India News (इंडिया न्यूज़) British Aircraft Crashes: आज से 79 वर्ष पहले, 15 जुलाई 1944 को, अविभाजित कोरिया और आज के एमसीबी जिले के भरतपुर जनपद के कुंवारपुर गांव में एक दुखद घटना घटी थी, जिसमें ब्रिटिश एयरक्राफट दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस दुर्घटना के बाद, ब्रिटिश सेना के दो वारंट अफसर एच टचटेल और वारंट अफसर आर ब्लेयर की मौके पर ही मौत हो गई थी। यह घटना आज भी कुंवारपुर के लोगों के ज़हन में बसी हुई है। कुछ तो पूछने पर दुर्घटना स्थल के साथ साथ अपने पास रखे एयरक्राफ्ट के कलपूर्जे भी दिखायेगें।
ग्रामीण लोग बताते हैं कि 15 जुलाई 1944 को ब्रिटिश एयरफोर्स के एयरक्राफट में आग लग गई थी और यह गांव के उपर से मंडराता हुआ कुंवारपुर के लगभग 2 किमी उत्तर की घोर जंगल में गिर गया। इसके परिणामस्वरूप, जंगल में भयानक आग लग गई और एयरक्राफट में बैठे दोनों व्यक्तियों की मौके पर ही मौत हो गई। यह घातक घटना थी और चांग भखार स्टेट के राजा ने हाथियों द्वारा घातक आग से बचाव के लिए भयानक जंगल में एयरक्राफ्ट के इंजन समेत सभी सामग्रियों को जनकपुर तक पहुंचाया।
इसके बाद, मृत वारंट अफसरों को एक स्थान पर दफनाया गया, और उनके परिजनों ने लापता एयरक्राफट की खोज की, जिसे वे सफलतापूर्वक 1998 में प्राप्त कर सके। उसके बाद, 14 सितंबर 1999 को नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश हाईकमीशन के ग्रुप कैप्टन आर ई वेज घटना स्थल कुंवारपुर पहुंचे, जहां उन्होंने यहां के स्कूल के बच्चों को पुस्तकें और कागज़ दी और मृतक वारंट अफसरों की याद में स्कूल में अतिरिक्त कमरा बनाने के लिए 27 हजार रुपये प्रदान किए।
दो वर्ष बाद, 22 मई 2001 को, ग्रुप कैपटन आर ई वेज फिर से कुंवारपुर आए और दुर्घटना स्थल में मारे गए वारंट अफसर एच टचटैल और वारंट अफसर आर ब्लेयर की याद में बनाए गए उक्त कमरे का लोकार्पण किया। उन्होंने इस अवसर पर हाई स्कूल कुंवारपुर के समस्त बच्चों को निशुल्क किताबें बांटी थी।
मारे गये ब्रिटिश सेना के जवानों की यादों को संजाने के लिए पूर्व जनपद सदस्य मदन परस्ते को ग्रुप कैपटन आर ई वेज द्वारा एक प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया है, जिसे वे हमेशा अपने पास रखते है। आज भी कुंवारपुर के ग्रामीणों के घरों में एयर क्राफट के कलपुर्जे संभाल कर रखे। सभी ने कुछ ना कुछ संभाल कर रखा है। कुंवारपुर के माथमोर गांव के पोडिहानटोला के चिचामा परिवार के रामसहाय ने तो एयर क्राफट का एक पंखा अपने घर में संभालकर रखा है। पंखा उठाने पर यह काफी भारी है।
15 जुलाई 1944 को जहां एयर क्राफट की दुर्घटना हुई थी उस जगह का नाम हवाईहाडुगंरी पड गया है कुंवारपुर आने वाला हवाईहाडुंगरी जरूर जाता है, ये देखने की वो कौन सा स्थान है जहां दो विदेशियों की एयर क्राफट से मौत हो गयी थी। आज भी घटनास्थल पर ढुंढने से एयरक्राफ्ट के कुछ ना कुछ कलपुर्जे हाथ लग जाते है। गांव वालों को उक्त कलपुर्जो से लगाव सा हो गया है वे बाहर से आये लोगो को कलपुर्जे दिखा कर अजीब सी खुशी महसूस करते है।
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