India News (इंडिया न्यूज़), Rashid Hashmi,Bihar News: नीतीश कुमार 18 साल पहले पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। 2005 का बिहार लालू के जंगलराज वाला बिहार था। उस जमाने में अपराध के चक्रव्यूह में सिसकते बिहार को नीतीश से उम्मीदें थीं। 2004 के साल ने बिहार को दहला दिया था। आज़ादी की सालगिरह यानि 15 अगस्त के अगले दिन सिवान की एक किराना दुकान में कुछ ऐसा घटा जिसने पूरे बिहार को दहशत में डाल दिया और सोचने पर मजबूर कर दिया की बिहार के जंगलराज में कोई महफ़ूज़ है भी या नहीं। 16 अगस्त 2004 को सिवान की किराना दुकान में शहाबुद्दीन के गुर्गे घुसते हैं, रंगदारी की मांग करते हैं। किराना मालिक सतीश रंगबाज़ शहाबुद्दीन के गुंडों को हफ्ता देने से मना कर देते हैं, नतीजा सतीश की पिटाई और दुकान के गल्ले से ज़बरदस्ती पैसों की डकैती। सतीश को बचाने भाई राजीव बीच में आए, बाथरूम से तेज़ाब की बोतल उठा कर शहाबुद्दीन के गुंडों पर फेंकी जिसके छींटे कुछ बदमाशों पर भी पड़े।
ख़बर शहाबुद्दीन तक पहुंची, कुछ देर बाद उसी किराना की दुकान में सैकड़ों की तादाद में गुंडे घुसते हैं और तीन भाईयों का अपहरण कर लेते हैं। अब आता है शहाबुद्दीन का फैसला जिसमें दो भाईयों के लिए ‘तेज़ाब स्नान’ का फ़रमान सुनाया जाता है और तीसरे भाई को खड़ा करके सब कुछ दिखाने का ऑर्डर दिया जाता है। तेज़ाब डालने का सिलसिला शुरू होता है, दोनों तड़पने लगते हैं, कुछ देर में मौत हो जाती है। दोनों भाईयों के पिता चंदा बाबू जब शहाबुद्दीन के ख़िलाफ़ केस करने थाने पहुंचते हैं तो दारोगा शहाबुद्दीन का नाम सुनते ही कांपने लगता है। पुलिस कप्तान चंदा बाबू से मिलने से इंकार कर देते हैं, तो चंदा बाबू डीआईजी के पास पहुंचते हैं। डीआईजी के कहने पर केस फ़ाइल होता है, तीसरा बेटा राजीव गवाह बनता है। 16 जून 2014 को राजीव की कोर्ट में गवाही से पहले हत्या हो जाती है। ये वक़्त था जब बिहार में लालू और उनके परिवार के शासन का समय जंगलराज जैसे विशेषण से सुशोभित था।
24 नवंबर 2005 को बिहार में निज़ाम बदला, नीतीश पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने और लकदक स्टूडियो में इंटरव्यू दिया। नीतीश से सवाल था- आप बिहार का जंगलराज कैसे ख़त्म करेंगे, मुख्यमंत्री ने जवाब दिया- ‘सुशासन का राज स्थापित होगा, क़ानून व्यवस्था सुधरेगी, बिहार के लोग सुरक्षित महसूस करेंगे’। इसमें कोई दो राय नहीं कि 2005 से लेकर 2010 के पहले कार्यकाल में वो जनता के भरोसे पर खरे उतरे। नीतीश का संदेश साफ़ था- थ्री ‘सी’ यानी क्राइम, करप्शन और कम्युनिज्म से समझौता नहीं करेंगे। उनके पहले शासनकाल में इसकी झलक साफ दिखती है।
वक़्त गुज़रा, सुशासन बाबू के सुर बदले, नज़र और नज़रिए में भी बदलाव आया। आज नीतीश का सुशासन फिर कठघरे में है। टीवी पर कुछ ऐसी हेडलाइंस चल रही हैं- बिहार में ‘नीतीशे’ कुमार-अपराध बेशुमार या बदमाशों का ग़दर, ख़तरे में बिहार के शहर या दफ़्तर में ‘गनबाज़’-रेस्टोरेंट में ‘रंगबाज़’ या नीतीश के बिहार में रिटर्न ऑफ़ ‘जंगलराज’ या सुरक्षित नहीं सुशासन, बिहार में कुशासन ? सच ही तो है, जिस राज्य में थानेदार, पत्रकार, शिक्षक, ठेकेदार का दिनदहाड़े क़त्ल हो जाए, वहां के निज़ाम का इक़बाल कभी बुलंद नहीं हो सकता। अररिया में पत्रकार विमल यादव की हत्या, बेगूसराय में अपने बेटे की हत्या के गवाह शिक्षक की हत्या, पूर्वी चंपारण में ठेकेदार तो समस्तीपुर में दारोगा की हत्या- नीतीश जी वक्त है जाग जाने का।
नीतीश कुमार का बंटाधार महागठबंधन के सहयोगी ही कर रहे हैं। डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव कहते हैं बिहार से ज्यादा अपराध तो राजधानी दिल्ली में हो रहा है, जहां देश के प्रधानमंत्री बैठे हैं। लालू के सुपुत्र का मानना है कि ‘क्राइम रिकॉर्ड देखें तो दिल्ली से ज्यादा कहीं अपराध नहीं है, बीजेपी बिहार में जंगलराज लौटने की बात करती है, वो बस राज्य को बदनाम करने की साज़िश रचती है’। उस पर राजद के शिवानंद तिवारी ने भी अजीब तर्क दे डाला- ‘अपराध और अवैध काम को कोई नहीं रोक सकता’। शिवानंद तिवारी कहते हैं- ‘रामराज कहीं नहीं है, रामराज में अपराध विहीन जिस समाज की कल्पना की गई है वैसा कहीं नहीं है। लोगों के मन में विज्ञापन के ज़रिए लालच पैदा किया जाता है। उसको हासिल करने का कोई ज़रिया नहीं है। वैसी हालत में अपराध नहीं होगा तो क्या होगा ?’ नीतीश कुमार का महागठबंधन सहयोगी राजद ने ज़बरदस्त नुक़सान किया है। बिहार में अपराध को लेकर सियासत तेज़ है। सरकार और बीजेपी आमने-सामने है, विपक्ष नीतीश सरकार पर हमलावर है। बीजेपी सरकार को घेरती है तो नीतीश का जवाब हैरान करने वाला होता है। नीतीश कह रहे हैं कि ‘कहां अपराध है, बिहार में कम अपराध है, आंकड़ा देखिए’। नीतीश जी, जुर्म को आंकड़ों में गिनना और तौलना बंद कीजिए।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश की नज़र दिल्ली पर है, बीजेपी कहती है कि अब सीएम साहब बिहार की ख़बर नहीं लेते। नीतीश की महत्वाकांक्षा उन्हें 2024 की दिल्ली वाली गली में ले जा रही है। बिहार में अपराधियों पर लगाम कसना सरकार के वश की बात नहीं रह गई है। स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों की गवाही नीतीश के लिए अलार्म है- 2005 से 2021 तक बिहार में हत्या की 49 हजार 920 घटनाएं हुईं। पिछले 140 घंटे में बिहार कई बार दहला। सबसे पहले बीते 14 अगस्त को समस्तीपुर में एक एसएचओ की गोली मारकर हत्या कर दी गई, मतलब बिहार में पुलिस भी सुरक्षित नहीं है। फिर 18 अगस्त को अररिया में एक स्थानीय पत्रकार की बेरहमी से हत्या कर दी गई, इसके बाद 20 अगस्त को बेगूसराय में रिटायर्ड टीचर की हत्या कर दी गई और 20 अगस्त को ही मुज़फ्फरपुर के रेस्टोरेंट में गोलीबारी हुई। नीतीश जी, दिल्ली का सफ़र तय करना है तो विश्वसनीयता पर काम होना ज़रूरी है। I.N.D.I.A. बना रहे हैं तो बिहार की भी ख़्याल रखना ज़रूरी है। ज़रा याद कीजिए 2005 का वो चुनाव, जब आपने लालू को बेअसर किया था। तब 7 महीने में सुशासन बाबू की ओर शिफ्ट हुए जनादेश ने 18 साल पहले कहा था- नीतीश जी, जंगलराज मिटाने का वादा निभाइएगा। नीतीश बाबू आपको लोहिया वचन तो याद होगा ही- ‘ज़िंदा कौमें 5 साल इंतज़ार नहीं करतीं’
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