इंडिया न्यूज, New Delhi News। Property case of Faridkot Maharaja : आखिर 30 साल की लंबी लड़ाई के बाद दो बहनों की जीत हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 30 साल से चले आ रहे संपत्ति विवाद पर फैसला सुना दिया है। यह मामला फरीदकोट के महाराज की संपत्ति का था। यह संपत्ति 20 हजार करोड़ की है जिसके हक के लिए उनकी बेटियां 30 काल से कानूनी लड़ाई लड़ रही थीं। इसमें हीरे-जवाहरात, किला, राजमहल और कई जगहों पर इमारतें शामिल हैं।
बता दें कि इस संपत्ति में बड़ा हिस्सा उन्हें देने का फैसला बरकरार रखा गया है। सीजेआई यूयू ललित, जस्टिस एस रवींदर भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने कुछ सुधार के साथ हाई कोर्ट का फैसला बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को इस फैसले को सुरक्षित रख लिया था।
महारावल खेवाजी ट्रस्ट और महाराजा की बेटियों के बीच की यह कानूनी जंग लीगल हिस्ट्री में सबले लंबी चलने वाली लड़ाइयों में से एक है। महाराजा की वसीयत को खत्म करते हुए कोर्ट ने महारावल खेवाजी ट्रस्ट को भी 33 साल के बाद डिजॉल्व करने का फैसला सुना दिया है।
ट्रस्ट के सीईओ जागीर सिंह सारन ने कहा, हमें अब तक सुप्रीम कोर्ट का मौखिक फैसला ही पता चला है, कोई लिखित आदेश नहीं मिला है। जुलाई 2020 में ट्रस्ट ने ही सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी। इसके बाद 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दे दिया था और ट्रस्ट को देखरेख करने की इजाजत दी थी।
साल 2013 में चंडीगढ़ जिला अदालत ने दोनों बेटियों अमृत कौर और दीपिंदर कौर के हक में फैसला सुनाया था। इसके बाद मामला हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि ट्रस्ट के लोग प्रॉपर्टी हथियाने के लिए साजिश रच रहे हैं और फर्जी बातें बता रहे हैं।
साल 1918 में अपने पिता की मौत के बाद हरिंदर सिंह बरार को केवल 3 साल की उम्र में महाराजा बनाया गया था। वह इस रियासत के आखिर महाराज थे। बरार और उनकी पत्नी नरिंदर कौर के तीन बेटियां थीं। अमृत कौर, दीपिंदर कौर और महीपिंदर कौर।
उनका एक बेटा भी था जिसका नाम टिक्का हरमोहिंदर सिंह था। महाराज के बेटे की 1981 में एक रोड ऐक्सिडेंट में मौत हो गई। इसके बाद महाराज अवसाद में चले गए। इसके सात या आठ महीने बाद उनकी वसीयत तैयार की गई।
महाराज की संपत्ति की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट बना दिया गया। इस बात की जानकारी उनकी पत्नी और मां को भी नहीं थी। दीपिंदर कौर और महीपिंदर कौर को इस ट्रस्ट का चेयरपर्सन और वाइस चेयरपर्सन बना दिया गया।
वहीं इस वसीयत में यह भी लिखा गया था कि सबसे बड़ी बेटी अमृत कौर ने उनकी मर्जी के खिलाफ शादी की है इसलिए उन्हें बेदखल किया जाता है। यह वसीयत तब सामने आई जब महाराज की 1989 में मौत हो चुकी थी।
संदिग्ध परिस्थितियों में महाराज की बेटी महीपिंदर कौर की मौत हो गई। शिमला में उनकी मौत हुई थी। अमृत कौर ने 1992 में स्थानीय अदालत में केस फाइल किया था।
उनका कहना था कि हिंदू जॉइंट फैमिली होने की वजह से संपत्ति पर उनका अधिकार था जबकि उनके पिता की वसीयत में सारी प्रॉपर्टी ट्रस्ट को दे दी गई थी। अमृत कौर ने इस वसीयत पर सवाल खड़े कर दिए।
आजादी के बाद महाराज को 20 हजार करोड़ की संपत्ति दी गई। इसमें चल और अचल संपत्ति शामिल है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा के अलावा चंडीगढ़ में भवन और जमीनें हैं।
फरीदकोट का राजमहल-फरीदकोट का राजमहल 14 एकड़ में है। यह 1885 में बना था। अब इसके एक हिस्से में 150 बेड का चैरिटेबल अस्पताल चल रहा है।
किला मुबारक, फरीदकोट-1775 में इस किले को राजा हमीर सिंह ने बनवाया था। यह 10 एकड़ में है। जो इमारत अब बची है उसका निर्माण 1890 में हुआ था।
नई दिल्ली में कॉपरनिकस मार्ग पर एक बड़ा भूमि का टुकड़ा है। केंद्र सरकार ने इसे किराये पर ले रखा है और हर महीन लगभग 17 लाख का किराया देती है। इसकी कीमत लगभग 1200 करोड़ रुपये 9 साल पहले थी।
इसके अलावा चंडीगढ़ में मणीमाजरा किला, शिमला का फरीदकोट हाउस महाराजा की संपत्ति में शामिल हैं। 1929 मॉडल रोल्स रॉयस, 1929 मॉजल ग्राहम, 1940 मॉडल बेंडली, जैगुआर, डामलर, पैकार्ड भी हैं जो कि अभी चलतू हालत में हैं। इसके अलावा 1 हजार करोड़ के हीरे जवाहरात हैं जो कि मुंबई के स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के पास सुरक्षित हैं।
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