ओबीसी जातियों को एससी कोटे में डालने की क्या है पूरी सियासत ?

INDIA NEWS (DELHI): दरअसल, साल 2005 में सपा सरकार ने 17 ओबीसी जातियों को एससी कोटे में बदलने की अधिसूचना जारी की थी। जिस पर कोर्ट ने रोक लगा दी। इसके बाद यह प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया, वहां भी कोई हल नहीं निकला। 2007 में जब बसपा सरकार बनी तब उसने ने भी इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

लेकिन केंद्र को पत्र भेजा दिया और उसमे लिखा की वह इन जातियों को एससी कोटे में डालने के लिए तैयार है। इस लिहाज से दलित आरक्षण का कोटा 21 से बढ़कर 25 फीसदी हो गया और मामला फिर अटक गया।

2012 में फिर 17 ओबीसी जातियों के साथ खेला गया खेल

2012 में फिर सरकार बदली और सपा ने वापसी की। इस बार अखिलेश सरकार ने यूपी चुनाव से ठीक पहले दिसंबर, 2016 में आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 13 में बदलाव किया। फिर 17 ओबीसी जातियों के साथ खेल शुरू कर दिया।

प्रस्ताव तैयार कर कैबिनेट से मंजूर मिल गई, केंद्र को नोटिफिकेशन भेज दिया गया। सभी जिलों के डीएम तक को आदेश दे दिया गया। फिर हाईकोर्ट में अपील हुई। कोर्ट ने जनवरी, 2017 में इस नोटिफिकेशन पर रोक लगा दिया।

2017 में फिर सरकार बदली और बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई और इन्ही सब के बीच जून, 2019 में कोर्ट के स्टे ऑर्डर की अवधि भी समाप्त हो गई और इस बार योगी सरकार ने भी इस प्रथा को आगे बढ़ाने का प्रयास किया और नोटिफिकेशन जारी किया। हाई कोर्ट ने इस बार फैसला दिया कि राज्य सरकार के पास अनुसूचित जाति सूची को बदलने की शक्ति नहीं है।

Anubhawmani Tripathi

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