India News (इंडिया न्यूज), Raja Chhatrasal:  महाराजा छत्रसाल का नाम भारतीय इतिहास में वीरता और साहस के लिए स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। उन्होंने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी और 22 साल की उम्र में मुगलों के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंका। उन्होंने कभी भी मुगलों से युद्ध में हार नहीं मानी। मुगलों ने उनको हराने की बहुत कोशिश लेकिन लेकिन वे ऐसे एकलौते राजा रहे जो मुगलों से कभी नहीं हारे। 4 मई, 1649 को जन्मे राजा छत्रसाल बुंदेला राजपूत थे और ओरछा के राजा रूद्र प्रताप सिंह के वंशज थे। 12 वर्ष की उम्र में उनके पिता चंपतराय की हत्या मुगलों ने कर दी। उस समय छत्रसाल अपने मामा के यहां युद्ध कौशल का प्रशिक्षण ले रहे थे। पिता की मृत्यु के बाद छत्रसाल के पास कोई संपत्ति नहीं बची थी, लेकिन उनकी इच्छाशक्ति ने उन्हें इतिहास के पन्नों में अमर बना दिया।

5 घुड़सवारों और 25 तलवारबाजों से खड़ा किया साम्राज्य

1671 में, छत्रसाल ने महज 5 घुड़सवारों और 25 तलवारबाजों के साथ मुगलों के खिलाफ युद्ध शुरू किया। उनकी वीरता और कुशल रणनीतियों से उनकी सेना का विस्तार हुआ और अगले कुछ वर्षों में उन्होंने बुंदेलखंड के बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। कालपी से सागर और ग्वालियर से पन्ना तक उनका साम्राज्य फैल गया। 82 वर्ष के जीवन में उन्होंने 52 युद्धों में विजय प्राप्त की।

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शिवाजी से ली प्रेरणा

पिता की मृत्यु के बाद छत्रसाल ने अपने भाई के साथ राजा जय सिंह की सेना में शामिल होकर अनुभव प्राप्त किया। लेकिन जल्दी ही उन्होंने स्वतंत्र सेना खड़ी करने का निर्णय लिया। इस दौरान मराठा सरदार शिवाजी से उनकी मुलाकात हुई। शिवाजी ने उन्हें सलाह दी कि वे अपने क्षेत्र में मुगलों को हराकर स्वतंत्रता प्राप्त करें। शिवाजी ने उन्हें भवानी नामक तलवार भेंट की, जो उनके संघर्ष का प्रतीक बनी।

असंगठित सेना से शुरू किया संघर्ष

छत्रसाल ने अपनी छोटी-सी सेना बनाई जिसमें तेली, बारी, मुस्लिम, और मनिहार जातियों के लोग भी शामिल थे। प्रशिक्षित सैनिकों की कमी के बावजूद छत्रसाल ने धंधेरों पर पहला हमला किया, जिन्होंने उनके पिता के साथ विश्वासघात किया था। इस जीत के बाद उन्होंने इलाके की संपत्ति महोबा में वितरित की, जिससे उनकी सेना में और लोग जुड़ने लगे। उनकी कुशल नेतृत्व क्षमता और युद्ध कौशल ने उन्हें कई मुगल सरदारों पर विजय दिलाई, जिनमें रोहिल्ला खान, मुनव्वर खान, और अब्दुस अहमद शामिल थे।

बुंदेला साम्राज्य का विस्तार और गौरव

राजा छत्रसाल ने बुंदेलखंड में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। उन्होंने न केवल मुगलों को हराया बल्कि स्थानीय जागीरदारों को एकजुट करके बुंदेला गौरव को भी स्थापित किया। कवि भूषण ने उनकी प्रशंसा में लिखा, “छत्ता तोरे राज में धक-धक धरती होय, जित-जित घोड़ा मुख करे तित-तित फत्ते होय।” यह उनकी वीरता और सफलता का प्रतीक है।

बाजीराव से मांगी मदद

1728 में 79 वर्षीय राजा छत्रसाल के बुंदेला साम्राज्य पर मुगल सरदार मुहम्मद खान बंगश ने आक्रमण किया। वृद्धावस्था में कमजोर होने के बावजूद उन्होंने बंगश का सामना किया, लेकिन हार गए। तब उन्होंने मराठा पेशवा बाजीराव से मदद मांगी। छत्रसाल ने बाजीराव को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने कहा, “मैं उसी स्थिति में हूं, जैसे मगरमच्छ द्वारा जकड़ा हुआ हाथी। कृपया आकर मेरी प्रतिष्ठा बचाएं।” बाजीराव ने उनकी गुहार सुनी और मराठा सेना के साथ बुंदेलखंड पहुंचे। उन्होंने बंगश को हराकर छत्रसाल के साम्राज्य को बचाया।

बुंदेलखंड के गौरव का प्रतीक

राजा छत्रसाल का निधन 20 दिसंबर, 1731 को हुआ। उन्होंने अपने जीवनकाल में न केवल एक विशाल साम्राज्य खड़ा किया, बल्कि अपने साहस और बलिदान से बुंदेलखंड की अस्मिता को अमर कर दिया। आज भी बुंदेलखंड के लोग उन्हें सम्मान और गर्व के साथ याद करते हैं।

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