इंडिया न्यूज़, लखनऊ।
up election result 2022: विधानसभा चुनाव की अधिसूचना के पहले से ही कई मुद्दों पर प्रदेश की भाजपा (BJP) सरकार को घेरने की विपक्ष की चालें धरी की धरी रह गईं। जनता ने केंद्र व प्रदेश सरकार की योजनाएं, कानून-व्यवस्था के साथ पीएम मोदी और सीएम योगी की बातों पर भरोसा जताने का काम किया है। भाजपा(BJP) पर जताए गए इस भरोसे में मुफ्त बिजली, पुरानी पेंशन बहाली, जातीय जनगणना, मुफ्त शिक्षा जैसी अहम घोषणाएं भी विपक्ष के काम नहीं आईं।
चुनाव से कुछ माह पहले से पश्चिमी उत्तर प्रदेश से किसान आंदोलन और फिर लखीमपुर में किसानों की मौत की घटना के बाद विपक्ष ने सत्ता पक्ष को चारों तरफ से घेरना शुरू कर दिया था। माना जा रहा था कि किसानों की नाराजगी भाजपा को सत्ता से दूर कर देगी लेकिन भाजपा की नीतियां और चुनावी प्रबंधन ने विपक्ष के इस तीर को बेअसर कर दिया। पश्चिम से लेकर पूरब तक किसान भी भाजपा के साथ रहे यह नतीजे बता रहे हैं।
पुरानी पेंशन के वादे पर भी कर्मचारियों ने नहीं जताया भरोसा : समाजवादी पार्टी ने अपनी घोषणा पत्र में प्रदेश के कर्मचारियों को साधने के लिए पुरानी पेंशन बहाली का बड़ा मुद्दा दिया। यह ऐसा मुद्दा था जिसे पूरा करने में सपा को भी काफी मशक्कत करनी पड़ती। सपा की इस घोषणा के बाद कर्मचारियों के कई संगठन सपा के पक्ष में खड़े होते नजर आए थे। सोशल मीडिया पर सपा की इस घोषणा को जमकर वायरल कर कर्मचारियों के बीच माहौल बनाने की कोशिश भी हुई, लेकिन यह भी विपक्ष के काम नहीं आया।
आरक्षण घोटाला मुद्दा बनाने की दाल नहीं गली : विपक्ष ने शिक्षक भर्ती तथा अन्य भर्तियों में पिछड़ा वर्ग के आरक्षण से छेड़छाड़ का मुद्दा भी खूब उछाला। आरक्षण के मुद्दे को लेकर पिछड़ा वर्ग के युवाओं ने भाजपा के बड़े नेताओं की सभाओं में पोस्टर तक लहराए। यह प्रचारित करने की कोशिश की गई कि भाजपा सरकार पिछड़ों के आरक्षण में धोखाधड़ी कर रही है लेकिन हाल के समय में केंद्र सरकार द्वारा नीट तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में आरक्षण की घोषणा कर विपक्ष के इस धार को भी कुंद करने का काम किया। रोजगार को मुद्दा बनाने की चाल भी विफल रही।
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मुफ्त बिजली जैसे वादों को भी जनता ने दरकिनार किया : विपक्ष खासकर समाजवादी पार्टी ने 300 यूनिट तक बिजली फ्री जैसी बड़ी घोषणा कर करीब तीन करोड़ बिजली उपभोक्ता परिवारों को प्रभावित करने की कोशिश भी की। यह मुद्दा भी खूब उछला। कांग्रेस, आप जैसे दलों ने भी बिजली को मुद्दा बना रखा था। सपा की सहयोगी सुभासपा ने जातीय जनगणना, मुफ्त शिक्षा जैसे मुद्दे उछाल रखे थे। सब धरे के धरे रह गए।
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