How To Keep Children Away From Negativity
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
हर माता-पिता के लिए उनके बच्चे हमेशा खुश रहे वो यही चाहते है। आखिर क्यों बच्चों में नकारात्मक विचार आने लगते है, आपने कभी सोचा है। जो बच्चों के लिए अच्छी बात नहीं है, इसकी वजह से उसके व्यवहार में ऐसा बदलाव आता है, जो अन्य बच्चों के लिए भी खतरनाक हो सकता है। ऐसा होने पर उसका स्वभाव बहुत चिड़चिड़ा हो जाता है और वह किसी भी बात का जवाब चीड़ कर या नजरअंदाज कर देता है।
जब बच्चों में Negative विचार का कारण होता है उनके साथ अच्छा व्यवहार न करना या फिर उनके साथ हमेशा डांट कर और चिल्ला कर बात करना। इसी कारण उनके व्यवहार में ऐसा बदलाव आने लगता है और वह नकारात्मकता की ओर जाने लगते है। इसकी वजह से उनका मानसिक स्वास्थ्य भी खराब होने लगता है। नकारात्मक व्यवहार का मतलब है की उसका सभी चीजों को लेकर नजरिया बदल जाना। जिसके बाद वह हर चीज में कमी निकालने लगते है या उस काम को करते ही नहीं है।
ईमानदारी की बात करे तो इस समय हम बड़े खुद अपने हिस्से की समस्याओं में इस कदर उलझे हुए हैं कि शायद ही बच्चों पर माइन्यूटली ध्यान दे पा रहे हों। पर जिस तरह यह सबकुछ हमारे लिए नया है, अजीब है और डरावना है, उसी तरह बच्चे भी पहली बार अपने आसपास इस तरह का अजीबोगरीब माहौल देख रहे हैं। आजकल सोशल मीडिया के चलते वे हमसे ज्यादा जानकारियों से एक्सपोज रहते हैं। तो जाहिर है, इस परिस्थिति के बारे में भी उन्हें काफी जानकारी होगी। अमूमन जब हमारे पास जरूरत से ज्यादा जानकारियां हो जाती हैं, तब वे हमें नकारात्मक रूप से प्रभावित करने लगती हैं। हमारा अवचेतन मस्तिष्क उन जानकारियों का विश्लेषण करता रहता है। यही मेकैनिजम बच्चों पर भी काम करता है। वे भी अधिक जानकारी के चलते नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
जब हम नकारात्मकता से भरते जाते हैं, तब हमारे रूटीन में बदलाव आना शुरू हो जाता है। जैसे या तो हम बहुत ज्यादा सोने लगते हैं या रात रातभर नींद नहीं आती। हमारा व्यवहार बदल जाता है। हम अधिक उग्र हो जाते हैं या बिल्कुल ही शांत हो जाते हैं। खाना खाने के मामले भी यही होता है। या तो स्ट्रेस में बहुत खाते हैं या डायट एकदम से कम हो जाती है। हमें हर वक़्त भारीपन और थकान का अनुभव होता है। अपने पसंद की गतिविधियों में मन नहीं लगता। अगर आप अपने बच्चे में ये बदलाव देख रहे हैं तो बिल्कुल भी इग्नोर न करें।
इस बात की बहुत ज्यादा संभावना है कि अगर आप बच्चे से पूछें कि कोई प्रॉब्लम है क्या? तो वह मना कर दे और कहे सब ठीक है। उसकी सब ठीक है वाली बात को सुनकर आप रिलैक्स न होइ। उसे Monitor करते रहें। हम यह भले ही सोचते हों कि अपने पैरेंट्स की तुलना में हम काफी खुले विचारों वाले हैं, बच्चे हमसे सबकुछ बताते हैं, पर इस बात को मत भूलिए, आप उनके parents हैं और पैरेंट्स हमेशा parents रहते हैं। ज्यादातर बच्चे अब भी पैरेंट्स को सारी बातें नहीं बताते। ऐसे में आप बच्चे में विश्वास पैदा करें। उन मुद्दों को न छेड़ें, जिनपर आपकी राय एक जैसी न हो। उन्हें यह बताएं कि हर परिस्थिति में आप उनके साथ हैं। उनके साथ रोजाना टाइम बिताएं, क्योंकि भरोसे का यह माहौल एक दिन में तो नहीं बनाया जा सकता है न।
बच्चों के साथ टाइम बिताने के लिए आप उनके साथ indoor games खेल सकते हैं। उनके पसंदीदा टॉपिक पर डिस्कशन कर सकते हैं। उन्हें नई बातें बता सकते हैं। अपने बचपन की कहानियां सुना सकते हैं। बात करते करते उनसे उनकी समस्या के बारे में पूछें। कहने का मतलब यह है कि बच्चों को उनकी हाल पर नहीं छोड़ना है। वे चाहे कितना भी मना क्यों न करें, उनकी समस्याओं को जानने की कोशिश करें और समाधान भी सुझाएं। बेशक, इस काम में आपको बहुत ज्यादा टाइम लग सकता है, पर हार न मानें।
जब आपको समस्या के बारे में पता चल जाए तो धैर्य के साथ समाधान की तरफ बढ़ें। उनकी समस्याओं को छोटी करके न आंकें और न ही अपनी बड़ी प्रॉब्लम्स के साथ Compare करें। हर समस्या यूनीक होती है तो समाधान भी यूनीक होना चाहिए। आप अपना उदाहरण उन्हें दे सकते हैं, पर यही सही रास्ता है ऐसा नहीं कह सकते।
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