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प्रकृति की सेहत सुधारने का नैसर्गिक दवाखाना

India News Editor • LAST UPDATED : September 16, 2021, 12:37 pm IST

नवीन जैननवीन जैन (स्तंभकार)

गौ रतलब है कि पृथ्वी का यह सुरक्षा कवच न हो तो कैंसर हो जाए, मोतियाबिंद हो जाए, त्वचा की कांति चली जाए उसमें झुर्रियां पड़ जाएं, रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाए, पेड़ों के पत्तों का आकार छोटा हो जाता है, मक्का, चावल, सोयाबीन और गेहूं जैसी फसलों पर भी पराबैंगनी किरणों से विपरीत असर पड़ता है। पिछले डेढ़ साल से दुनिया भर में कोरोना महामारी के कहर के बीच एक अच्छीे खबर ओजोन परत को लेकर आई है। ओजन परत धरती से आसमान तक 30 से 50 किमी की ऊंचाई में फैला ऐसा प्रकृति प्रदत्त सुरक्षा कवच है जो धरती पर हानिकारक किरणों को आने से रोकता है। अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार क्लोरीनयुक्त मानवनिर्मित क्लोरोफ्लोरोकार्बन पर जो अंतरराष्ट्रीय रोक लगी, उसके कारण ओजोन परत को अपना रफू करने का मौका मिल गया।

इससे उक्त सुरक्षा कवच की 20 से 30 प्रतिशत मरम्मत हुई है। गौरतलब है कि पृथ्वी का यह सुरक्षा कवच न हो तो कैंसर हो जाए, मोतियाबिंद हो जाए, त्वचा की कांति चली जाए उसमें झुर्रियां पड़ जाएं, रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाए, पेड़ों के पत्तों का आकार छोटा हो जाता है, मक्का, चावल, सोयाबीन और गेहूं जैसी फसलों पर भी पराबैंगनी किरणों से विपरीत असर पड़ता है। ओजोन परत 99 प्रतिशत तक पराबैंगनी किरणों का अवशोषण कर लेती है। ओजोन परत में सबसे बड़ा सुराख 1988 में देखा गया था, जो अंटार्कटिका में था। पराबैंगनी किरणों को अल्ट्रावॉयलेट रेजेस कहा जाता है। इस छेद के पड़ने का कारण वैज्ञानिकों ने बताया था सीएफसी गैस की प्रचुरता। इसकी खोज 1920 में हुई थी। इसी के बाद स्प्रे, रेफ्रिजरेटर, हेयर स्प्रे आदि में प्रयोग में आने वाली सीएफसी गैस पर रोक लगाई गई। वैज्ञानिक कहते हैं कि वायुमंडल में 74 हजार टन विभिन्न प्रकार की गैस हैं।

16 सितंबर को मनाया जाने वाला विश्व ओजोन दिवस कोरोना से संघर्ष को देखते हुए अति महत्वपूर्ण है। वैसे इसका फैसला 23 जनवरी 1995 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में जन सामान्य में जागरूकता के प्रचार-प्रसार के लिए किया गया था। दिक्कत यह है इसके पीछे का लक्ष्य पूरा नहीं हो सका।

पूरी दुनिया में चलने वाले फ्रिज, करोड़ों कारों, ट्रेन, मॉल्स में एसी लगे हैं जिनमें सीएफसी गैस इस्तेमाल होती है। कुछ वर्ष पहले वैज्ञानिकों को चार ऐसी मानव निर्मित गैसों का पता चला था, जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रही हैं। इन वैज्ञानिकों के अनुसार 1960 तक इन गैसों की उपस्थिति वायुमंडल में नहीं देखी गई थी। यानी ये मानव निर्मित हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि कीटनाशकों के उत्पादन और बिजली उपकरणों की सफाई में काम आने वाली गैसों ने ओजोन परत को क्षति पहुंचाई।

 

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