निर्मल रानी
Government’s gift on festivals भारत सरकार ने पिछले दिनों करोड़ों की तादाद में मजबूत थैले सिलवाकर उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बड़ा सा चित्र छपवाकर उन्हीं थैलों में मुफ़्त राशन वितरित करवाकर प्रधानमंत्री को ‘गरीबों के मसीहा’ के रूप में प्रचारित करने की कोशिश की। देश भर में कोरोना निरोधक वैक्सीन लगाने वालों को जो प्रमाण पत्र जारी किया गया उनपर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चित्र अनिवार्य रूप से छपा नजर आया। और इस टीकाकरण अभियान के दौरान जब भाजपाई मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों की ओर से ‘धन्यवाद मोदी जी ‘ नामक जो महा प्रचार अभियान छेड़ा गया उससे भी यही एहसास हुआ कि यदि ‘मोदी जी’ न होते तो देश की जनता वैक्सीन जैसे कोरोना के एकमात्र कवच को हासिल करने से वंचित रह जाती।
परन्तु यही सरकार जब बढ़ती बेरोजगारी के आंकड़े छिपाती है, रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों,खाद्य वस्तुओं,दलहन व तेलहन के मूल्यों में लगती आग पर चर्चा ही नहीं करती, पेट्रोल डीजल व रसोई गैस की कीमतों से नियंत्रण खो बैठती है तो निश्चित रूप से सरकार व सरकार के मुखिया की मसीहाई न केवल संदिग्ध लगने लगती है बल्कि यह प्रचार तंत्र का एक ‘फंडा ‘ मात्र प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री ने कोरोना काल की शुरूआत में देश के लोगों को ‘आपदा में अवसर ‘ तलाश करने का जो ‘महा मंत्र ‘ दिया था उससे जनता भले ही लाभान्वित न हो सकी हो परन्तु सरकार व उसके चतुर सलाहकारों ने ‘आपदा में अवसर ‘ ढूंढ निकालने का कोई भी अवसर नहीं गंवाया।
(Government’s gift on festivals)
उदाहरण के तौर पर कोरोना काल में सवारी-मेल-एक्सप्रेस रेल गाड़ियों का परिचालन पूरी तरह बंद कर दिया गया था। उसके बाद जब सबसे पहले दो महीने बाद आहिस्ता आहिस्ता रेल परिचालन शुरू किया गया तो सबसे पहले राजधानी ट्रेन्स की शुरूआत की गई। फिर धीरे धीरे अन्य ट्रेन्स शुरू की गयीं। अभी भी पूरी क्षमता के साथ सभी ट्रेन्स का संचालन नहीं हो पा रहा है।
परन्तु कोरोना काल के दौरान या उसके बाद शुरू की गई रेल गाड़ियों में ‘रणनीतिकारों ‘ ने ‘आपदा में अवसर ‘ की तलाश करते हुए कुछ ऐसी चतुराई की जिसकी गाज उन गरीब व साधारण रेल यात्रियों पर पड़ी जो कोरोना काल में या तो बेरोजगार हो चुके थे या उनकी तनख्वाहें आधी हो चुकी थीं।
सरकार ने लंबी दूरी की अनेकानेक नियमित रेल गाड़ियों के आवागमन के समय में थोड़ा परिवर्तन किया, किसी के रुट में कुछ बदलाव किया,कुछ ट्रेन्स के कुछ पड़ाव कम कर दिये जिससे यात्रियों को ही परेशानी उठानी पड़ी।
इसके बाद ट्रेन नंबर में मामूली फेर बदल कर उन्हें ‘विशेष रेलगाड़ियों’ की श्रेणी में डाल दिया। इस चतुराई के बाद सरकार ने इन ट्रेनों के किराये में भी बढ़ोतरी तो कर ही दी साथ साथ वरिष्ठ नागरिकों व अन्य श्रेणी के लोगों को किराये में मिलने वाली छूट भी समाप्त कर दी।
(Government’s gift on festivals)
देश को भली भांति याद होगा जब गत वर्ष बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के अंतिम दिन एक नवंबर 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने छपरा में एक रैली को संबोधित करते हुए छठ पूजा का जिक्र करते हुए बिहार की मां-बहनों से अत्यंत मार्मिक शब्दों में संबोधन करते हुए कहा था कि – ‘कोरोना काल में आप छठ पूजा कैसे मनायें, इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है। आपका बेटा दिल्ली में बैठा है।
आप तो बस छठ पूजा की तैयारी करो। उन्होंने कहा कि दुनिया में आज कोई ऐसा नहीं है, जिसे कोरोना ने प्रभावित न किया हो और जिसका इस महामारी ने नुक्सान न किया हो। एनडीए की सरकार ने कोरोना की शुरूआत से ही प्रयास किया है कि वो इस संकट काल में देश के गरीब, बिहार के गरीब के साथ खड़ी रहे। हम गरीबों को मुफ़्त अनाज दे रहे हैं।
कोरोना के काल में किसी मां को ये चिंता करने की जरूरत नहीं है कि छठ पूजा को कैसे मनाएंगे। अरे मेरी मां! आपने अपने बेटे को दिल्ली में बैठाया है, तो क्या वो छठ की चिंता नहीं करेगा? मां, तुम छठ की तैयारी करो, दिल्ली में तुम्हारा बेटा बैठा है।’ प्रधानमंत्री का यह कितना हृदयस्पर्शी भाषण था ? आज इस भाषण को पूरे एक वर्ष बीत चुके हैं।
दुर्गा पूजा दशहरा के बाद एक बार फिर छठ व दीपावली के त्यौहार सिर पर हैं। आम आदमी की कोरोना काल से टूटी कमर अभी सीधी भी नहीं हुई है कि मंहगाई गत वर्ष की तुलना में काफी अधिक बढ़ चुकी है। परन्तु सरकार इसमें भी अवसर तलाशने में जुट गयी है। झारखण्ड-बिहार-दिल्ली-पंजाब-महाराष्ट्र-बंगाल जैसे कई राज्यों में कई ‘विशेष त्यौहारी रेलगाड़ियों’ का परिचालन शुरू किया गया है तो कई गाड़ियों के फेरे बढ़ा दिए गये हैं। कहने को तो रेलवे त्यौहार मनाने हेतु घर-गांव जाने वाले लोगों की ‘सुविधा’ के लिये यह व्यवस्था कर रहा है।
परन्तु इन स्पेशल रेलगाड़ियों में सभी श्रेणियों के यात्रियों से 30 प्रतिशत अतिरिक्त किराया वसूल किया जा रहा है। यदि सरकार संवेदनशील व वास्तव में जनहितैषी होती तो उसे किराये में 30 प्रतिशत बढ़ोतरी करने के बजाये 20-30 प्रतिशत की छूट देनी चाहिये और वरिष्ठ नागरिकों व अन्य श्रेणी के लोगों को किराये में दी जाने वाली छूट भी बहाल करनी चाहिये। परन्तु सरकार कोरोना की मार झेलने वाले श्रमिकों से अतिरिक्त किराया वसूल रही है।
(Government’s gift on festivals)
‘बिहार की माओं ‘ पर क्या गुजरेगी जब उनका ‘बेटा’ 30 प्रतिशत अतिरिक्त रेल किराया भरकर और कमर तोड़ मंहगाई में खाली हाथ अपने घर आँगन पहुंचेगा ? उधर देश के कई रेल स्टेशन्स पर ‘अतरिक्त यात्री सुविधा शुल्क’ पर 15से लेकर 35 रुपए प्रति यात्री वसूलने की भी तैयारी हो चुकी है। काश,बिहार में दिये गये पिछले वर्ष के चुनावी भाषण के मर्म को समझते हुए प्रधानमंत्री ने मंहगाई कम करने की तरफ ध्यान दिया होता,कम से कम रेल भाड़ों में ही बढ़ोत्तरी न की होती तो शायद ‘देश की माओं’ को यह एहसास होता कि वास्तव में उनका ‘बेटा ‘ दिल्ली में तख़्त नशीं है।
अन्यथा कमर तोड़ मंहगाई के साथ साथ रेल भाड़ों में भी वृद्धि कर देना और सभी छूट समाप्त कर देना तो यही एहसास कराता है कि यह सब जुमलेबाजियाँ हैं जो सुनने में कानों को तो भले ही मधुर लगती हों परन्तु यह जनता को ‘छलने’ के प्रयास के सिवा कुछ भी नहीं।
(Government’s gift on festivals)
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