Controversy on Sports Awards
साई और फेडरेशनों की खींचतान में आखिर खिलाड़ियों का नुकसान क्यों?
मनोज जोशी, नई दिल्ली:
इन दिनों भारतीय खेल प्राधिकरण और तमाम खेल फेडरेशनों के बीच जबर्दस्त ठनी हुई है जिससे इस बार वह कुछ हुआ जो भारतीय खेल इतिहास में कभी नहीं हुआ था। हर साल दिए जाने वाले खेल अवॉर्ड्स के लिए इस बार जो कमेटी बनाई गई थी, उसके नामों को खेल मंत्रालय ने मानने से मना कर दिया। इनमें से कुछ खिलाड़ी कोर्ट चले गये तो कुछ डीजी साई और खेल मंत्री से समय मांगने में जुटे हुए हैं लेकिन इन्हें समय नहीं दिया जा रहा।
ऐसा पहली बार हुआ है कि हाल में सर्बिया में सम्पन्न विश्व अंडर 23 कुश्ती चैम्पियनशिप के लिए खिलाड़ी बिना कैम्प के सीधे चैम्पियनशिप में उतर गये। इसी तरह ओस्लो (नॉर्वे) में हुई विश्व चैम्पियनशिप में सिर्फ 15 दिन के कैम्प की औपचारिकता पूरी कर दी गई जबकि इससे पहले साल में तकरीबन दस महीने कैम्प लगते थे और एक चैम्पियनशिप के लिए कम से कम डेढ़ महीने का कैम्प लगाया जाता था। खिलाड़ियों का कहना है कि साई खेल मंत्रालय की कठपुतली बन गई है। साई सिर्फ खेलो इंडिया और एनजीओई स्कीम को ही प्रमोट करना चाहती है जबकि इसमें खिलाड़ियों की संख्या उम्मीद से कहीं कम है।
इतना ही नहीं, पिछले दिनों साई ने वर्ल्ड अंडर 23 चैम्पियनशिप के लिए चुने गये तीन शैलियों की कुश्ती के छह खिलाड़ियों और तीन कोचों को अपने खर्च पर भेजने से मना कर दिया था। परिणामस्वरूप इसके इन नौ (6 खिलाड़ी, 3 कोच) व्यक्तियों का खर्च फेडरेशन को ही वहन करना पड़ा था।
ये सब बताने का उद्देश्य यहां यह है कि डीजी साई ने खिलाड़ियों के राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए बनी कमिटी की कई सिफारिशों को मानने से मना कर दिया गया जबकि इसमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज मुकुंदकम शर्मा की अगुवाई में तीन बार के पैरालम्पिक पदक विजेता देवेंद्र झाझरिया, बॉक्सिंग की पूर्व वर्ल्ड चैम्पियन सरिता देवी, पूर्व अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज अंजली भागवत, पूर्व टेस्ट खिलाड़ी वेंकटेश प्रसाद, पूर्व भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान अंजुम चोपड़ा और विजय लोकपल्ली और विक्रांत गुप्ता के रूप में दो वरिष्ठ खेल पत्रकारों को इसमें शामिल किया गया था।
सवाल उठता है कि क्या यह इस कमिटी का अपमान नहीं है जिसने सज्जन सिंह, देवेंद्र सिंह गारचा और सरपन सिंह (हॉकी), तपन पाणिग्रही (तैराकी) जैसे बड़े नामों को भुला दिए गये इन दिग्गजों को मुख्यधारा में लाकर इनके साथ न्याय किया। सवाल यह है कि साई और फेडरेशनों के बीच अगर कैम्पों को लेकर मनमुटाव है तो इससे खिलाड़ी क्यों प्रभावित हों।
यह ठीक है कि भारत को 41 साल बाद ओलिम्पिक हॉकी में मेडल हासिल हुआ। पूरी टीम को सम्मानित किया जाना जहां स्वागत योग्य है। वहीं द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए नाम काटे जाने वाले सुजीत मान का कहना है कि आज तक तो कमिटी के सुझाये नामों को कभी काटा नहीं गया लेकिन हफ्ते भर अखबार में हमारे नाम सुर्खियों में आने के बाद काट दिये गये जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। गौरतलब है कि जिन दिनों सुजीत राष्ट्रीय टीम के कोच थे, उन्हीं दिनों बजरंग ने 2018 में एशियाई खेलों और 2017 की एशियाई चैम्पियनशिप में गोल्ड जीते।
योगेश्वर दत्त, अमित दहिया, अमित धनकड़ और सुशील ने उन्हीं के कार्यकाल में एशियाई खेलों, एशियाई चैम्पियनशिप और कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीते। 2013 की एशियाई चैम्पियनशिप में फ्रीस्टाइल का टीम खिताब भी उन्हीं के कार्यकाल में हासिल हुआ। बजरंग पूनिया से लेकर रवि दहिया तक और पूरी खेल बिरादरी इस बात का विरोध कर रही है कि कम से कम खिलाड़ियों और कोचों को इस तरह से अपमानित न किया जाएं।
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