मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्
एक दिन सुबह सुबह हमारे आफिस में छोटू ने किसी का कार्ड पकड़ाया और बताया कि कोई डाक्टर साब आपसे मिलना चाहते हैं। विजिटिंग कार्ड अजीब सा था औेर उस पर डा. बेताब लिखा था। नाम के साथ कई डिग्रियां और युनिवर्सिटियों के नाम लिखे थे जो आजतक कहीं न देखे थे न सुने ही थे। इससे पहले कि हम उन्हें अंदर बुलाते, वे खुद, दरवाजा धकियाते हुए अंदर तशरीफ ही ले आए और ऊंची आवाज में पूछने लगे, प.. ह ..चा…..ना? हमने कहा कि सूरत जानी पहचानी तो लग रही है परंतु सुरती के काटूर्नों में से एक करैक्टर की सूरत से ज्यादा मेल खा रहे हैं। वे झिझके फिर बोले- माई सेल्फ .. डॉक्टर बेताब….तुम्हारा बचपन का लंगोटिया यार….चुन्नी लाल चूना वाला। हमने उसे ठोका, अबे चुन्नी! तू दसवीं में 10 बार फेल हुआ और डॉक्टर कब से बन गया? जरा अंग्रेजी में डायरिया तो लिख के दिखा…!
चुन्नी खिसिया के सपष्टीकरण देने लगा, अमां यार! ऐसा वेैसा डाक्टर नहीं। पी.एच.डी की है।
तू और पी एच डी? किस युनीवर्सिटी ने तुझे घास डाल दी?
अरे हमारी स्टेट में हलवाइयों, नाइयों , बलवाइयों तक ने युनिवर्सिटियां खोल रखी हैं जो धड़ल्ले से सरकारी मदद के सहारे हर तरह की डिग्रियां बांट रही हैं। रिसर्च किस टॉपिक पर की थी?
गालियोलॉजी…..बिल्कुल नया टापिक हेै। अभी तक किसी माई के लाल ने इस पर रिसर्च नहीं की है । हमने भी सोचा बहती गंगा में नाक डुबो लो। न जाने कब पानी सूख जाए!यह भी हो सकता है , इस पर अमेरिका तालिबान से फुर्सत पाते ही , हमें नोबल प्राईज देने तक की सोचने लगे। वे चालू रहे।
हमने पूछा ,मेरे मेहताब ……डॉक्टर बेताब…ये नायाब आयडिया आया कहां से?
अमां यार लॉक डाउन में सब बैठे ठाले थे। हमारी अक्ल के घोड़े तब दौड़ने लगे जब हाउस अरेस्ट के दौरान तुम्हारी भाभी घर के सारे काम भी करवाती थी और तेरे चुन्नी लाल को चुन चुन कर गालियां भी देती थी। हमें प्रधान मंत्री का कहना याद आया। बस अपन ने आपदा को अवसर बनाया।
तुम तो जानते ही हो हमारी स्टेट गाली प्रिय स्टेट है। गालियां हमारी राज्य भाषा …मातृ भाषा जैसी ही हैं। किसी दफतर में चले जाओ। हर बाबू की आफिशियल लैंग्वेज के हर वाक्य के साथ मां या बहन का रिश्ता जुड़ा होता है। लोग इसे रोटीन मानते हैं। प्यो अपनी औलाद को खोते दे पुत्तर कह कर ही बुलाएगा। प्यो- पुत्तर तक घरों में बिना गाली के बात नहीं करते। एक बार एक पाइया जी फैमिली में बैठे बातों बातों में बहन की गालियां हर वाक्य में दे रहे थे। निक्के काके ने पापे से पूछ ही लिया, पापे तुसीं लुधियाने वाली भूआ नूं कुज कह रहे हो जां पटियाले वाली जां अंबरसर वाली नूं?
लोग सुसंस्कृत भाषाओं से बोर हो चुके हैं। दूरदर्शन इसी लिए फलाप हो गया। बाकी चैनल दौड़ पड़े। लॉक डाउन में लोग बोर हो गए। गालियों का स्टाक मुक गया। वही घिसी पिटी गालियां। बंदा दारु पीकर ,अंग्रेजी में गालियां देना चाहे तो ले दे कर बॉक्स से दस बारह गालियां ही खोजने पर मुश्किल से मिल पाती हैं। पत्रकारिता का नियम है- पब्लिक को वही परोसो जो वह चाहती है। अखबारों के कुछ पेज लाकडाउन में बंद नहीं हुए जिसमें फिल्मी नायिकाओं के चित्र होते हैं। कितनी ही वे फिल्में हिट हो गईं जिनमें जी भर कर गालियां मारी गई। ऐसी फिल्में वेब सीरीज में भी खूब चलीं। उनके पार्ट -5 तक आ गए। कुछ ने पुराने टाईटल्स के आगे रिटर्न लगा कर नए वर्जन से भी खूब पैसा कूटा। गालियां पर तालियां। बस ऐसी फिल्में देख देख कर हौसला बुलंद हुआ कि यही सब्जेक्ट हमेशा डिमांड में रहेगा।
सो सपाटू भाई! गालियां आउट आॅफ स्टाक हैं। जिन्होंने मां बहन एक करनी थी वो कर करा के , थक हार कर बैठ चुके हैं और नई गालियां सुनने के लिए मुंह बाए , बेताब हैं। पब्लिक को नई गालियां चाहिए। बस यही अपने शोध का विषय बन गया। हमने इस क्षेत्र में बहुत मेहनत की है। पंजाबी, हरियाणवी, यू पी , बंगाली, मराठी गालियों का एक शब्दकोश निकाल दिया है। डिजिटल जमाना है। एक सॉफ्ट वेयर भी बनवा लिया है। पड़ोसी को गलियाना है या उधार मांगने वाले को ,फूफे की उतारनी है या जीजे की…..बस बटन दबाओ स्क्रीन पर सैकड़ों गालियां तैरने लगेंगी। किल्क करो तो हर कैरेक्टर के लिए हर जुबान में गालियां सुनने लगेंगी। यानी हर अवसर …हर क्रेक्टर के लिए चुनिंदा गालियां।
मारे अपने राज्य में बच्चे से लेकर 99 साल के बूढ़े गालियों में गोल्ड मेडलिस्ट हैं। बस अभी बिजनेस एक्सपेंशन का काम चल रहा है। देश के कोने कोने से हमारी फें्रचाइजी लेने के लिए लोग बेताब हैं । एडवांस पर एडवांस फेंक रहे हैं। सोचा आज अपनी दोस्ती निभा ऊं । तुम्हें इस स्टेट की टेरिटरी दे दूं। बस अपने शहर में होली के आसपास एक गाली सम्मेलन आयोजित करवाओ। लोग कामेडी शो कर कर के खूब कमा रहे हैं। तुम गाली शो आयोजित करो। लोग बहुत फ्रस्ट्रेटिड हैं। मास्क के कारण गालियां समझ नहीं आती। मोबाइल पर दो तो अगला ब्लाक कर देता है। स्पांसर बहुत मिल जाएंगे। टिकट लगाओ – पैसे कमाओ। कामन मैन को गालियां सुनने की आदत है। जिस दफ्तर में जाता है, गालियां खाके ही आता है। घर में बीवी से,सड़क पर पुलिस वाले से, आफिस में बॉस से……। उसे जब तक एक आध सुन न जाएं तसल्ली नहीं हो पाती। रोटीन वाली फीलिंग नहीं आती। पुलिस वाला गाली बिना बात करे तो फर्जी सा लगता है। चालान करते हुए गलती से किसी को सर बोल दे तो अगला उसके सिर ही चढ़ जाता है। यही नहीं उसे बोनट पर चढ़ा कर कई किलोमीटर की फ्री राइड दे देता है। और मौका लगे तो हाथ भी फेर लेता है।
इसी लिए जब गाली सम्मेलन करवाओ तो कार्यक्रम की अध्यक्षता किसी घिसे हुए पुलिस वाले से करवाना ताकि उसके प्रैक्टीकल अनुभव का ,सब को फायदा मिल सके। प्रोग्राम का आरंभ सरस्वती वंदना से आरंभ करने की गलती न करना। इसके लिए यूपी की महिलाओं का गैंग बुलाएंगे जो शादियों में गा गा कर बारातियों का स्वागत करती हैं। ऐसी ऐसी गालियां गाती हैं जिससे अच्छे अच्छे शरमा जाएं।
इस प्रोग्राम में मेरी नई बुक- दस हजार नई गालियां सीखें लांच भी हो जाएगी जिसके साथ उसका सॉफ्टवेयर फ्री। तुम्हारी 50 प्रतिशत कमीशन पक्की। बड़ा हिट प्रोग्राम रहेगा।
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