महाराष्ट्र में राजनीतिक उठापटक के बीच क्या राज्यपाल बहुमत परीक्षण का देंगे आदेश,जाने क्या कहता है कानून

इंडिया न्यूज़ (मुंबई): महाराष्ट्र पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक संकट से जूझ रहा है,शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे ने पार्टी के कई विधायकों से साथ पहले सूरत और फिर गुवाहाटी के होटल में जमे है, उनका दवा है की उनके साथ 45 शिवसेना के विधायक और 6 निर्दलीय विधायकों का समर्थन है,उद्धव ठाकरे महराष्ट्र के मुख्यमंत्री का आधिकारिक “वर्षा” बंगलो छोड़ कर अपने घर “मातोश्री” चले गए है,महाराष्ट्र की महाविकास अगाडी सरकार बहुमत खोती दिखाई दे रही है ,ऐसे में संविधान क्या कहता है और राज्यपाल की भूमिका कैसे यहाँ अहम हो जाती है,आइये जानते है।

भारतीय संविधान अनुच्छेद 164 के तहत राज्यपाल राज्य के मुख्यमंत्री को नियुक्ति करते है उस पार्टी के नेता या गठबंधन के नेता को जिसको राज्य के विधानसभा में बहुमत होता है.

संविधान के अनुच्छेद174 (2) (b) के तहत राज्यपाल राज्य के मंत्री परिषद् के सलाह पर विधानसभा को भंग कर सकते है लेकिन अगर राज्यपाल को लगे की सरकार अपना बहुमत खो चुकी है तो राज्यपाल ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं है।

संविधान के अनुच्छेद 175 (2) जो कहता है की राज्यपाल राज्य के विधानमंडल के सदन या सदनों को संदेश भेज सकता है, चाहे वह विधानमंडल में लंबित विधेयक के संबंध में हो या अन्यथा,और जिस सदन को कोई संदेश भेजा जाता है, वह सभी सुविधाजनक प्रेषण के साथ विचार करेगा। संदेश द्वारा आवश्यक किसी भी मामले को ध्यान में रखा जाना चाहिए,इस अनुछेद के तहत राज्यपाल को अगर लगता है की सरकार अपना बहुत को चुकी है तो राज्यपाल बहुत परीक्षण के लिए विधानसभा को कहते है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 163 में इस मामले में काफी अहम है, इसमें राज्यपाल की विशेष शक्तियों का उल्लेख किया गया है, संविधान अनुच्छेद 163 (1) कहता है की “जिन बातों में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने कृत्यों या उनमें से किसी को अपने विवेकानुसार करे उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परिषद होगी जिसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगा”

अनुच्छेद 163 (2) कहता है की यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई विषय ऐसा है या नहीं जिसके संबंध में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करे तो राज्यपाल का अपने विवेकानुसार किया गया विनिश्चय अंतिम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई किसी बात की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि उसे अपने विवेकानुसार कार्य करना चाहिए था या नहीं, इस अनुछेद का प्रयोग राज्यपाल अमूनन तब करते है जब चुनाव के बाद किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता तब राज्यपाल अपने विवेक अनुसार सरकार बनाने का आमंत्रण किसी पार्टी या नेता को देते जो राज्यपाल के विवेक अनुसार बहुमत साबित कर सकता है, इसी अनुछेद के द्वारा राज्यपाल अपने कई सारे फैसले करते है जिसमे से कई फैसलों पर विवाद भी होता है, राज्यपाल की शक्तियों पर जो बहस होती है उसमे सबसे जायदा इस अनुछेद के ही प्रावधान है।

मार्च 2020 में मध्य प्रदेश राजनीतिक संकट के बीच जब राज्यपाल को लगा की सरकार को बहुमत नहीं है तब उन्होंने 17 मार्च 2020 को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को बहुमत परीक्षण के लिए कहा,तब इस मामले में कांग्रेस पार्टी सुप्रीम कोर्ट चली गयी 19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अगले दिन 20 मार्च को बहुमत परीक्षण करने का आदेश दिया और राज्यपाल के फैसले को सही ठहराया लेकिन साथ में सुप्रीम कोर्ट पूर्व में दिए फैसलों जिसमे एस आर बोम्मई केस 1994 जिसमे नौ जजों के बेंच ने फैसला दिया था और नबाम रेबिआ केस 2015 जिसमे पांच जजों की बेंच ने फैसला दिया था उसका उदहारण देते हुए कहा की राज्यपाल के पास प्रयाप्त कारण होना चाहिए की उन्हें सरकार के बहुमत में होने का भरोसा नहीं है ,राज्यपाल संविधान में उल्लेखित शक्तियों के तहत ही आदेश दे सकते है.

 

Roshan Kumar

Journalist By Passion And Soul. (Politics Is Love) EX- Delhi School Of Journalism, University Of Delhi.

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