गोपाल गोस्वामी, नई दिल्ली :
Godhra Train Burning Case 27 फरवरी, 2002 साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन, गोधरा त्रासदी की 20 वीं वर्षगांठ कुछ ही दिन दूर है, जिसमें 58 हिंदू तीर्थयात्रियों को मुसलमानों द्वारा ट्रेन में जिंदा जला दिया गया था। क्या हम उस घटना को, उस नरसंहार को कभी याद करते हैं? हाँ! हमें 2002 के गुजरात दंगे याद हैं, हाँ!हमें गुजरात में मुसलमानों की हत्या याद है; हमें बेस्ट बेकरी याद है, हमें गुलबर्ग सोसाइटी याद है और हाँ, हमें लगातार एक मुस्लिम ‘नरसंहार’ की याद दिलाई जाती है जो गुजरात में तब हुआ जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के बाद भी जहां वामपंथी मीडिया, बुद्धिजीवी वर्ग व मुस्लिम कट्टरपंथी मोदी कोआज भी दोषी मानते, वहां इस घटना का एक पहलू ही नयी पीढ़ी के समक्ष है। मुस्लिम ‘पोग्रोम’ की यह मनगढ़ंत कहानी इस तथ्य के बावजूद फलती-फूलती है कि गोधरा के बाद गुजरात हिंसा में मारे गए 1,044 लोगों में से 254 हिंदू थे।
आज, जब हम 2002 की हिंसा को देखते हैं, तो गोधरा हत्याकांड स्वयं को केवल किसी सरकारी जांच एजेंसी या कोर्ट के फुटनोट तक ही सीमित पाता है, जबकि साबरमती ट्रेन का S-6 डब्बा ही पूरे गुजरात दंगों का ट्रिगर पॉइंट था। इसके विरुद्ध बिलकिस बानो कांड का व्यापक प्रचार हुआ, बेस्ट बेकरी व गुलबर्ग सोसाइटी का व्यापक प्रचार हुआ,जो निस्संदेह भयानक था, लेकिन ट्रेन में 20 बच्चों और 27 हिन्दू महिलाओं को जिंदा जलाए जाने पर चुप्पी उतनी ही घिनौनी थी।
आज बीस वर्ष के बाद मुद्दा यह है कि हमें गोधरा में जिंदा जलाए गए 58 लोगों की परवाह क्यों नहीं है? हम उनमे से किसी एक का भी नाम नहीं जानते, हिन्दू समाज ने उन्हें इसतरह भुला दिया है जैसे वो कभी थे ही नहीं है? सूचना के महासागर इंटरनेट पर उन पीड़ितों से जुड़ा एक भी नाम नहीं है। किसी भी मीडिया आउटलेट ने उनके नाम का पता लगाने और उन्हें प्रकाशित करने की कोशिश क्यों नहीं की? हिन्दू संगठनों के पास उनके नामों की सूचि है और वे उनके परिवारों की चिंता भी करते हैं परन्तु आज का युवा उनमे से किसी का नाम तक नहीं जानता कि गुजरात के दंगों का कारन इन 58 लोगों की हत्या थी (why godhra train was burnt)
इस घटना का विवरण इस प्रकार से है कि फरवरी 2002 में, हजारों राम भक्त (कारसेवक) श्री राम जन्मभूमि पर आयोजित पूर्णाहुति महायज्ञ में भाग लेने के लिए पुरे देश से एकत्रित हुए थे। गुजरात से गए श्रद्धालु सैकड़ों अन्य यात्रियों के साथ25 फरवरी को अहमदाबाद के लिए जाने वाली साबरमती एक्सप्रेस में सवार हो गए। दो दिन बाद 27 फरवरी को सुबह 7 बजकर 43 मिनट पर ट्रेन गोधरा पहुंची। जैसे ही ट्रेन स्टेशन से रवाना हुई, किसी ने आपातकालीन चैन खींचकर ट्रेन को रोक लियाऔर ट्रेन मुस्लिम झुग्गी बस्ती सिग्नल फलिया में रोक लिया। जैसा कि ड्राइवर ने बताया और बाद में लोकोमोटिव के उपकरण द्वारा पुष्टि की गई, ट्रेन को भीतर से कई बार चेन खींचकर रोका गया था।
जानकारी के अनुसार ट्रेन के रुकते ही लगभग दो हजार की भीड़ जमा हो गई। मुस्लिम भीड़ ने पथराव के बाद, चार रेल डिब्बों में आग लगा दी, जिससे कई यात्री अंदर ही फंस कर रह गए। आग में 27 हिन्दू महिलाओं और 10 बच्चों सहित 58 हिन्दुओं की मृत्यु हो गई और 48 अन्य घायल हो गए। एक मुसलमान की भी जल कर मौत हुई, मन जाता है कि उसने ही अन्दर जाकर ज्वालाशील पदार्थ डाला पर आग लगाने के बाद वह बहार नहीं निकल पाया. गुजरात पुलिस के सहायक महानिदेशक जे महापात्रा ने कहा, “आक्रांताओं ने ट्रेन के गोधरा पहुंचने से पहले से लिए पेट्रोल के पीपे इत्यादि तैयार कर रख लिए थे।” (godhra train burning truth)
इसके बाद, राज्य ने दो तिहाई भागों में हिंसा देखी। लेकिन जब कोई इस घटना के मीडिया चित्रण को देखता है, तो ऐसा लगता है कि हमें विश्वास हो गया है किराज्यव्यापी हिंसा हिन्दुओं द्वारा एकतरफा व किसी कारणके बिना हुई थी; और, दूसरा, पीड़ित अकेले मुसलमान थे। ये दोनों सुनियोजित झूठ हैं। क्योंकि 2002 में गोधरा की आग के कारण ही गुजरात जला था, और तथाकथित नरसंहार के शिकार लोगों में से एक चौथाई हिंदू थे। फिर भी वामपंथी मीडिया 2002 को “मुस्लिम नरसंहार”, “एथनिक क्लेंसिंग”, “राज्य प्रेरित आतंकवाद”, “पोग्रोम” इत्यादि के रूप में याद रखना चाहता है।
सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि ट्रेन के अन्दर जिन्दा जला दिए गए लोगों की पहचान मीडिया द्वारा कभी सार्वजनिक क्यों नहीं की गई? क्या ऐसा इसलिए था क्योंकि इसके बाद के परिणाम को मुस्लिम ‘नरसंहार’ के रूप में चित्रित करने का एक ठोस प्रयास किया गया था! हम ट्रेन में मारे गए लोगों के 41 नाम एक सेवाभावी हिन्दू संगठन से प्राप्त करने में करने में सफल रहे। हम अन्य 17 मृतकों की पहचानों का पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं। (godhra kand mastermind)
1 नीलिमाबेन प्रकाशभाई चौडागर, रामोल, अमदावाद
2. ज्योतिबेन भरतभाई पांचाल, मणिनगर, अमदावाद
3. प्रेमाबेन नारनभाई डाभी, गीता मंदिर, अमदावाद
4. जिविबेन परमभाई दाभी, गीता मंदिर, अमदावाद
5. देवकलाबेन हरिप्रसाद जोशी, चंदलोडिया, अमदवाद
6. झवेरभाई जादवभाई प्रजापति, वस्त्रल, अमदावाद
7. मित्तलबेन भरतभाई प्रजापति, मणिनगर, अमदावाद
8. निताबेन हर्षदभाई पांचाल, न्यू रानिप, अमदावाद
9. हर्षदभाई हरगोविंदभाई पांचाल, न्यू रानिप, अमदावाद
10. प्रतीक्षाबेन हर्षदभाई पांचाल, न्यू रानिप, अमदावाद
11. निरुबेन नवीनचंद्र ब्रह्मभट्ट, संकेत सोसाइटी, वडनगर
12. छायाबेन हर्षदभाई पांचाल, न्यू रानिप, अमदावाद
13. चिरागभाई ईश्वरभाई पटेल, वाघोड़िया, वडोदरा
14. सुधाबेन गिरीशचंद्र रावल, चांदलोडीया, अमदावाद
15. मालाबेन शरदभाई म्हात्रे, अंबावाडी, अमदावाद
16. अरविंदाबेन कांतिलाल शुक्ल, रामोल, अमदावाद
17. उमाकांत गोविंदभाई मकवाना, नवा नरोडा, अमदावाद
18. सदाशिव विट्ठलभाई जाधव, सुरेलिया एस्टेट रोड, अमदावाद
19. मणिबेन दहयाभाई दवे, नवा नरोडा, अमदावाद
20. जेसलकुमार मनसुखभाई सोनी, वस्त्रल, अमदावाद
21. मनसुखभाई कांजीभाई सोनी, वस्त्रल, अमदावाद
22. रतिबेन शिवपति प्रसाद, नगर निगम क्वार्टर, विजय मिल, नरोडा, अमदावाद
23. जमनाप्रशाद रामाश्रय तिवारी, नगर निगम क्वार्टर, विजय मिल, नरोडा, अमदावाद
24.सतीश रमनलाल व्यास, ओढव, अमदावाद
25. शांताबेन जशभाई पटेल, रून, आनंद
26. इंदिराबेन बंशीभाई पटेल, रून, आनंद
27. राजेशभाई सरदारजी वाघेला, खोखरा, अहदावाद
28. शिलाबेन मफतभाई पटेल, रून, आनंद
29. मंजुलाबेन कीर्तिभाई पटेल, रून, आनंद
30. चंपाबेन मनुभाई पटेल, रून, आनंद
31. दीवालीबेन रावजीभाई पटेल, मातर, खेड़ा
32.ललिताबेन करनसीभाई पटेल, कड़ी, मेहसाणा
33. मंगुबेन हिरजीभाई पटेल, कड़ी, मेहसाणा
34. प्रह्लादभाई जयंतभाई पटेल, अंबिका टाउनशिप, पाटन
35. भीमजीभाई करसनभाई पटेल, खेड़ब्रह्मा, साबरकांठा
36. लखुभाई हीराजीभाई पटेल, कुभाधारोल काम्पा, वडाली, साबरकांठा
37. विट्ठलभाई पुरुषोत्तमभाई पटेल, डूंगरजी नी चली, खोखरा, अमदावाद
38. शैलेश रणछोड़भाई पांचाल, संकल्प पार्क सोसायटी, सुरेंद्रनगर
39. अमृतभाई जोइताराम पटेल, गमनपुरा, मेहसाणा
40. नरेंद्र नारायणभाई पटेल, वनपर्डी, मांडल, अमदावाद
41. रमनभाई गंगारामभाई पटेल, नुगर, मेहसाणा
आज जब हम गोधरा त्रासदी की 20वीं बरसी के समीप हैं, तो हमें कम से कम 2002 गुजरात दंगों, इसकी पृष्ठभूमि व गोधरा साबरमती ट्रेन हत्याकांड व इसके पश्चात हुए दंगों में मारे गए 254 हिन्दुओं के बारे में भी अभिलेखागारों, इन्टरनेट पर जानकारी ठीक करने की आवश्यकता है। हमें जिन्दा जला दिए गए महिलाओं व बच्चों की वार्ता को सही ढंग से प्रस्तु करने की आवश्यकता है: एक समुदाय (मुसलमान) को विक्टिम सिद्ध करने के लिए, हिन्दुओं की हत्याओं को कालीन के नीचे छुपाना कहाँ की पत्रकारिता व निष्पक्षता है ? गोधरा में मारे गए 58 लोगों के नाम सार्वजनिक कर उनकी स्मृति में गोधरा व अयोध्या में स्मारक बनाकर एक नई शुरुआत की जा सकती है, यही उन आत्माओं को सच्ची श्रधांजलि होगी।
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