1. अत्यधिक आर्थिक शोषण
ब्रिटिश शासन का सबसे बड़ा प्रभाव भारत की आर्थिक समृद्धि का ह्रास था। भारत की संपत्ति को योजनाबद्ध तरीके से ब्रिटेन में स्थानांतरित किया गया, जिसे “ड्रेन ऑफ वेल्थ” कहा जाता है। भारत से कच्चा माल ब्रिटेन भेजा जाता था, और तैयार माल को भारत में ऊंचे दामों पर बेचा जाता था। इस नीति ने भारत को गरीब बना दिया। देश में बेरोजगारी और गरीबी ने विकराल रूप धारण किया, जिससे भारतीयों का जीवनस्तर लगातार गिरता गया। पारंपरिक भारतीय उद्योगों, जैसे हस्तशिल्प और कपड़ा उद्योग, को खत्म कर दिया गया, जिससे देश की आत्मनिर्भरता समाप्त हो गई।
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2. अकाल और भुखमरी
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में कई विनाशकारी अकाल आए, जिनमें लाखों लोग भूख से मारे गए। ये अकाल अक्सर अंग्रेजों की नीतियों का प्रत्यक्ष परिणाम थे। जैसे कि 1943 का बंगाल अकाल, जिसमें करीब 30 लाख लोग मारे गए। अंग्रेजों की लापरवाही, अनियोजित नीतियाँ और प्राकृतिक आपदाओं की अनदेखी ने इन अकालों की विभीषिका को और अधिक बढ़ा दिया। जबकि ब्रिटिश हुकूमत ने अपने फायदे के लिए अनाज का निर्यात जारी रखा, भारत की जनता भूख और गरीबी से जूझती रही।
3. भारतीयों के साथ नस्लीय भेदभाव
अंग्रेज शासक भारतीयों को अपने से नीचा और पिछड़ा समझते थे, और यही मानसिकता उनके शासन में परिलक्षित होती थी। भारतीयों को हर क्षेत्र में नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा। सरकारी नौकरियों में, शिक्षण संस्थानों में, और यहां तक कि सार्वजनिक स्थलों पर भी भारतीयों के साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया। भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता था, और जो काम उन्हें दिए जाते थे, वे अक्सर बेहद नीच या कठिन होते थे। इसी नस्लीय भेदभाव ने भारतीयों को अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई में एकजुट किया।
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4. संस्कृति और धरोहर का विनाश
ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीय संस्कृति और धरोहरों को नष्ट करने की पूरी कोशिश की। उनकी नीतियों का उद्देश्य भारतीयों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से काटना था। उन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली को बदलने का प्रयास किया और पश्चिमी संस्कृति को बढ़ावा दिया। अंग्रेजों ने भारतीय स्थापत्य कला और ऐतिहासिक धरोहरों को भी नुकसान पहुंचाया। धार्मिक स्थलों को नष्ट किया गया या उनके महत्व को कम किया गया। भारतीय साहित्य और परंपराओं को भी दबाने की कोशिश की गई, ताकि भारतीयों की सांस्कृतिक पहचान कमजोर हो सके।
5. सांप्रदायिकता को बढ़ावा
ब्रिटिश शासन का एक और खतरनाक पहलू था सांप्रदायिकता का बढ़ावा देना। अपने “फूट डालो और राज करो” की नीति के तहत, अंग्रेजों ने भारत में सांप्रदायिक विभाजन को गहराया। धार्मिक और जातीय विभाजन को बढ़ावा देकर, अंग्रेजों ने भारतीयों को एकजुट होने से रोका और उनकी शक्ति को कमजोर किया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत को आजादी के समय भी सांप्रदायिक हिंसा और विभाजन का सामना करना पड़ा। अंग्रेजों द्वारा बोई गई यह सांप्रदायिकता की आग आज भी देश में कई समस्याओं का कारण बनी हुई है।
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निष्कर्ष
ब्रिटिश हुकूमत के दौरान भारत ने केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही नहीं, बल्कि आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक रूप से भी अपार हानि उठाई। आर्थिक शोषण से लेकर नस्लीय भेदभाव, सांप्रदायिकता के बीज बोने तक, अंग्रेजों ने अपने शासन के दौरान भारत को एक कमजोर और विभाजित राष्ट्र बनाने की पूरी कोशिश की। हालांकि, इस शोषण और अन्याय ने भारतीयों के अंदर आजादी की तड़प और संघर्ष की भावना को भी जागृत किया, जिसने अंततः देश को स्वतंत्रता दिलाई।
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