How to Control Uncontrollable Emotional Thinking : कोरोना महामारी से पहले हर किसी की जिंदगी सामान्य थी और हर कोई अपनी-अपनी जिंदगी में खुश था। किसी को अंदेशा नहीं था कि आने वाला समय डराने वाला और तनाव से भरा होगा। लोगों ने महामारी के बारे इतिहास में सुना तो जरूर था, लेकिन उसका जीवन पर कितना भयंकर और दुखदाई असर हो सकता है,उसका पहली बार अनुभव किया।
अपने चारो तरफ नकारात्मक माहौल को देखकर जीवन में निराशा फैल रही थी। लोगों ने इस तरह का वातावरण पहली बार देखा था, इसलिए वो अपने जीवन और भविष्य को लेकर चिंतिंत थे। उनकी मनोवैज्ञानिक शक्ति क्षीण हो रही थी। हालांकि, बहुत से लोग ऐसे भी रहे जिन्होंने इस भयंकर पीड़ा से पार भी पाया और अपनी मानसिक मजबूती का प्रदर्शन किया।
सेहत पर पड़ा सबसे अधिक असर (How to Control Uncontrollable Emotional Thinking)
कोरोना महामारी ने हर किसी की जिंदगी को प्रभावित किया। इस दौर में लोगों ने अपनो को खोया, नौकरी खोई, बिजनेस का नुकसान हुआ और पढ़ाई पर असर हुआ। इन सबका असर लोगों की सेहत पर पड़ा। लोग मानसिक रूप बीमार हुए, तनाव, डिप्रेशन और अकेलेपन के शिकार हुए। इसमें बच्चे, जवान और बूढ़े हर वर्ग के लोग शामिल हैं। कई सर्वे में यह भी पता चला है कि महामारी में बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य की वजह से नशीली पदार्थों का सेवन भी बढ़ा है। (How to Control Uncontrollable Emotional Thinking)
पिछले 20 महीनों से लोग इसी जद्दोजहद में लगे हुए हैं कि कैसे मानसिक रूप से खुद को स्थिर किया जाए, क्योंकि महामारी का खतरा अभी भी बरकरार है। आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में मानसिक स्वास्थ्य का महत्व काफी बढ़ा है। कोरोना महामारी के दौरान इस पर बहुत ज्यादा चर्चा होनी शुरू हो गई है। चिकित्सा विशेषज्ञों ने सहमति व्यक्त की कि सुरक्षा बाधाओं, सामाजिक दूरियों, कोविड के कारण अपने प्रियजनों को खोने, जॉब के नुकसान की वजह से लोगों की मानसिक सेहत बिगड़ी है। ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है जो किसी न किसी मानसिक रोग के शिकार हैं। आप बताइए क्या लोग अभी भी मनोरोगों को नजरअंदाज कर रहे हैं और इस मुद्दे पर किसी से बात नहीं करना चाहते?
मानसिक स्वास्थ्य का सीधा संबंध बेकाबू हो रही भावनात्मक सोच से है। ऐसे समय में जब चारों तरफ नकारात्मक महौल हो तब हर किसी को मनोवैज्ञानिक सपोर्ट की जरूरत पड़ती है। इससे शिकार लोगों को अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना चाहिए, उनसे बाते करनी चाहिए और मनोचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।
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