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शराब ठेकों पर विफल हुई Delhi Government की नीति

योगेश कुमार सोनी
वरिष्ठ पत्रकार

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मौजूदा वक्त में एक अजीब ही तरह का संकट पैदा हो गया। बीते दिनों दिल्ली सरकार ने शराब के प्राइवेट ठेकों को पूर्ण रूप से बंद कर दिया और एवज में नए ठेके खोलने की तैयारी कर रही है।

ठेके बंद तो कर दिए लेकिन अभी तक नए ठेके नहीं खोले गए हैं जिस वजह से सरकारी ठेकों पर लंबी कतारें लगने लगीं। इसके अलावा सरकार उन जगहों पर ठेका खोलना चाहती है जहां रिहायशी इलाके व बाजार हैं।

दरअसल जनता का आरोप है कि केजरीवाल सरकार अपने मुनाफे के लिए बहुत कम पैसों में जगह किराए पर लेकर किसी भी जगह ठेका खोलना चाहती है। इसके अलावा दिल्ली सरकार ने ऐसी जगह चिन्हित की हैं जहां भीडभाड वाले रिहायशी इलाके हैं।

कुछ जगह तो ऐसी हैं जिस दुकान के आगे अगर एक-दो दुपहिया वाहन खडा कर दिया जाए तो जाम लग जाता है। दिल्ली सरकार के अनुसार उन्हें हर वार्ड में तीन ठेके खोलने हैं और दिल्ली में कुछ वार्ड ऐसे है जहां पूर्ण रूप से रिहायशी इलाका है और जो बाजार भी हैं तो वह घरेलू स्तर की सामानों की दुकानें है।

दिल्ली सरकार ने जहां भी ठेका खोलना चाह रहे हैं वहीं लोगों का भारी विरोध प्रदर्शन हो रहा है। बीते दिनों पूर्वी दिल्ली कई जगह लोगों ने सड़कों पर उतरकर भारी विरोध किया। मौके पर पहुंचे दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने कहा कि दिल्ली सरकार हमारे आने वाली पीढ़ी को बेकार करना चाहती है,यदि गली-मोहल्ले में ही इस तरह शराब बिकने लगेगी तो बेहद कम उम्र में बच्चे प्रभावित होंगे इसके अलावा जाम की स्थिति बनी रहेगी।

केजरीवाल जिस जगह ठेका खोलने चाहते हैं वह सभी जगह उपयुक्त नही हैं। सांसद मनोज तिवारी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि केजरीवाल लालच में इतना पागल हो चुके हैं कि उन्हें कुछ भी अच्छा या बुरा नही दिख रहा।

सबसे पहले तो उन्हें ठेके बंद करने से पहले खोलने की व्यवस्था बनानी चाहिए थी चूंकि जिन वार्डों में प्राइवेट ठेके नही हैं वह लोग दूसरी जगह शराब लेने जा रहे हैं व इसके अलावा रिहायशी कॉलोनी व घरेलू सामान के बाजारों में ठेके खोलने से जाम व अपराध की स्थिति पैदा हो जाएगी। आखिर केजरीवाल सरकार को क्या हो गया है।

पूर्वी दिल्ली के मंडोली रोड पर ठेका खोलने के विरोध में बीजेपी के तमाम नेता व साढे छ सौ दुकाने के मालिकों ने विरोध करते हुए सरकार को चेताया है। मार्केट की अध्यक्षा बिन्नी वर्मा ने कहा कि यह हमारी मार्केट में अधिकतर महिलाएं ही आती हैं और यदि इस तरह के बाजारों में शराब बिकेगी तो महिलाएं सुरक्षित महसूस नही करेंगी।

बहरहाल,हाल ही में केजरीवाल सरकार के इस कृत्य से दिल्लीवासियों में खासी नाराजगी देखने को मिल रही है। यदि दिल्ली सरकार ने इस ओर गंभीरता नही दिखाई तो अगले छ महीने में होने वाले नगर निगम के चुनाव में भारी नुकसान हो सकता है।

आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में 849 दुकानें हैं जिसमें से 276 निजी तौर पर संचालित होती हैं। पिछले दिनों जितने भी प्राइवेट ठेके खुले थे वह सभी मॉल में खुले थे जिससे सभी व्यवस्था दुरुस्त चल रही थी लेकिन बिना किसी ठोस नीति के दिल्ली सरकार ने प्राइवेट ठेके बंद किये उससे दिल्ली की व्यवस्था चरमरा गई।

शराब के ठेके लिए कई मानक हैं लेकिन सरकार ने कुछ जगह तो 60-70 गज की संपत्तियों पर ठेके खोलने की अनुमति दे दी। इसके अलावा भी तरह के नियम कानून हैं लेकिन अब सभी शून्य नजर आ रहे हैं। यहां केन्द्र सरकार को हस्तक्षेप करने की जरूरत है चूंकि यदि इस ही तरह दिल्ली सरकार मनमानी करती रही तो स्थिति अच्छी नही होगी।

अभी लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं यदि सडको पर उत्पाद मचा दिया तो यह एक बुरा संदेश माना जाएगा। कुछ मामलों को लेकर दिल्ली सरकार पर आश्चर्य व क्रोध आता है कि आखिर किस नीति के साथ इस तरह के कार्य कर रही है। इस बार विपक्ष के अलावा जनता विरोध कर रही है।

केजरीवाल सरकार के कुछ नेता जनता को समझाने के लिए के गए थे और उन्होंने कहा कि शराब के टैक्स से जो कमाई होती है उस पैसे को जनता की सुविधाओं में लगाया जाता है और लोगों ने इस पर जवाब में बिहार का उदाहरण देते हुए कहा कि बिहार सरकार ने पूर्ण रुप से शराबबंदी कर रखी है तो क्या वह राज्य संचालित नही हो रहा ? महिलाओं ने यह भी कहा कि यदि शराब की दुकान पर लिखा होता है कि 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को शराब नही मिलेगी लेकिन देखा जाता है कि बहुत कम उम्र के बच्चे शराब खरीदते हैं और यदि गली-मोहल्लों में शराब बिकने लगेगी तो बच्चे बिगड़ सकते हैं।

बहरहाल, दिल्ली सरकार को इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए काम करना होगा अन्यथा केन्द्र सरकार को इस नीति पर एक बडा कदम उठाने की जरूरत है। जिस तरह दिल्ली सरकार मानकों की अनदेखी कर रही है उससे सरकार की तानाशाही स्पष्ट झलक रही है।

 

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Mukta

Sub-Editor at India News, 7 years work experience in punjab kesari as a sub editor, I love my work and like to work honestly

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