India News (इंडिया न्यूज),Ayodhya News: कांग्रेस ने प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण ठुकरा कर ऐतिहासिक ग़लती कर दी। 2024 के चुनाव से पहले ऐतिहासिक भूल हो चुकी है। ये भूल वैसी ही है जैसे 80 के दशक में शाहबानो केस के वक़्त हुई थी। तब हिंदू वोटबैंक को बैलेंस करने के लिए राजीव गांधी सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवा दिया था। लेकिन इस बार बैलेंस करना मुश्किल है।
भारतीय जनता पार्टी ने पॉलिटिकल नैरेटिव सेट कर दिया है। बीजेपी ने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कह दिया है कि ये ‘गांधी’ की नहीं बल्कि ‘नेहरू’ की कांग्रेस है, क्योंकि महात्मा गांधी ‘रघुपति राघव राजा राम’ गाते थे और कांग्रेस ‘प्राण प्रतिष्ठा’ समारोह में शामिल नहीं हो रही है।
उधर समाजवादी पार्टी के स्वामी प्रसाद मौर्य ने कारसेवकों पर गोली चलाने को जायज़ ठहरा दिया है। बीजेपी को बैठे बिठाए I.N.D.I.A. के ख़िलाफ़ मुद्दा मिल गया है। राहुल गांधी पिछले कुछ सालों में ‘जनेऊ’ दिखा चुके हैं, प्रियंका गांधी ‘आचमन’ कर चुकी हैं। ये सब इसलिए कि कांग्रेस को ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ वाली पार्टी कहा जा सके। लेकिन राम मंदिर का न्योता ठुकरा कर कांग्रेस हिट विकेट हो चुकी है। दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि सियासत में धर्म नहीं चलेगा, लेकिन कांग्रेस के अंदर भी घमासान है।
आचार्य प्रमोद कृष्णम, अंबरीश डेर, विधायक अर्जुन मोढवाडिया जैसे बड़े कांग्रेसी नेताओं ने निमंत्रण ठुकराने पर नाराज़गी जताई है। कांग्रेस ‘कैच-22’ सिचुएशन में है। कांग्रेस को इतिहास से सबक़ लेने की ज़रूरत है। ‘संयोग’ वाले ‘प्रयोग’ फ़ेल होते हैं, कांग्रेस ने बहुत नाकामियां देख ली हैं। धर्म वाली पिच कांग्रेस के मुफ़ीद नहीं रही, तुष्टिकरण के आरोप लगे, सो अलग।
राजीव गांधी ने ताला खुलवाया तो दांव उल्टा पड़ गया, सलमान ख़ुर्शीद ने 2012 में मुस्लिम आरक्षण का दांव चला तो यूपी में मुंह की खानी पड़ी, बाटला हाउस एनकाउंटर पर बयानों ने बंटाधार किया, ‘मौत का सौदागर’ जैसा जुमला भारी पड़ा। ये सब कांग्रेस की ऐतिहासिक भूल थी। धर्म के नाम पर कांग्रेस में हमेशा विचारात्मक विभ्रम रहा। ख़ुद को ‘धर्म निरपेक्ष’ साबित करने के चक्कर में कांग्रेस के कई जतन बैकफ़ायर हुए। 22 जनवरी के दिन अयोध्या जा कर संदेश दिया जा सकता था कि कांग्रेस जनमानस की आस्था की कद्र करती है, लेकिन मौक़ा हाथ से निकल गया।
2024 के चुनाव में जनता की प्रयोगशाला में जाएंगे तो सवाल होंगे कि राम मंदिर क्यों नहीं गए। जवाब देने के लिए जायज़ तर्क नहीं होंगे।
भारतीय वोटर्स में मुसलमान सिर्फ 16 फ़ीसदी हैं, जो भारतीय जनता पार्टी को वोट नहीं देते। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये मिथक तोड़ा है। कांग्रेस के विपरीत अब बीजेपी की राजनीति समझिए जिसमें पसमांदा मुसलमानों के लिए दरवाज़े खोल दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश के एकमात्र मुस्लिम मंत्री दानिश अंसारी पसमांदा समाज से आते हैं।
बीजेपी इसी वर्ग के लिए ‘शुक्रिया मोदी भाईजान’ कार्यक्रम का आयोजन करने जा रही है। बीजेपी और कांग्रेस के बीच अंतर समझिए। कांग्रेस पर ‘तुष्टिकरण का टैग’ है, लेकिन मोदी की बीजेपी ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के सिद्धांत पर चल रही है। बीजेपी के मुस्लिम विरोधी होने का मिथक टूटा है। मोदी सरकार ने शादी शगुन, उस्ताद, मुस्लिम पसमांदा उत्थान जैसी योजनाएं भी शुरू कीं, जिनका सीधा फ़ायदा पसमांदा मुसलमानों को हुआ। कांग्रेस को पारंपरिक सियासी सोच से निकलना होगा। ये वक़्त का तक़ाज़ा है। कांग्रेस के लिए दीवार पर लिखी इबारत को पढ़ना ज़रूरी है।
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