India News (इंडिया न्यूज), Manikarnika Ghat Ki Aag: काशी, बनारस या वाराणसी इन तीन नामों से पहचाने जाने वाली भगवान शिव की नगरी दुनिया के पौराणीक शहरों में से एक है। काशी अपने में ही एक अलग शहर है जो अपने संस्कृति, ज्योतीर्लींग, खान-पान, बनारसी साड़ी, काशी की गलीयां और घाटों के लिए प्रचलित है। बनारस को मोक्ष की नगरी के नाम से भी जानते हैं। यहां के लिए एक पंक्ति लिखी गई है कि “जिसने भी छुआ वो स्वर्ण हुआ, सब कहें मुझे मैं पारस हूं, मेरा जन्म महाश्मशान मगर मैं जिंदा शहर बनारस हूं”। और इसी चहल पहल से भरे शहर बनारस में मणिकर्णिका नाम से एक श्मशान घाट है।
वर्षों से जल रही चिताएं
मान्यता है कि काशी के मणिकर्णिका घाट पर 24 घंटे चिताएं जलती रहती हैं। दुनिया चाहे उलट-पुलट हो जाए, लेकिन यहां चिताओं की अग्नि तब से जल रही है, जब भगवान शंकर की पत्नी माता पार्वती ने श्राप दिया था और कहा था कि यहां की अग्नि कभी नहीं बुझेगी। इस जगह के बारे में हर कोई अपनी-अपनी कहानियां सुनाता है, अपने-अपने तरीके से बातें बताता है। तली-पतली गलियों से होकर जाने वाले इस घाट पर पहुंचते वक्त दूर से ही धुआं दिखने लगता है। बड़ी सेख्या में लोगों का हुजूम लगा रहपता है हर कोई अपनों के अंतिम संस्कार के लिए महाशमशान पर आया रहता है।
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क्यों नहीं बुझी है चिताओं की अग्नि
मणिकर्णिका का ऐसा श्राप है कि यहां 24 घंटे आग जलती रहती हैं। एक बार पार्वती जी स्नान कर रही थीं। उनका कान का कुंडल तालाब में गिर गया, जिसमें एक मणि थी। इसे खोजने का बहुत प्रयास किया गया। लेकिन उनका कुंडल नहीं मिला। इस पर पार्वती माता क्रोधित हो गईं और उन्होंने श्राप दिया कि यदि मेरी मणि नहीं मिली तो यह स्थान हमेशा जलता रहेगा। यही कारण है कि इस स्थान का नाम मणिकर्णिका पड़ा। लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करने के लिए यहां आते हैं। मणिकर्णिका के इतिहास के बारे में जानने के बाद हमने सोचा कि हमें यहां के लोगों से यह भी जानकारी लेनी चाहिए कि पिछले सालों में यहां क्या-क्या बदलाव हुए हैं।
क्या अग्नि बुझने पर आएगा प्रलय
वहीं दूसरी ओर ये भी मान्यता है की जिस दीन मणिकर्णिका घाट के चिताओं की अग्नि की शांत हो गई उस दीन दूनीया खत्म हो जाएगी और प्रलय आ जाएगा। मणिकर्णिका घाट पर लाशों का जलना कभी बंद नही होती। यहाँ की चिताओं की आग कभी ठंडी नहीं होती। यह घाट बनारस के 84 घाटों में सबसे प्रसिद्ध है और मोक्ष का प्रतीक माना जाता है। लोग दूर-दूर से इस घाट पर आते हैं और इसके गुणों की प्रशंसा दूर-दूर तक होती है। घाट पर लकड़ियों के बड़े-बड़े ढेर लगे रहते हैं, प्रत्येक लकड़ी को बड़े पैमाने पर सावधानी से तौला जाता है ताकि दाह संस्कार की लागत का हिसाब लगाया जा सके। हर तरह की लकड़ी की अपनी कीमत होती है। इनमें चंदन की लकड़ी सबसे महंगी होती है। एक शव को पूरी तरह से जलाने के लिए पर्याप्त लकड़ी का इस्तेमाल करना भी एक कला है। इस जगह पर आप श्मशान घाट और चिताओं का दाह संस्कार देख सकते हैं।
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