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आपके दिमाग के साथ खेलता हैं लिफ्ट में लगा शीशा, शक्ल दिखाकर करता हैं ये काम?

Prachi Jain • LAST UPDATED : August 12, 2024, 3:32 pm IST
आपके दिमाग के साथ खेलता हैं लिफ्ट में लगा शीशा, शक्ल दिखाकर करता हैं ये काम?

India News (इंडिया न्यूज़), Mirror In The Lift: क्या आप जानते हैं पहले के समय में लिफ्ट में कभी भी शीशा नहीं हुआ करता था लेकिन अब आमूमन हर लिफ्ट में शीशा देखने को मिलता हैं ऐसा क्यों अब आप कहेंगे कि अरे ये बस प्रगति का एक और स्टेप हैं देश में जब नई-नई टेक्नोलॉजीज़ आ रही हैं तो इसमें क्या दिक्कत हैं लेकिन नहीं आप यहां थोड़े से गलत हैं क्योंकि शीशा सिर्फ आपकी शक्ल देखने को नहीं लगा होता हैं बल्कि ये आपके दिमाग के साथ एक छोटा सा खेल खेलता हैं जी हाँ!

कभी आपने गौर किया है कि लगभग हर लिफ्ट में शीशा क्यों होता है? शायद आपने सोचा होगा कि यह सिर्फ खुद को देखने के लिए है, लेकिन इसके पीछे एक दिलचस्प और उपयोगी कारण छिपा हुआ है। दरअसल, पहले की लिफ्टों में शीशे नहीं होते थे, और यात्रियों को ऐसा महसूस होता था कि लिफ्ट बहुत तेजी से चल रही है। इस समस्या का समाधान करने के लिए, डिजाइनरों और इंजीनियरों ने एक अनोखा तरीका खोजा—लिफ्ट में शीशे लगाने का।

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लिफ्ट की गति और यात्रियों की धारणा

जब लिफ्ट में शीशे नहीं थे, तो लोग अक्सर लिफ्ट की गति को वास्तविकता से अधिक अनुभव करते थे। लिफ्ट के ऊपर और नीचे जाने की गति पर ध्यान केंद्रित करने के कारण यात्रियों को लगता था कि लिफ्ट बहुत तेज़ी से चल रही है। इसके कारण कई लोगों को असहजता और घबराहट महसूस होती थी।

इंजीनियरों और डिजाइनरों ने इस समस्या का हल ढूंढने के लिए गहन विचार किया। उन्होंने महसूस किया कि अगर यात्रियों का ध्यान लिफ्ट की गति से हटाकर किसी अन्य चीज़ पर केंद्रित किया जाए, तो यह समस्या हल हो सकती है। इसी विचार के तहत, उन्होंने लिफ्ट में शीशे लगाने का फैसला किया।

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शीशे का मनोवैज्ञानिक प्रभाव

जब लिफ्ट में शीशे लगाए गए, तो यात्रियों का ध्यान शीशे में अपनी ही छवि देखने में लग गया। इससे उनका ध्यान लिफ्ट की गति से हट गया, और उन्हें लिफ्ट की गति तेज़ महसूस नहीं हुई। यह एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण था, जिसने यात्रियों की धारणा को बदल दिया और लिफ्ट में यात्रा को अधिक आरामदायक बना दिया।

इस प्रयोग ने न केवल यात्रियों की घबराहट को कम किया, बल्कि उन्हें लिफ्ट में यात्रा का सकारात्मक अनुभव भी दिया। लिफ्ट में शीशे लगाने का यह निर्णय यात्रियों के लिए एक सुखद अनुभव प्रदान करने में सफल रहा।

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क्लॉस्ट्रोफोबिया और स्पेस का अहसास

इसके अलावा, लिफ्ट में शीशे का एक और महत्वपूर्ण फायदा है। कुछ लोग छोटी और बंद जगहों में घुटन या असहजता महसूस करते हैं, जिसे क्लॉस्ट्रोफोबिया कहा जाता है। लिफ्ट में शीशे लगाने से अंदर का क्षेत्र बड़ा और खुला हुआ महसूस होता है, जिससे घुटन का अहसास कम हो जाता है। यात्रियों को यह महसूस होता है कि लिफ्ट का अंदरूनी हिस्सा अधिक स्पेस वाला है, जिससे उनकी असहजता कम हो जाती है।

डिजाइन और उपयोगिता का संगम

लिफ्ट में शीशा लगाने का यह प्रयोग वास्तव में डिजाइन और मनोविज्ञान का एक अनूठा संगम है। यह एक छोटी सी तकनीकी व्यवस्था है, जिसने यात्रियों के अनुभव को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह दिखाता है कि कैसे डिजाइन और इंजीनियरिंग, जब मनोविज्ञान के साथ मिलकर काम करती हैं, तो एक साधारण सी व्यवस्था भी हमारे जीवन में बड़ा बदलाव ला सकती है।

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अगली बार जब आप लिफ्ट में हों, तो ध्यान दीजिएगा कि यह शीशा सिर्फ आपको खूबसूरत दिखाने के लिए नहीं है—यह आपकी यात्रा को सुगम और आरामदायक बनाने के लिए एक सोच-समझकर लिया गया निर्णय है।

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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