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एक तवायफ के कहने पर अपने बेटे की आंख तक डाली थी फोड़ इस मुगल बादशाह ने…जानवर से भी ज्यादा क्रूर बन गया था ये बाप!

India News (इंडिया न्यूज), Mughal Badshah Jahandar Shah: जहांदार शाह मुग़ल साम्राज्य के उस दौर का बादशाह था, जिसने न केवल अपने साम्राज्य का पतन देखा, बल्कि उसे अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और अय्याशी के कारण नष्ट भी कर दिया। वह बहादुर शाह जफर का बेटा था और अपने पिता से बहुत अलग था। जहांदार शाह का शासन उस समय की मुग़ल सत्ता का सबसे कमजोर और विफल दौर माना जाता है, क्योंकि उसने राजकाज की बजाय अपने व्यक्तिगत सुख-साधनों और भोग-विलास को प्राथमिकता दी।

सत्ता में आने के बाद का जहांदार शाह का आचरण

जहांदार शाह ने 1712 में अपने पिता बहादुर शाह जफर की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य की सत्ता संभाली। हालांकि वह एक कमजोर और लापरवाह शासक था, जिसने सत्ता का सही उपयोग नहीं किया। इतिहासकारों के अनुसार, जहांदार शाह का अधिकांश समय तवायफों और शराब के बीच बीता, और उसे शासन की जिम्मेदारियों में कोई रुचि नहीं थी। वह अपने दरबार में नाच-गाने और मदिरा के सेवन में अधिक समय व्यतीत करता था। इसके परिणामस्वरूप, उसकी प्रशासनिक और सैन्य शक्तियां कमजोर हो गईं, और मुग़ल साम्राज्य का बुरी तरह से शोषण हुआ।

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लाल कुंवर के प्रभाव में आकर परिवार से दूरियां

जहांदार शाह के जीवन में एक महिला का विशेष प्रभाव था, जिनका नाम था लाल कुंवर। वह एक तवायफ थी, और जहांदार शाह ने उसे अपनी जीवनसंगिनी बना लिया। लाल कुंवर का प्रभाव इतना बढ़ गया था कि वह जहांदार शाह को अपने परिवार से दूर करने में सफल रही। उसने अपने आकर्षण का फायदा उठाते हुए, जहांदार शाह को अपने पुत्रों और अन्य रिश्तेदारों से दूर कर दिया।

इसके अलावा, लाल कुंवर के कहने पर जहांदार शाह ने अपने ही बेटे की दोनों आंखें फुड़वा दीं, जो कि उस समय के एक अत्यधिक क्रूर और अनैतिक फैसले के रूप में दर्ज है। यह घटना जहांदार शाह की विकृति और तामसिक प्रवृत्तियों को दर्शाती है।

अय्याशी और भोग-विलास में डूबे शासन के परिणाम

जहांदार शाह के शासन के दौरान, दरबार में नाच-गाने और भोग-विलास करने वालों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। जहांदार शाह स्वयं भी औरतों जैसे कपड़े पहनने में कोई संकोच नहीं करता था। उसकी यह आदतें न केवल उसे एक कमजोर शासक बनाती थीं, बल्कि यह मुग़ल साम्राज्य के संकटों का कारण भी बनीं।

जहांदार शाह की इस प्रवृत्ति ने उसकी शासन क्षमता को खत्म कर दिया। उसके मंत्रियों, खासकर वज़ीर जुल्फिकार ने सत्ता अपने हाथ में ले ली। जुल्फिकार का सत्ता में दखल और जहांदार शाह की अय्याशी का मिलाजुला प्रभाव, मुग़ल साम्राज्य के पतन का एक महत्वपूर्ण कारण बना।

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जहांदार शाह का कुप्रबंधन और साम्राज्य का पतन

जहांदार शाह ने अनेक बेकार और अव्यावहारिक निर्णय लिए, जिनका नतीजा साम्राज्य की अर्थव्यवस्था और सैन्य स्थिति पर पड़ा। उसने खुद को सम्राट से अधिक एक विलासी व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया। उसके अय्याशी के कारण, उसके नेतृत्व में मुग़ल साम्राज्य एक ढहते हुए साम्राज्य में तब्दील हो गया। जबकि मुग़ल साम्राज्य के उत्तराधिकारी और सैन्य जनरलों को चाहिए था कि वे उसकी कमजोरियों को नज़रअंदाज करते हुए साम्राज्य के हित में कदम उठाते, लेकिन वे भी अपनी स्वार्थी राजनीति में लिप्त रहे।

इतिहास में जहांदार शाह का स्थान

जहांदार शाह को इतिहास में सबसे मूर्ख और कमज़ोर मुग़ल बादशाह के तौर पर पहचाना जाता है। उसके शासनकाल में न केवल सत्ता की लूट मची, बल्कि यह मुग़ल साम्राज्य के पतन की शुरुआत भी मानी जाती है। उसने जहां एक ओर व्यक्तिगत सुख-साधन और भोग-विलास को प्राथमिकता दी, वहीं दूसरी ओर अपने साम्राज्य की शक्ति को नष्ट कर दिया।

यह कहा जा सकता है कि जहांदार शाह का जीवन और शासन मुग़ल साम्राज्य के अंतर्गत एक त्रासदी था, जिसका परिणाम केवल उसे ही नहीं, बल्कि पूरी जनसंख्या और साम्राज्य के अस्तित्व को भुगतना पड़ा। उसका अय्याशी और सत्ता से दूरी एक दुखद उदाहरण है कि किस तरह एक कमजोर और अव्यवस्थित शासक अपने साम्राज्य को अराजकता और पतन की ओर ले जा सकता है।

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जहांदार शाह की कहानी यह सिखाती है कि एक शासक का निजी जीवन और निर्णय न केवल उसकी प्रतिष्ठा पर असर डालते हैं, बल्कि सम्राट के शासन का भविष्य भी इस पर निर्भर करता है। मुग़ल साम्राज्य में जहांदार शाह का शासन एक कड़ा संदेश देता है कि जब शासक अपने कर्तव्यों और ज़िम्मेदारियों से विमुख हो जाता है, तो उसका साम्राज्य अवश्य ही पतित हो जाता है।

Prachi Jain

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