इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली:
1946 से शुरू हुए कान्स फिल्म फेस्टिवल (Cannes Film Festival 2022) को साल 2022 में 75 साल पूरे होने जा रहे हैं। इस समारोह में दुनिया भर की चुनिंदा डॉक्यूमेंट्री को दिखाया जाता है। समारोह की शुरुआत 17 मई से हो होगी और इसका समापन 26 मई को होगा इस दौरान भारत की फिल्मों की स्क्रीनिंग भी की जाएगी। सबसे खास बात है कि इस बार भारत कान समारोह में कंट्री ऑफ ऑनर (country of honor) के रूप में हिस्सा ले रहा है।
मुंबई के रहने वाले इस लेखक/डायरेक्टर/ प्रोड्यूसर को बनाई फिल्म ’एल्फा बीटा गामा’ (alpha beta gamma) को पहले तो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (International Film Festival of India) में खिताब मिला और अब विश्व के सबसे मंच में कान्स में भी चुनी गई है । किस आधार पर व यह फिल्म को इतना बड़ा खिताब मिला व अन्य तमाम मुद्दे पर फिल्म के निर्माता शंकर श्रीकुमार (Shankar Sreekumar) से योगेश कुमार सोनी की बातचीत के मुख्य अंश।
यह मेरे बिल्कुल सपने जैसा है। मुझे बिल्कुल भी यकीन नही हो रहा है कि मेरी फिल्म इतने बड़े मंच पर चुनी गई। इस पटल पर दुनियाभर के दिग्गजों की फिल्म ही चुनी जाती है और जितनी मेरी उम्र नही उससे ज्यादा तो उनके पास अनुभव है। यह किसी भी लेखक/डायरेक्टर/ प्रोड्यूसर के लिए एक सपने जैसा होता है। फिल्म को बनाने के लिए बहुत मेहनत की है जिसका भगवान ने मुझे यह परिणाम दिया है।
एक शादी टूट रही है और एक होने वाली है। चिरंजीव नाम का एक व्यक्ति अपनी पत्नी से अलग रहता है। इसको लगता है कि उसकी शादी उसके करियर को खराब कर देगी तो उसने मिताली व अपने घर को छोड दिया था। अब वो एक कामयाब फिल्म मेकर है
मिताली, चिरंजीव को फोन करके कहती है कि वह भी अपने ऑफिस में रवि नाम के लड़के से प्यार करती है और अब वह भी अलग होना चाहती है। चिरनजीवी इस बात को सुनकर बहुत बेचैन हो जाता है और मिताली से कहता है कि वह रात को अपने घर आकर बात करता है और जब वह घर जाता है तो रवि भी वहीं होता है। कोरोना काम समय होता है और उनकी अपार्टमेंट में किसी को कोरोना होता है और बिल्डिंग सील हो जाती है जिससे वह तीनों चौदह के लिए घर में एक साथ रहते हैं और इसके बाद तीनों की जिंदगी बदल जाती है।
बीते वर्ष 2020 में मैंने अपने स्वयं की करीब यह फिचर फिल्म बनाई जिसमें करीब मैंने चालीस लोगों को एकत्रित काम शुरु कर दिया। कोरोना काल का समय था दुनिया के साथ हम भी संकट के दौर से गुजर रहे थे लेकिन जज्बा मेरी पूरी टीम में था। अप्रैल में स्क्रिप्ट लिखी,मई में कलाकार और क्रू ढूंढा और जुलाई में इसको शूट किया। चूंकि पैसा खत्म हो चुका था तो इसलिए शूटिंग रुक गई थी। इसके बाद नंबर 2020 नोन- सेंस इंटरटेंटमेंट हमारे साथ जुडा और उन्होंने हमारी स्क्रिप्ट अच्छी लगी और उन्होंने हमारी फिल्म को आगे बढाया और बीते वर्ष जून में हमारी फिल्म पूरी हुई।
आजकल रिश्तों को समझना मुश्किल क्यों होता जा रहा है। यदि दोनों ही दंपत्ति काम करने वाले होते हैं तो रिश्ते ज्यादा उलझ जाते है। आपके इस पर विचार। रिश्तों को समझना हमेशा से ही मुश्किल था चूंकि रिश्ते को समझने व निभाने के लिए कुछ समय चाहिए होता है। लेकिन अब लोगों पर समय का इतना अभाव होता है कि वह रिश्तो समझना ही नही चाहते। रिश्ता एक भरोसा है,एहसास है,दोनों लोगों की जिम्मेदारी है जिसे मिलकर ही निभाना होता है। यदि एक भी कमजोर पड़ जाएगा तो काम नही चलेगा।
इस फिल्म के बाद मेरे पंखों को उड़ान मिल गई और मैं हाल ही परिवेश में रिश्तों का रिश्तों की सच्चाई दर्शाना चाहता हूं। उलझते रिश्तों को सुलझाने की कहानी लिखना चाहता हूं। मैं अभी दो फिल्में और बना रहा हूं जिनका नाम हैं ‘स्वपन सुंदरी’ व दूसरी का नाम तय नही हुआ है लेकिन उसकी भी स्क्रिप्ट लिखना शुरु कर दिया।
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