिक मंदिर से आपको ज्ञान के सच्चे रत्न मिल सकते हैं। किसी अन्य बाहरी स्थल से नहीं। यानी आखें बंद करके आप शरीर के हरि का दर्शन प्राप्त कर सकते है।
अगर बाइबिल में की बात करें तो, बाइबिल प्रार्थनाओं के बारे में बैठे,खड़े और घुटना टेक कर करने के बारे में बताया गया है। वहीं, इनमें ये नहीं बताया गया है कि प्रार्थना के वक्त आंखें बंद कर लेनी चाहिए। लेकिन कई लोगों भगवान या किसी अन्य उच्च शक्ति से बातचीत करते हुए आंखों को बंद कर लेते हैं। ताकि किसी भी अन्य चीज से अवरूद्ध ना हों और उस प्रार्थना पर एकदम एकाग्र होकर अपना अपना ध्यान लगा पाए।
वहीं, बुद्ध की मुर्तियों को देखे तो उन पर भी भगवन बुद्ध की आंखे बंद मिलेगी। बुद्ध हमेशा ध्यान में रहा करते थे। उनका कहना था कि ध्यान इंद्रियों से हमारी जागरूकता को वापस लेने और इसे भीतर की ओर केंद्रित करने का उपकरण है। इसलिए कहा जा सकता है कि ध्यान और प्रार्थना का तरीका हर धर्म में आखें बंद करके या किसी एक चीज पर अपने ध्यन को लगाने का रहा है।
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