India News (इंडिया न्यूज़), Mahila Naga Sadhu Mahakumbh 2025: प्रयागराज का महाकुंभ मेला धार्मिक आस्था का एक अद्भुत संगम है, जिसमें न केवल लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं, बल्कि साधु-संतों की भी बड़ी संख्या मौजूद रहती है। इन साधु-संतों में महिला नागा साधुओं का एक विशेष स्थान है। महिला नागा साधुओं का जीवन कई तरह की कठिनाइयों और परंपराओं से भरा होता है। वे अपने विशेष तरीके से भगवान की उपासना करती हैं और कुंभ मेले में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करती हैं।
महिला नागा साधु का जीवन घर-परिवार से दूर एक तपस्वी जीवन होता है। इन साधुओं को कठिन साधना और कठिन जीवनशैली का पालन करना होता है, जिसमें उनका आचार-विचार, पहनावा और पूजा-पाठ शामिल होते हैं। महिला नागा साधुओं को पुरुष नागा साधुओं से कई मायनों में भिन्न माना जाता है। महिला नागा साधु के बारे में एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि वे दिगंबर नहीं होतीं। यानी वे निर्वस्त्र नहीं रहतीं। जबकि पुरुष नागा साधु नग्न रहते हैं, महिला नागा साधु गेरुए रंग का एक सिला हुआ वस्त्र पहनती हैं, जिसे ‘गंती’ कहा जाता है। यह वस्त्र उनका जीवनभर का पहनावा होता है। महिला नागा साधु गेरुए रंग की गंती पहनकर साधना करती हैं, और इस वस्त्र का प्रयोग वह केवल दिन में एक बार भोजन करने के बाद करती हैं।
महिला नागा साधुओं के बारे में यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि वे केवल उस दिन गंगा में डुबकी लगाती हैं जब उनका मासिक धर्म नहीं होता। यदि वे इस दौरान कुंभ मेले में होती हैं, तो वे सिर्फ गंगा जल से शरीर को शुद्ध करती हैं, लेकिन डुबकी नहीं लगातीं। यह एक धार्मिक और शुद्धता से जुड़ा हुआ काम है। महिला नागा साधु बनने के लिए महिलाओं को कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता है। उन्हें पहले अपने जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और यह साबित करना होता है कि वे ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। इसके बाद ही गुरु उन्हें महिला नागा साधु बनने की अनुमति देते हैं। इस प्रक्रिया में जीवन का संपूर्ण त्याग और कठोर साधना शामिल होती है। महिला नागा साधु बनने से पहले महिला का मुंडन कराया जाता है और फिर उन्हें नदी में स्नान कराकर पूरी तरह से शुद्ध किया जाता है।
महिला नागा साधु भोजन में कंदमूल, फल, जड़ी-बूटी और पत्तियों का सेवन करती हैं। उनका जीवन साधना से जुड़ा होता है और वे दिनभर भगवान का जाप करती रहती हैं। विशेष रूप से वे शिवजी और दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं। प्रत्येक दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में वे शिवजी का जाप करती हैं और शाम को दत्तात्रेय भगवान की आराधना करती हैं। महिला नागा साधुओं के लिए अलग-अलग अखाड़ों की व्यवस्था की जाती है। ये अखाड़े उन्हें विश्राम और साधना के लिए जगह प्रदान करते हैं। महिला नागा साधु एक विशेष स्थान पर रहती हैं, जिसे माई बाड़ा कहा जाता है। यहां वे पूजा-पाठ और साधना करती हैं।
महिला नागा साधु के बारे में एक और दिलचस्प बात यह है कि उन्हें नग्न रहने की अनुमति नहीं होती है। इसके विपरीत, पुरुष नागा साधु निर्वस्त्र होते हैं। इस प्रकार महिला नागा साधु अपने जीवन में एक गहन अनुशासन और धार्मिक जीवनशैली का पालन करती हैं। महिला नागा साधुओं का महत्व कुंभ मेले में बहुत बढ़ जाता है। इस मेले में इनकी उपस्थिति से धार्मिक आस्था को एक नई दिशा मिलती है। इन महिला साधुओं को ‘माई’, ‘अवधूतानी’ या ‘नागिन’ के रूप में भी संबोधित किया जाता है। इनकी उपस्थिति कुंभ मेले को और भी दिव्य बनाती है।
महिला नागा साधु की एक विशेष पहचान 2013 में कुंभ मेले के दौरान मिली। इलाहाबाद कुंभ में पहली बार महिला नागा अखाड़े को प्रमुखता से दिखाया गया था, जिसमें दिव्या गिरी प्रमुख साध्वी थीं। दिव्या गिरी ने पहले मेडिकल तकनीशियन के रूप में कार्य किया था, लेकिन फिर उन्होंने संन्यास लेकर महिला नागा साधु बनने का निर्णय लिया। दिव्या गिरी ने अपनी साधना और ज्ञान के माध्यम से महिला नागा साधुओं के अधिकारों को भी आगे बढ़ाया।
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