India News (इंडिया न्यूज), Indian Railway: आपने एसी कोच में खूब सफर किया होगा और खास तौर पर एसी कोच में। हर ट्रेन में कई एसी कोच होते हैं और यात्रियों को इसमें काफी सुविधाएं मिलती हैं। लेकिन, रेलवे ने एसी कोच में मिलने वाली इन सुविधाओं को लेकर ऐसा खुलासा किया है, जिसे सुनकर आप चौंक जाएंगे। सालों से इन सुविधाओं का लाभ उठा रहे यात्रियों का सारा कन्फ्यूजन इस कबूलनामे से खत्म हो जाएगा। खुद भारतीय रेलवे ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत इसे स्वीकार किया है, जो एसी कोच में मिलने वाले बिस्तर से जुड़ा है।

जब आप एसी कोच में सफर करते हैं, तो आपको हर सीट पर एक बड़े भूरे रंग के लिफाफे में चादर, तकिया और कंबल दिए जाते हैं। आप इसे ना सिर्फ चादर पर बिछाते हैं, बल्कि एसी की ठंड से बचने के लिए खुद को कंबल से ढक भी लेते हैं। अब चादर और तकिए सफेद रंग के होते हैं, जो आपको बताते हैं कि ये साफ और धुले हुए हैं। लेकिन, कंबल का रंग या तो काला होता है या गहरा भूरा। आप इन्हें देखकर नहीं बता सकते कि ये धुले हुए हैं या नहीं। अब रेलवे ने आपकी ये कन्फ्यूजन दूर कर दी है।

चादरें और कंबल कब धुलते हैं?

इंडियन एक्सप्रेस ने एक आरटीआई के आधार पर बताया है कि रेलवे हर इस्तेमाल के बाद चादरें और तकिए के कवर धुलवाता है और फिर यात्रियों को दोबारा इस्तेमाल के लिए देता है। यह जानकर आपको अच्छा लगा होगा। लेकिन, हकीकत कंबलों में छिपी है। रेलवे ने आगे कहा कि कंबल महीने में सिर्फ एक बार धुलते हैं। जी हां, जिस कंबल को ओढ़कर आप बेखौफ होकर सोते हैं, उसे महीने में सिर्फ एक या कभी-कभी दो बार ही धोया जाता है।

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क्या इनके लिए अलग से कोई चार्ज है?

जब रेलवे से पूछा गया कि क्या इन चादरों, तकियों और कंबलों के लिए यात्रियों से अलग से पैसे लिए जाते हैं, तो रेलवे ने साफ कहा कि इनका खर्च भी टिकट किराए में ही शामिल है। केवल गरीब रथ और दुरंतो जैसी ट्रेनों में ही यात्रियों को चादरों और कंबलों का अलग से विकल्प दिया जाता है, जिसके लिए उन्हें कुछ चार्ज देना होता है। रेल मंत्रालय के पर्यावरण एवं हाउसकीपिंग प्रबंधन विभाग के अनुभाग अधिकारी रिशु गुप्ता ने बताया कि दुरंतो जैसी ट्रेनों में इन वस्तुओं की सफाई के लिए एक मानक का पालन किया जाता है।

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हर ट्रिप के बाद क्या होता है?

इस मामले से जुड़े एक अधिकारी ने आरटीआई के जवाब में बताया कि ट्रेन की हर ट्रिप के बाद चादरें और तकिए के कवर धुलाई के लिए लॉन्ड्री में भेजे जाते हैं, जबकि कंबल को मोड़कर कोच में ही रख दिया जाता है। अगर वो बहुत गंदा है और बदबू आ रही है तो कंबल को भी धुलाई के लिए भेज दिया जाता है। कंबल तभी धुलते हैं जब उन पर दाग लग जाते हैं या बदबू आने लगती है। साल 2017 में सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा किया था। सीएजी ने अपनी जांच में बताया था कि कई बार कंबलों को हर 6-6 महीने में धोया जाता है।