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सावन में पांच दिनों तक बिना कपडे पहने रहती हैं इस गांव की महिलाएं, वजह जान दंग रह जाएंगे आप!

Prachi Jain • LAST UPDATED : July 22, 2024, 9:00 pm IST
सावन में पांच दिनों तक बिना कपडे पहने रहती हैं इस गांव की महिलाएं, वजह जान दंग रह जाएंगे आप!

India News (इंडिया न्यूज़), Savan Customs In Himachal Pradesh: सावन के महीने में कुछ गांवों में महिलाएं विशेष रीति-रिवाजों का पालन करती हैं, जो सदियों से चली आ रही परंपराओं और मान्यताओं का हिस्सा होती हैं। ऐसे ही एक गांव की महिलाओं के बारे में कहा जाता है कि वे सावन के कुछ दिनों तक बिना कपड़े पहने रहती हैं। इस परंपरा के पीछे एक विशेष कारण होता है जो उस गांव की धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़ा होता है।

हिमाचल प्रदेश के मणिकर्ण घाटी के पास स्थित पीणी गांव की महिलाओं का सावन के महीने में पांच दिनों तक बिना कपड़े पहने रहने की परंपरा एक अद्वितीय और प्राचीन धार्मिक अनुष्ठान है। यह परंपरा धार्मिक मान्यताओं और लोककथाओं से जुड़ी हुई है, जो सदियों से चली आ रही है।

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पीणी गांव की परंपरा का विवरण:

  1. परंपरा की शुरुआत: पीणी गांव की इस अनोखी परंपरा का संबंध गांव के आराध्य देवता से है। यह माना जाता है कि इस अनुष्ठान से गांव में खुशहाली, समृद्धि और सुरक्षा बनी रहती है।
  2. रिवाज का पालन: सावन के महीने में पांच दिनों तक महिलाएं अपने कपड़े उतारकर खेतों में काम करती हैं। यह अनुष्ठान देवी-देवताओं को खुश करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है।
  3. सामाजिक और धार्मिक मान्यता: इस परंपरा के पीछे यह मान्यता है कि इस अनुष्ठान से गांव पर आने वाली विपत्तियों का नाश होता है और फसलों की अच्छी पैदावार होती है। यह भी माना जाता है कि इस रिवाज का पालन करने से देवता प्रसन्न होते हैं और गांव को उनकी कृपा प्राप्त होती है।
  4. समाजिक समर्थन: गांव के लोग इस परंपरा को गहरे आदर और श्रद्धा के साथ निभाते हैं। महिलाओं के इस अनुष्ठान के दौरान गांव के पुरुष और अन्य लोग उनका सम्मान करते हैं और इस दौरान गांव में विशेष नियम और अनुशासन का पालन किया जाता है।

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सांस्कृतिक महत्व:

इस तरह की परंपराएं और रीति-रिवाज स्थानीय संस्कृति और धार्मिक विश्वासों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं। ये न केवल धार्मिक आस्था का प्रदर्शन करती हैं, बल्कि समाज में एकता और सामूहिकता की भावना को भी बढ़ावा देती हैं। हिमाचल प्रदेश जैसे स्थानों में जहां प्रकृति और संस्कृति का गहरा संबंध है, ऐसी परंपराएं ग्रामीण जीवन और सामाजिक संरचना का अभिन्न हिस्सा होती हैं।

इस अनुष्ठान की प्राचीनता और विशिष्टता इसे एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर बनाती है, जो स्थानीय लोगों की धार्मिक आस्था और परंपराओं को प्रदर्शित करती है।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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