काफी गौरवशाली इतिहास है अमृतसर शहर का

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :

अमृतसर स्थित सेंट्रल सिख म्यूजियम में धर्म के विरोध में किए गए सिखों के त्याग और बलिदान को पेंटिंगों के जरिए दशार्या गया है। इसके साथ ही कुछ प्राचीन सिक्कों, शस्त्रों और हस्तनिर्मित पुस्तकों का भी संकलन इस म्यूजियम में है।
इतिहास में उल्लेख मिलता है कि अमृतसर की स्थापना सन 1579 में हुई थी। आज भी यह पुराना शहर चारों ओर से एक दीवार से घिरा हुआ है जिसमें 20 प्रवेशद्वार हैं।

सिखों के चौथे गुरु रामदास ने की थी अमृतसर शहर की स्थापना

स्वर्ण मंदिर के लिए देश-दुनिया में प्रसिद्ध अमृतसर शहर की स्थापना सिखों के चौथे गुरु रामदास द्वारा की गई थी। उन्होंने यहां तालाब का निर्माण कराया जिसकी भूमि भेंट में मुगल शासक अकबर द्वारा दी गई थी। इसी तालाब को अमृत का तालाब भी कहा जाता है। जिसके आधार पर इस शहर को अमृतसर कहा जाता है। तालाब के बीच में बना भव्य मंदिर गुरु रामदास के पुत्र अर्जुनदेव ने बनवाया था। इस मंदिर में सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहब को रखा गया है।
गुरु अर्जुनदेव द्वारा बनाए गए तालाब के मध्य में बने मंदिर को सन 1803 में पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह ने संगमरमर, तांबे व सोने से मढ़वाया। एक अनुमान के अनुसार इस मंदिर में लगा सोना लगभग 400 किलो तक है जिसके कारण इस मंदिर को स्वर्ण मंदिर नाम दिया गया है। इसे हरि मंदिर व दरबार साहब के नाम से भी पुकारा जाता है। यह मंदिर अपने चार प्रवेशद्वारों से आने-जाने वालों का स्वागत करता हुआ लगता है।

सेंट्रल सिख म्यूजियम में पेंटिंगों के जरिए दशार्या सिखों के त्याग और बलिदान को

सेंट्रल सिख म्यूजियम में धर्म के विरोध में किए गए सिखों के त्याग और बलिदान को पेंटिंगों के जरिए दशार्या गया है। इसके साथ ही कुछ प्राचीन सिक्कों, शस्त्रों और हस्तनिर्मित पुस्तकों का भी संकलन इस म्यूजियम में है। अमृतसर के लोहागढ़ प्रवेशद्वार के बाहरी ओर स्थित दुर्गा मंदिर भी देखने योग्य है। दुर्गा मंदिर की शिल्पकला स्वर्ण मंदिर के समान लगती है।
अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में किए गए आंदोलन में एकत्रित लोगों को एक ब्रिटिश जनरल के आदेश पर बेदर्दी के साथ गोलियों से भून कर मौत के घाट उतार दिया गया था। 13 अप्रैल 1919 की यह घिनौनी याद आज भी जलियांवाला बाग की दीवारों पर गोलियों के निशान बनकर अंग्रेज शासकों की क्रूरता का परिचय देती है। इस हत्याकांड में करीबन 2000 मासूम लोगों की जानें चली गई थीं। स्वतंत्रता आंदोलन के इन शहीदों की याद में जलियांवाला बाग को बेहद खूबसूरत उद्यान बना दिया गया है तथा इसके अंदर एक अमर ज्योति प्रज्जवलित की गई है जो हर समय जल कर उन शहीदों के त्याग और बलिदान की यादों को तरोताजा रखती है तथा उनके प्रति श्रद्धांजलि भी अर्पित करती है।

कार्तिक की पूर्णिमा पर लगता है चार दिवसीय मेला

अमृतसर के पश्चिम में लगभग 11 किलोमीटर दूर स्थित राम तीर्थ पर एक बड़ा तालाब और कई मंदिर हैं। इस जगह पर हर वर्ष कार्तिक की पूर्णिमा पर चार दिवसीय मेला लगता है। देश के विभिन्न भागों से हजारों लोग इस पवित्र स्थान के दर्शन के लिए आते हैं।

अमृतसर हस्तनिर्मित वस्तुओं के लिए भी बहुत प्रसिद्ध

अमृतसर हस्तनिर्मित वस्तुओं के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। विभिन्न प्रकार के पारम्परिक डिजाइन, फुलकारी के वस्त्र यहां की खास विशेषता हैं। इसके अतिरिक्त पंजाबी जूते, आभूषण तथा सजावट की वस्तुएं भी आप यहां से खरीद सकते हैं। अमृतसर देश के विभिन्न भागों से रेल तथा सड़क मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। आप चाहे देश के किसी भाग में हों, आपको यहां तक आने के लिए कोई खास दिक्कत नहीं होगी।

Mukta

Sub-Editor at India News, 7 years work experience in punjab kesari as a sub editor, I love my work and like to work honestly

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