इंडिया न्यूज (Ways to Calm the Mind)
आप ने ये मुहावरा जरुर सुना होगा ”पीपल पात सरस मन डोला” इसका अर्थ ये है की हमारा मन पीपल के पत्ते जैसा हल्का होता है जैसे पीपल का पत्ता इतना हल्का होता है की थोडी सी हवा के बहाव से हिलने लगता है,वैसे ही हमारा मन होता है थोडे से विचलन से ही अपनी स्थिरिता खो देता है जीवन में बहुत कुछ है, लेकिन मन अशांत है तो व्यक्ति को किसी चीज से खुशी नहीं मिल सकती है। इसलिए भागते-दौड़ते संसार के संग भागती-दौड़ती जिंदगी में खुद को कैसे शांत रखा जाए। आइए आज के लेख में जानते हैं इस बारे में।
मन तो हमेशा ही अभी कमी है, अभी और चाहिए वाली अवस्था में रहता है और इसलिए वह हमेशा ही और-और की लालसा करता है। जब आप मन के साथ तादात्म्य में हो जाते हैं तब आप जल्दी ही ऊब जाते हैं, जल्दी ही बेचैन हो जाते हैं। ऊबने का मतलब होता है कि मन और अधिक उद्दीपन और उत्तेजना चाहता है, कि विचार करने के लिए वह और अधिक खुराक चाहता है, लेकिन मन का पेट कभी भरता नहीं है। जब ऊब होती है तो किसी से फोन पर बात करने लगते हैं, सोशल मीडिया देखकर मन की भूख को शांत करने की कोशिश करते हैं। मानसिक अभाव के भाव और भूख को शरीर की ओर स्थानांतरित कर देते हैं। जबकि ऐसे वक़्त में थोड़ी देर खुद को ऊबने दिया जाए तो थोड़े समय में स्वत: शांति मस्तिष्क में आएगी। इसका अगला चरण है विचार से ऊपर उठना या विचार के पार जाना। इसका सीधा-सादा अर्थ यह है कि हम विचार के साथ पूरी तरह से तादात्म्य में न हो जाएं, कि हम विचार के गुलाम न हों।
बाहर होने वाले शोर के समान अंदर विचारों का शोर रहा करता है। बाहर होने वाली शांति के समान अंदर शांति रहा करती है। आपके आसपास जब कभी भी थोड़ी-सी शांति हो, खामोशी हो तो उस पर पूरा ध्यान दीजिए। बाहर की खामोशी को सुनना अंदर की शांति को जगा देता है। क्योंकि केवल शांति के माध्यम से आप खामोशी को जान सकते हैं। जब आप अपने आसपास की खामोशी पर ध्यान दे रहे हों तब आप कुछ भी न सोच रहे हों। कभी किसी पेड़, फूल या पौधे को देखिए। वे कितने शांत रहते हैं। शांत रहने का सबक प्रकृति से सीखिए।
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किसी के बारे में राय बना लेने में हम कितनी जल्दबाजी करते हैं। जबकि हर व्यक्ति खास तरह से सोचने और बर्ताव करने के लिए संस्कारित हुआ होता है। ये संस्कार आनुवंशिक भी होते हैं और उन अनुभवों और संस्कृति के वातावरण से पड़ते हैं जिनमें कि वह पला-बढ़ा होता है। इसलिए यदि किसी से शिकायत भी है तो कोई भी जब आपके पास आता है, तब अगर आप ”अब” में विद्यमान रहते हुए उसका स्वागत सम्मानीय अतिथि के रूप में करते हैं जब आप हर किसी को जैसा वह है वैसा रहने देते हैं। तब उनमें सुधार आने लगता है और जाहिर है, खुद के जीवन में भी शांति आती है।
यही एक समय यानी अब यही एक ऐसी चीज है, जिससे आप बचकर कभी निकल नहीं सकते। यही पल आपके जीवन का स्थायी प्रतिनिधि है। भले ही आपके जीवन में कितना भी बदलाव आ जाए, यही एक बात है जो कि निश्चित रूप से हमेशा ही रहती है। वर्तमान पल के साथ जब आप मित्रवत रहते हैं, तब आप चाहे जहां हों घर जैसा महसूस करते हैं। और आप अब के साथ घर जैसा महसूस नहीं करते हैं, तब आप चाहे कहीं भी चले जाएं, आप बेचैनी, परेशानी, उद्विग्नता, व्याकुलता में ही रह रहे होंगे। इस पल के प्रति निष्ठावान होने का अर्थ है कि अब जैसा भी है उसका अपने अंदर से विरोध न करना। उसके साथ कोई वाद-विवाद न करना। इसका अर्थ है जीवन के साथ तालमेल करना। जब आप जो हैं को स्वीकार कर लेते हैं तब आप परम जीवन की शक्ति तथा प्रज्ञा के साथ सामंजस्य में रहने लगते हैं। और केवल तभी आप इस संसार में सकारात्मक बदलाव लाने वाले बन सकते हैं।
सुबह जल्दी उठें। योगा और ध्यान करें। ईश्वर की पूजा करें। सकारात्मक विचार रखें। ज्यादा ना सोचें। खुद पर विश्वास रखें। चेहरे पर खुशी रखें। प्राकृत से जुडे रहें। किसी से तुलना ना करें। भविष्य की चिंता ना करें। लोगों की मदद करें। नशे से दूरी बनाएं।
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