India News (इंडिया न्यूज़), Arvind Kejriwal :(अजीत मेंदोला)- कांग्रेस आलाकमान का दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रति अचानक जरूरत से ज्यादा सहानुभूति दिखाना समझ से परे माना जा रहा है। वह भी तब जब पंजाब में कांग्रेस के नेताओं ने केजरीवाल की गिरफ़्तारी को सही ठहराया है। जोकि आप सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है।
केजरीवाल पर लगा भ्रष्टाचार का आरोप
यही नहीं कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अजय माकन, पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित, दिल्ली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल चौधरी भी केजरीवाल पर गम्भीर भ्रष्टाचार का आरोप लगा चुके है। सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत इंडिया गठबन्धन के सभी प्रमुख नेताओं को लेकर केजरीवाल ने चोर शब्द प्रयोग किए थे। वहीं सोनिया गांधी को जेल भेजने की बात तक की थी।
वोट बैंक पर लगा सेंध
हैरानी की बात यह है कि अरविंद केजरीवाल की जिस पार्टी ने कांग्रेस के वोट बैंक पर सेंध लगा सत्ता हासिल की उसे आलाकमान गले लगा रहा है। शराब घोटाले के सामने आने से पहले तक आप नेता अरविंद केजरीवाल के निशाने पर हमेशा कांग्रेस ही रही है। जबकि दिल्ली के बाद केजरीवाल की पार्टी (AAP) ने पंजाब में कांग्रेस को ख़त्म कर दिया है।
बता दे कि कांग्रेस अब तक के सबसे बुरे दौर से पंजाब में गुजर रही है। पंजाब में पार्टी बिखर चुकी है, वहीं बचे कुछे नेताओं के पीछे आप सरकार पड़ी हुई है। जबकि गुजरात में कांग्रेस को हाशिए पर ला दिया है।
अरविंद केजरीवाल को आई नेताओं की याद
इतना सब होने के बाद जब दिल्ली में शराब नीति को लेकर ईडी ने केजरीवाल की सरकार पर शिकंजा कसना शुरू किया है, तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उन नेताओं की याद आई जिन्हें उन्होंने भ्रष्ट और चोर तक कहा था। अब हैरानी की बात यह है कि कांग्रेस ने दिल्ली की तीन, हरियाणा और गुजरात की एक-एक सीट के लिए केजरीवाल को गले लगा लिया है। राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी यह भूल गई है कि यहीं केजरीवाल ने अन्ना हजारे के साथ मिलकर कांग्रेस को दुनिया की सबसे भ्रष्ट पार्टी साबित की थी। जिसके बाद जहां बीजेपी की मदद की वहीं दिल्ली में कांग्रेस को ख़त्म कर दिया था।
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केजरीवाल को मिलेगी सहानुभूति?
कांग्रेस अगर इस उम्मीद से केजरीवाल का साथ दे रही है कि केजरीवाल को सहानुभूति मिलेगी तो पार्टी बड़ी भूल कर रही है। यही भूल कांग्रेस ने 2013 में की थी, जिसका खामियाजा आज तक भुगत रही है। यदि राहुल गांधी उस समय दखल नहीं देते तो शायद दिल्ली की राजनीति कुछ अलग होती। जबकि उस समय कांग्रेस के 8 विधायक बीजेपी की सरकार बनाने के पक्ष में थी। साथ ही यह भी तय हो गया था कि आप की सरकार के बजाए बीजेपी सरकार ठीक रहेगी।
खुद को बताया था गरीबों का मसीहा
राहुल गांधी के दखल के चलते कांग्रेस ने उस केजरीवाल का समर्थन करना सही समझा जिसने पार्टी की छवि खराब की थी। 50 दिन केजरीवाल ने सरकार चलाकर फ्री की सारी योजनाएं शुरू कर दी थी। खुद को गरीबों का मसीहा बता कर बेचारा बना दिया। वहीं समर्थन वापसी के बाद ऐसा चुनाव हुआ कि कांग्रेस एक सीट भी नहीं जीत पाई। जिसमें शीला दीक्षित जैसी नेता तक हार गई थी।
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गलत फैसलों का नतीजा
उसके बाद केजरीवाल ने कांग्रेस के वोट बैंक पर सेंध लगाने की योजना बनाकर हर राज्य में पार्टी खड़ी कर दी थी। कांग्रेस के गलत फैसलों का नतीजा यह हुआ कि केजरीवाल ने पंजाब जीता और गुजरात में दूसरे नंबर की पार्टी बन गई।कांग्रेस एक बार फिर गलत रास्ते पर चल पड़ी है।
कांग्रेस ही सबके निशाने पर
यदि केजरीवाल का साथ देने के बाद भी पार्टी दिल्ली में एक भी सीट नहीं जीत पाई तो फिर क्या होगा? इस साल के आखिर में हरियाणा में ओर फिर दिल्ली में चुनाव होंगे। तब आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ रहेगी ऐसा लगता नहीं है। यह भी हो सकता है कि केजरीवाल की पार्टी हरियाणा में कांग्रेस के एक बड़े नेता के साथ मिलकर अलग चुनाव लड़ें। क्योंकि लोकसभा के चुनाव परिणाम 2014,2019 की तरह आए, तो फिर कांग्रेस ही सबके निशाने पर रहने वाली है। जबकि कांग्रेस के आलाकमान की गलती कार्यकर्ता भुगतेंगे।
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