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प्रेग्नेंट महिलाओं को अटैक करता है Gestational Diabetes, शरीर पर ये लक्षण दिखें तो तुरंत कराएं जांच

India News (इंडिया न्यूज), Gestational Diabetes Dangerous In Pregnancy: प्रेग्नेंसी के दौरान स्वास्थ्य संबंधी कई चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं, और इनमें से एक प्रमुख चिंता है जेस्टेशनल डायबिटीज। यह एक प्रकार का डायबिटीज है जो केवल गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है और प्रेग्नेंसी के दौरान ही विकसित होता है। इसके बारे में जानना और इसे समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासकर उन महिलाओं के लिए जो इस स्थिति से गुजर रही हैं या इसकी संभावनाओं के बारे में चिंतित हैं।

जेस्टेशनल डायबिटीज क्या है?

जेस्टेशनल डायबिटीज (Gestational Diabetes) एक प्रकार का मधुमेह है जो गर्भावस्था के दौरान विकसित होता है। इस स्थिति में, शरीर का इंसुलिन हार्मोन ठीक से काम नहीं करता, जिससे ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है। सामान्यतः, यह प्रेग्नेंसी के दूसरे या तीसरे ट्राइमेस्टर के दौरान होता है और इसे नियंत्रित करना आवश्यक होता है ताकि मां और बच्चे दोनों की सेहत को सुनिश्चित किया जा सके।

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जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण

जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण अक्सर स्पष्ट नहीं होते हैं, लेकिन कुछ सामान्य संकेतों में शामिल हो सकते हैं:

  • अत्यधिक प्यास लगना
  • बार-बार मूत्राशय में जाना
  • थकान या कमजोरी महसूस करना
  • धुंधली दृष्टि

जेस्टेशनल डायबिटीज के कारण

जेस्टेशनल डायबिटीज के कारण पूरी तरह से समझे नहीं गए हैं, लेकिन कुछ जोखिम तत्व हैं जो इसके विकास के संभावनाओं को बढ़ा सकते हैं:

  • अधिक वजन या मोटापा
  • परिवार में डायबिटीज का इतिहास
  • गर्भावस्था के दौरान उम्र बढ़ना
  • पहले की प्रेग्नेंसी में जेस्टेशनल डायबिटीज का अनुभव

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प्रभाव और खतरे

यदि जेस्टेशनल डायबिटीज का उचित प्रबंधन न किया जाए, तो इससे मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं:

  • मां के लिए: उच्च रक्त शुगर के कारण उच्च रक्तचाप, अधिक वजन बढ़ना, और भविष्य में टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ सकता है।
  • बच्चे के लिए: जन्म के समय अधिक वजन (मैक्रोसॉमिया), नवजात शिशु में शुगर की कमी, और भविष्य में मधुमेह जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

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प्रबंधन और उपचार

जेस्टेशनल डायबिटीज का उचित प्रबंधन आवश्यक है और इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  • डाइट प्लान: संतुलित और स्वास्थ्यवर्धक आहार लेना, जिसमें कम चीनी और कम कार्बोहाइड्रेट्स शामिल हों।
  • शारीरिक गतिविधि: नियमित हल्की फुल्की एक्सरसाइज करना, जैसे वाकिंग या योग।
  • ब्लड शुगर मॉनिटरिंग: नियमित रूप से ब्लड शुगर लेवल की निगरानी करना।
  • मेडिकल ट्रीटमेंट: डॉक्टर द्वारा सुझाए गए इंसुलिन या अन्य दवाओं का उपयोग।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

Prachi Jain

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