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Animals Also Have the Right to Live like Humans जानवरों को भी इंसान की ही तरह जीने का हक

Animals Also Have the Right to Live like Humans

पंकज चतुर्वेदी
स्तंभकार

जुलाई 2018 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि जानवरों को भी इंसान की ही तरह जीने का हक है। वे भी सुरक्षा, स्वास्थ्य और क्रूरता के विरुद्ध इंसान जैसे ही अधिकार रखते हैं। वैसे तो हर राज्य ने अलग-अलग जानवरों को राजकीय पशु या पक्षी घोषित किया है लेकिन असल में ऐसे आदेशों से जानवर बचते नहीं हैं। जब तक समाज के सभी वर्गों तक यह संदेश नहीं जाता कि प्रकृति ने धरती पर इंसान, वनस्पति और जीव-जंतुओं को जीने का समान अधिकार दिया है, तब तक उनके संरक्षण को इंसान अपना कर्तव्य नहीं मानेगा।

यह सही है कि जीव-जंतु या वनस्पति अपने साथ हुए अन्याय का न तो प्रतिरोध कर सकते हैं और न ही अपना दर्द कह पाते हैं, परंतु इस भेदभाव का बदला खुद प्रकृति ने लेना शुरू कर दिया। आज पर्यावरण संकट का जो चरम रूप सामने दिख रहा है, उसका मूल कारण इंसान द्वारा पैदा किया गया असंतुलन ही है।

परिणाम सामने है कि अब धरती पर अस्तित्व का संकट है। समझना जरूरी है कि जिस दिन खाद्य श्रृंखला टूट जाएगी, धरती से जीवन की डोर भी टूट जाएगी। प्रकृति में हर एक जीव-जंतु का एक चक्र है। जैसे कि जंगल में यदि हिरण जरूरी है तो शेर भी। यह सच है कि शेर का भोजन हिरण ही है लेकिन प्राकृतिक संतुलन का यही चक्र है।

यदि किसी जंगल में हिरण की संख्या बढ़ जाए तो वहां अंधाधुंध चराई से हरियाली का संकट खड़ा हो जाएगा, इसीलिए इस संतुलन को बनाए रखने के लिए शेर भी जरूरी है। वहीं ऊंचे पेड़ की नियमित कटाई-छंटाई के लिए हाथी जैसा ऊंचा प्राणी भी और शेर-तेंदुए द्वारा छोड़े गए शिकार के अवशेष को सड़ने से पहले भक्षण करने के लिए लोमड़ी-भेड़िये भी जरूरी हैं। इसी तरह हर जानवर, कीट, पक्षी धरती पर इंसान के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। अब गिद्ध को ही लें।

हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए यह एक अनिवार्य पक्षी है। 90 के दशक कीशुरूआत में भारतीय उपमहाद्वीप में करोड़ों की संख्या में गिद्ध थे लेकिन अब उनमें से कुछ लाख ही बचे हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि उनकी संख्या हर साल आधी होती जा रही है। आधुनिकता ने अकेले गिद्ध को ही नहीं, घर में मिलने वाली गौरैया से लकर बाज, कठफोड़वा व कई अन्य पक्षियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। वास्तव में ये पक्षी जमीन पर मिलने वाले ऐसे कीड़ों व कीटों को अपना भोजन बनाते हैं जो खेती के लिए नुकसानदेह होते हैं। कौवा, मोर, टिटहरी, उकाब व बगुला सहित कई पक्षी पर्यावरण को शुद्ध रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।

जमीन की मिट्टी को उपजाऊ बनाने व सड़े-गले पत्ते खाकर शानदार मिट्टी उगलने वाले केंचुए की संख्या धरती के अस्तित्व के लिए संकट है। प्रकृति के बिगड़ते संतुलन का कारण अधिकतर लोग अंधाधुंध कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग मान रहे हैं। कीड़े-मकोड़े व मक्खियों की बढ़ रही आबादी के चलते इन मांसाहारी पक्षियों की मानव जीवन में बहुत कमी खल रही है। यदि इसी प्रकार पक्षियों की संख्या घटती गई तो आगामी समय में मनुष्य को भारी दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है।

यह सांप सहित कई जनघातक कीट-पतंगों की संख्या को नियंत्रित करने में प्रकृति का अनिवार्य तत्व है। ये खेतों में बोए गए बीजों को खाते हैं। चूंकि बीजों को रासायनिक दवाओं में भिगोया जा रहा है, सो इन्हें खाने से उनकी मृत्यु हो जाती है। सांप को किसान का मित्र कहा जाता है। सांप संकेतक प्रजाति है, इसका मतलब यह है कि आबोहवा बदलने पर सबसे पहले वही प्रभावित होते हैं। इस लिहाज से उनकी मौजूदगी हमारी मौजूदगी को सुनिश्चित करती है।

हम सांपों के महत्व को कम महसूस करते हैं और उसे डरावना प्राणी मानते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि उनके बगैर हम कीटों और चूहों से परेशान हो जाएंगे। यह भी जान लें कि सांप तभी आक्रामक होते हैं, जब उन्हें छेड़ा जाए या हमला किया जाए। वे हमेशा आक्रमण करने की जगह भागने की कोशिश करते हैं। लेकिन हम उन्हें देखते ही मार देते हैं।

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