इंडिया न्यूज, Recycle Old Phones: आज के समय में फोन बदलना आम बात हो गई है। लगभग 50 फीसदी भारतीय लगभग दो साल में फोन बदल ही देते हैं। लगभग 10 फीसदी लोग करीब छह माह में फोन बदलते हैं। लेकिन कितने लोग हैं जो पुराना हो चुका फोन रिसाइकिल करते हैं इसके बारे में तो कहना मुश्किल है। क्योंकि बहुत कम ही लोग हैं जो पुराना फोन रिसाइकिल करते हैं। बता दें पुराने फोन एकत्र करने की आदत आपको खतरे में डाल सकती है। तो आइए जानते हैं कि पुराने फोन क्यों रिसाइकिल करना चाहिए। कैस इसमें बदलाव लाया जा सकता है।
क्या पुराने फोन के पार्ट नए फोन में काम आते हैं?
बताया जाता है कि मोबाइल फोन में अलग-अलग तरह के काफी ज्यादा कॉम्पोनेंट्स का प्रयोग होता है। इन कॉम्पोनेंट्स को बनाने में कई तरह के रेयर अर्थ मेटल्स और अन्य धातुओं का प्रयोग होता है। अजोक्लीनटेक के मुताबिक एक मोबाइल का 80 फीसदी हिस्सा नया फोन बनाने में इस्तेमाल हो सकता है। इन रेयर अर्थ मेटल्स और की कई धातुओं का भंडार सीमित है। फोन के अलावा अन्य चीजें बनाने में इनका तेजी से इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में अगर रिसाइकिल नहीं किया गया तो जल्द ही इनके भंडार खत्म हो जाएंगे।
अब समझिए-आमतौर पर एक फोन की शेल्फ लाइफ 4-5 साल होती है। इसके बाद फोन की कम्पनी उस पर अपडेट देना बंद कर देती है। लोग इस शेल्फ लाइफ से पहले नया फोन तो ले लेते हैं, मगर पुराना फोन रिसाइकिल नहीं करते।
क्यों देश में 95 फीसदी रिसाइकिलिंग का कारोबार अवैध है?
पुराने फोन रिसाइकिलिंग के लिए आप किसी भी रजिस्टर्ड फोन शॉप पर दे सकते हैं। मगर भारत में फोन रिसाइकिलिंग का 95 फीसदी हिस्सा अवैध रूप से चलता है। सरकार ने मोबाइल जैसे ई-वेस्ट की रिसाइकिलिंग को प्रमोट करने के लिए घर-घर आने वाली वेस्ट कलेक्शन की गाड़ी में भी ई-वेस्ट का अलग डिब्बा जोड़ा है। मगर ज्यादातर शहरों में इन कचरा गाड़ियों में जाने वाला सामान्य कचरा पूरा रिसाइकिल नहीं होता। ऐसे में लोग फोन की रिसाइकिलिंग के इस माध्यम पर भरोसा नहीं कर पाते।
क्या पुराना फोन इस्तेमाल करना है खतरनाक?
हर फोन से इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक रेडिएशन होता है। फोन कंपनियां नए फोन में इस रेडिएशन के स्तर को नियंत्रित रखती हैं। मगर शेल्फ लाइफ के बाद फोन से रेडिएशन की मात्रा बढ़ जाती है। लंबे समय तक इतने ज्यादा रेडिएशन के प्रभाव से ब्रेन ट्यूमर तक हो सकता है।
फोन के कौन से कॉम्पोनेंट्स पर मंडरा रहा खतरा?
- स्क्रीन: 20 साल में खत्म हो जाएगा टच के लिए जरूरी इंडियम।
- इंडियम टिन आक्साइड: यह टच स्क्रीन के लिए जरूरी ट्रांसपेरेंट फिल्म बनाता है। इंडियम के प्राकृतिक भंडार 20 सालों में खत्म हो जाएंगे।
- एल्यूमिनीयूसिलिकेट: यह कंपोनेंट फोन की स्क्रीन को मजबूती देता है। एल्मुनियम का दोहन पर्यावरण के लिए खतरनाक है।
- स्क्रीन के रंग: इट्रियम, लेथनम, टरबियम जैसे तत्व स्क्रीन को रंग देते हैं। इंडियम के भंडार बहुत कम हैं। 100 वर्ष में खत्म हो जाएंगे।
क्या इलेक्ट्रॉनिक्स वायरिंग से चिप तक आएगा संकट?
- आपको बता दें कि कॉपर, सिल्वर, गोल्ड और टैंटेलम से बने कंपोनेंट फोन की वायरिंग लगते हैं। इनमें टैंटेलम के भंडार सिर्फ 50 साल के हैं।
- निकल, डिस्प्रोसियम, प्रैसिओडियम, नियोडिमियम एक ऐसे तत्व हैं जिनसे स्पीकर वाइब्रेशन यूनिट बनते हैं। डिस्प्रोसियम और नियोडिमियम दोनों के भंडार 100 साल के हैं।
- सिलिकन, एंटीमनीए आर्सनिक, गैलियम इन से मिलकर फोन की चिप बनती है। एंटीमनी, गैलियम और आर्सनिक के भंडार बहुत कम है।
फोन की बैटरी कैसे बनती है?
लिथियम, कोबाल्ट, कार्बन, एलमुनियम, आॅक्सीजन इन सभी तत्वों से मिलकर फोन की बैटरी बनती है। और कोबाल्ट का इस्तेमाल ईवी की बैटरी में भी होता है। इनकी माइनिंग लगातार बढ़ने से भंडार संकट में है।
फोन की केसिंग कैसे बनती है?
कार्बन, मैग्नीशियम, ब्रोमीन और निकिल। इन सभी तत्वों से मिलकर फोन की केसिंग बनती है। मैग्नीशियम और निकिल के भंडार अभी खतरे में हैं।
क्या क्लाउड स्टोरेज से दूर होगी डेटा प्रोटेक्शन कि दिक्कत?
दुनिया में क्लाउड स्टोरेज के प्रति रुझान तेजी से बढ़ रहा है। मगर देश में आज भी लोग फोन की तस्वीरें, वीडियो और अन्य डेटा क्लाउड के बजाय फोन में ही सेव करना ज्यादा पसंद करते हैं। इसी वजह से ज्यादा स्टोरेज कैपेसिटी वाले या एक्सपैंडेबल मेमोरी वाले फोन ज्यादा लोकप्रिय होते हैं। मगर फोन पर डेटा सेव करना सुरक्षित नहीं होता। फोन खराब होने या चोरी होने पर आपका डेटा भी असुरक्षित होता है।
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