इस रस भरी जलेबी से मुंह मीठा किए बिना रावण दहन भी अधूरा माना जाता है। ये परंपरा बहुत पुरानी है। जानिए इसके पीछे की दिलचस्प कहानी। दशहरा आ रहा है। बुराई पर अच्छाई की जीत का ये पर्व काफी धूमधाम से मनाया जाता है। रावण दहन का ये पर्व पकवान और खुशियों के बिना पूरा नहीं हो पाता। दशहरे पर घर में पकवान तो बनते ही है लेकिन रावण दहन के बाद लोग चाट पकौड़ी और जलेबी खाना नहीं भूलते। चाट पकोड़ी एक बार ना भी खाएं लेकिन जलेबी खाए बिना दशहरा पूरा नहीं माना जाता। उत्तर और मध्य भारत की बात करें तो दशहरे के दिन जलेबी जरूर खाई जाती है। आप चाहें बाजार से मंगवाएं या घर पर बनाएं लेकिन जलेबी से मुंह मीठा किए बिना रावण दहन भी अधूरा माना जाता है। दशहरा और जलेबी का मजेदार संबंध प्रभु श्रीराम से जुड़ा है। रावण दहन के बाद जलेबी खाने की परंपरा बहुत ही पुरानी है और हिंदुस्तानी इसे पूरे चाव से पूरा करते आए हैं। पुराणों की मानों तो कई जगहों पर कहा गया है कि जलेबी श्रीराम के पसंदीदा मिठाई में से एक थी। वो जब प्रसन्न होते थे तो जलेबी जरूर खाते थे। उस युग में जलेबी को ‘शश्कुली’ कहकर बोला गया है। इसलिए जब श्रीराम ने रावण का वध किया तो लोगों ने श्रीराम की पसंदीदा मिठाई से मुंह मीठा करके अपने आराध्य के नाम का जयकारा लगाया। तबसे दशहरे पर जलेबी खाने का चलन बन गया।
पुराने जमाने में जलेबी को ‘कर्णशष्कुलिका’ कहा जाता था। कहा जाता है कि श्रीराम के जन्म के समय महल में बनी कर्णशष्कुलिका पूरे राज्य में बंटवाईं गई थी। राम जन्म के समय पूरी अयोध्या ने जलेबियों का स्वाद लिया था और खुद श्रीराम भी इन्हें खाना बहुत पसंद करते थे। 17वीं सदी की ऐतिहासिक दस्तावेज में एक मराठा ब्राह्मण रघुनाथ ने जलेबी बनाने की विधि का उल्लेख कुण्डलिनि नाम से किया है।” भोजनकुतूहल नामक किताब में भी अयोध्या रामजन्म के समय प्रजा में जलेबियां बंटने का जिक्र किया गया है। कई जगह इसे शश्कुली के नाम से भी उल्लिखित किया गया है। जलेबी की बात करते ही मुंह में पानी आ जाना लगभग तय माना जाता है। रसभरी घुमावदार गलियों की तरह जलेबी गर्मागर्म खाई जाए तो मानों जीभ को स्वाद आ जाता है। देश में यूं तो कई तरह की जलेबियां बनती हैं लेकिन रसभरी, पनीर जलेबी, गन्ने के रस की जलेबी, खोए की जलेबी के अपने ही जलवे हैं। इंदौर अपनी सबसे भारी और सबसे घुमावदार जलेबी के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है।
जी हां जलेबी से भी ज्यादा पतली और ज्यादा सलीकेदार कही जाने वाली उसकी बहन इमरती को भी रावण दहन के बाद चाव से खाया जाता है। अब जलेबी की इतनी बातें हो गई हैं तो जलेबी कैसे बनाई जाती है, ये ना बताना अपराध होगा।
चलिए जानते हैं कि जलेबी कैसे बनाते हैं।
1 बाउल मैदा
2 चम्मच कस्टर्ड पाउडर
1/4 चम्मच बेकिंग पाउडर
2 चम्मच दही
1/2 चम्मच विनेगर
1/4 चम्मच जलेबी का कलर
1 बाउल चाश्नी
1 चम्मच पिस्ता बारीक कटा हुआ
फूड कलर 2 बूंद
चीनी 3 कप
केसर चुटकी भर
घी 3 चम्मच
एक बाउल में मैदा डालें।
इसमें कस्टर्ड पाउडर, बेकिंग पाउडर, दही, विनेगर, जलेबी का कलर और पानी डालकर गाढ़ा घोल तैयार कर लें।
इस घोल में पाइपिंग बैग में डालकर तेल में जलेबी छान लें।
चाश्नी बनाने के लिए एक पैन में पानी गर्म करें, इसमें चीनी डालें।
चाश्नी गाढ़ी होने तक इसे उबालें।
फिर चाश्नी को गैस पर से उतारकर इसमें केसर मिला लें।
इसके बाद जलेबियों को चाशनी में डालकर 2 से 3 मिनट तक डुबाए रखें।
सर्व करते समय पिस्ता से गार्निश करें।
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