इंडिया न्यूज़ (नई दिल्ली, Cryto game is over, earn money but with patience and hard work ): पिछले हफ्ते बिटकॉइन क्रैश हो गई। यह ओरिजिनल क्रिप्टोकरेंसी थी। पिछले साल ही इसकी कीमतों में 75 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। याद रहे एक समय था, जब बिटकॉइन को गोल्ड या यूएस डॉलर से भी ज्यादा मूल्यवान बताया गया था। दूसरी क्रिप्टोकरेंसी का हाल तो और बुरा है। उनमें से कई एक ही साल में 80 से 90 फीसदी गिर गईं।
कुछ का तो सफाया ही हो गया। क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने वाले अधिकतर को बड़ा घाटा हुआ है। पिछले सप्ताह एफटीएक्स भी धड़ाम से गिरा। यह दुनिया के सबसे बड़े क्रिप्टो एक्सचेंज में से है। क्रैश का कारण था बड़े पैमाने पर कथित अनियमितताएं। जैसे कि कस्टमर डिपॉजिट्स को अनुचित तरीके से इस्तेमाल करके कम्पनी की खुद की क्रिप्टाकरेंसी एफटीटी टोकन को खरीदना।
एफटीएक्स के सीईओ सैम बैंकमैन-फ्राइड ने माफी मांगी है। साथ ही एफटीएक्स ने दिवालिया घोषित करने की बात कही है, जिससे उसकी 32 अरब डॉलर की वैल्यू का सफाया हो गया है। एफटीएक्स के ग्राहक, कर्मचारी और ऋणदाता जैसे कि लुप्त हो चुके हैं। यह एक संयोग ही था कि एफटीएक्स हाल ही में समाप्त हुए टी-20 विश्व कप के प्रायोजकों में से एक था।
तो हम मान सकते हैं कि क्रिप्टो का खेल अब खत्म हो गया है। लेकिन इस बात की पड़ताल करना दिलचस्प होगा कि आखिर वह दुनिया की सबसे बड़ी ठगी कैसे बना। यह मनुष्यों के लिए भी एक सबक है कि हमें कितनी आसानी से मूर्ख बनाया जा सकता है। चेतावनियां पहले से ही दी जा रही थीं।
वॉरेन बफेट कह चुके थे कि वे पूरी दुनिया की बिटकॉइन को 25 डॉलर में भी नहीं खरीदेंगे। चूंकि इसका कोई उपयोग नहीं है, इसलिए इससे छुटकारा पाने के लिए इसे किसी को बेचना ही होता है। क्रिप्टोकरेंसी का सच में ही कोई प्रयोजन या उपयोगिता नहीं होती, इसके बावजूद वो कैसे बूम हुई थीं!
मार्च 2017 से मार्च 2021 के बीच ही क्रिप्टो में 5,500 फीसदी का इजाफा हो गया था! इंस्टाग्राम पर क्रिप्टो-मिलियनेयर्स भरे पड़े थे, जो याट और लैम्बोर्गिनी खरीद रहे थे। लेख लिखे जा रहे थे, जिनमें इस नए एसेट-क्लास के बारे में बातें की जा रही थीं। क्रिप्टो को अधिक नैतिक और पारदर्शी तक बताया गया था।
क्रिप्टो के गुब्बारे को एक सुई की दरकार थी। फुग्गा फूट गया है। क्या सच में ही आप अपने जीवनभर की पूंजी बहामा में बैठे किसी ऐसे आदमी के हाथों में सौंप देना चाहते थे, जो नियंत्रण-मुक्त है? क्रिप्टो अब लौटकर नहीं आने वाली। सरकारें नोट की तरह इन्हें छाप नहीं सकती थीं। ये कहा जा रहा था कि अगर ईश्वर की कोई मुद्रा होती तो वह क्रिप्टो ही हो सकती थी। इस कारण क्रिप्टो ने लाखों लोगों का ध्यान खींचा। बिटकॉइन मेनस्ट्रीम बन गई। मीडिया उसका पीछा करने लगा। फाइनेंस बाजार में मौजूद हर व्यक्ति का एक क्रिप्टो-नजरिया या क्रिप्टो-रणनीति रहने लगी। तब इस पर संदेह करना कठिन था।
इन पंक्तियों के लेखक ने जब क्रिप्टो में निहित खतरों पर बात की, तो बेरहमी से उसे ट्रोल किया गया। क्रिप्टो में इतना पैसा आ रहा था कि उन्हें मध्यस्थ-फर्में बनानी पड़ीं, जो खुद को एक्सचेंज कहती थीं। ये वास्तव में अटकलों के कैसिनो थे। इनमें से कुछ भी रेगुलेटेड नहीं था, फिर भी लोगों ने उसमें भरोसा कर पैसा लगाया।
ठगों ने क्रिप्टो के प्रति आकर्षण का लाभ उठाया और हजारों करेंसीज़ लॉन्च की गईं। सेलेब्रिटी ब्रांड एम्बेसेडर मैदान में उतारे गए। एचओडीएल (होल्ड ऑन टु डियर लाइफ) जैसे टर्म ईजाद किए गए, जिसका मतलब था कि चाहे बाजार कितना भी गिरे, कभी करेंसी मत बेचो।
जिन लोगों ने इसमें अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था, वो आज खाली हाथ बैठे हुए हैं। इन मायनों में क्रिप्टो कम्युनिज्म की तरह है, जो वादा तो करता है विकेंद्रीकरण के जरिए लोगों को ताकत देने का, लेकिन अंतत: सत्ता चंद लोगों के ही हाथ में रहती है।
जिन लोगों को लगता है कि सरकार ही झगड़े की जड़ होती है, वे क्रिप्टो से इसलिए आकर्षित हुए थे कि वह सरकारी नियंत्रण से मुक्त है और अंतत: ठगे गए। क्योंकि जब सरकार का नियंत्रण नहीं होता है तो शातिर ठग अपना खेल शुरू कर देते हैं। भले ही हमारा मौजूदा सिस्टम परफेक्ट न हो, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम खुद को अनरेगुलेटेड धोखाधड़ियों के हवाले कर दें। बिटकॉइन के बजाय हमें थोड़े कॉमन-सेंस-कॉइन्स की जरूरत है!
याद रखें कि निवेश एक बोरिंग काम है। इसमें नतीजे आने में समय लगता है। क्विक-मनी जैसी कोई चीज नहीं होती। यंग और कूल होने भर से कोई चीज अच्छा निवेश नहीं हो जाती। वैल्यू का महत्व है। रीयल एसेट का महत्व है।
कैश जनरेशन का महत्व है। किसी चीज की कोई उपयोगिता होनी चाहिए। नियम-कायदे और सरकारी नियंत्रण जरूरी हैं। पैसा कमाइए, लेकिन मेहनत से। इनोवेटिव बनिए, कस्टमर्स की जरूरतें पूरी कीजिए, कमाइए-बचाइए-निवेश कीजिए। लॉन्ग-टर्म में यही नीति काम आती है।
(ये लेख उपन्यासकार चेतन भगत द्वारा लिखा गया है जो दैनिक भास्कर में छपा था).
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