India News (इंडिया न्यूज़), Rashid Hashmi: नया दौर, नई कहानी, नया संसद भवन, लोकतंत्र के मंदिर में आज से एक नई शुरुआत। 75 साल का इतिहास समेटे पुराना संसद भवन आज से इतिहास है। नए संसद भवन में आज से कर्मचारियों की ड्रेस भी नई है। नए संसद भवन में संसद के कर्मचारी नई ड्रेस पहनेंगे। नेहरू जैकेट और खाकी रंग की पैंट को शामिल किया गया है। ब्यूरोक्रेट्स बंद गला सूट की जगह मैजेंटा या गहरे गुलाबी रंग की नेहरू जैकेट पहनेंगे। उनकी शर्ट भी कमल के फूल के डिज़ाइन के साथ गहरे गुलाबी रंग में होगी। नई बिल्डिंग में 140 करोड़ हिंदुस्तानियों की उम्मीदें भी नई हैं। अंदर की ख़बर ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संविधान की प्रति लेकर नई संसद में प्रवेश कर सकते हैं।
याद कीजिए जब नरेंद्र मोदी पहली बार सांसद बनकर आए तब प्रवेश से पहले संसद की सीढ़ियों पर माथा टेका था। ये है लोकतंत्र के मंदिर की ताक़त और इज़्ज़त। ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर द्वारा डिजाइन मौजूदा संसद भवन के निर्माण में 6 साल लगे, जबकि नई इमारत को साढ़े 3 साल के रिकॉर्ड समय में तैयार किया गया। संसद भवन में बतौर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, गुलज़ारीलाल नंदा, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, पीवी नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी, एच डी देवगौड़ा, इंद्रकुमार गुज़राल, मनमोहन सिंह की विरासत है। क्या भूलूं क्या याद करूं।
स्वर्गीय सुषमा स्वराज और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के बीच शेरो-शायरी का वो दौर याद कीजिए। पंद्रहवीं लोकसभा में एक बहस के दौरान मनमोहन सिंह ने भाजपा पर निशाना साधते हुए मिर्ज़ा ग़ालिब का मशहूर शेर पढ़ा, “हम को उनसे वफ़ा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।” इसके जवाब में सुषमा स्वराज ने कहा कि अगर शेर का जवाब दूसरे शेर से नहीं दिया जाए तो उधार बाक़ी रह जाएगा। इसके बाद उन्होंने बशीर बद्र के शेर से जवाब देते हुए कहा, “कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफ़ा नहीं होता।” सुषमा ने एक और शेर पढ़ा, “तुम्हें वफा याद नहीं, हमें जफ़ा याद नहीं, जिंदगी और मौत के दो ही तराने हैं, एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं।” संसद भवन में भाषण से लेकर बहस तक का इतिहास है। क्या कमाल था पूर्व पीएम चंद्रशेखर का वो भाषण, “भारत में तरह-तरह के मज़हब, तरह-तरह की जातियां, तरह-तरह की भाषा के लोग हैं। इस बगीचे की क्यारियों में तरह-तरह के फूल खिले हैं।
कोई हिंदू है मुसलमान है, सिख है, ईसाई है पारसी और अलग-अलग भाषाओं वाले लोग हैं। इस चमन के हर फूल को मुस्कुराने की आज़ादी है।” रोंगटे खड़े हो जाते हैं साल 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के एक-एक शब्द याद करके जब प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने से पहले उन्होंने संसद में भाषण दिया था। 31 मई 1996 को संसद में दिया गया अटल का भाषण भारतीय लोकतंत्र में हमेशा दर्ज रहेगा। संसद में विश्वास मत के दौरान अटल जी ने कहा था, “सरकारें आएंगी-जाएंगी मगर ये देश और उसका लोकतंत्र रहना चाहिए।” उम्मीद है कि पुरानी संसद के गर्वीले इतिहास की पोटली नए भवन में खोली जाएगी और स्वस्थ लोकतंत्र की मुनादी होगी।
संसद भवन बदला है-लोकतंत्र नहीं, इमारत बदली है-परंपरा नहीं, चेहरे बदलेंगे-विरासत नहीं। साढ़े 3 साल में बनकर तैयार हुए नए संसद भवन को बनाने में 1200 करोड़ का ख़र्च आया जबकि पुरानी इमारत 83 लाख में बन कर तैयार हुई थी। पुराने संसद भवन में लोकसभा के 543 और राज्यसभा के 250 सदस्य बैठ सकते हैं। नए संसद भवन की ख़ास बात ये है कि इसमें लोकसभा के 888 और राज्यसभा के 384 सदस्यों के बैठने की क्षमता होगी। नया संसद भवन 64,500 वर्ग मीटर में बना है। 140 करोड़ का हिंदुस्तान क़ानून बनाने और देश की नीतियां निर्धारित करने के लिए जिन सांसदों को लोकतंत्र के महामंदिर में भेजता है, उनके कंधों पर ज़िम्मेदारियां हैं। याद रखिए कि संसद की कार्यवाही पर हर एक मिनट में ढाई लाख रुपये ख़र्च होते हैं।
आसान भाषा में समझें तो एक घंटे में डेढ़ करोड़ ख़र्च हो जाता है। सांसदों का वेतन, संसद सचिवालय पर आने वाले ख़र्च, संसद सचिवालय के कर्मचारियों के वेतन, सत्र के दौरान सांसदों की सुविधाओं पर होने वाला ख़र्च- ये वहीं रक़म होती है, जिसे हम टैक्स के रूप में भरते हैं। सांसदों को हर महीने 50,000 रुपये सैलरी दी जाती है, चुनावी क्षेत्र भत्ता के रूप में सांसदों को 45,000 रुपये वेतन दिया जाता है, सांसदों का कार्यालय खर्च भी होता है, जो 15,000 रुपये होता है- संसद और सांसद के लिए जो पैसे खर्च किए जाते हैं वो हमारी और आपकी कमाई का हिस्सा होता है। इसलिए नई संसद में संकल्प होना चाहिए- संकल्प स्वस्थ बहस का, लोकतंत्र की मज़बूती, हो हल्ला हंगामा किए बिना विकास की नीतियां निर्धारित करने का।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने संसद भवन में अपनी आखिरी भाषण में कहा, “देश 75 वर्षों की संसदीय यात्रा का एक बार फिर से संस्मरण कराने के लिए और नए सदन में जाने के लिए उन प्रेरक पलों को, इतिहास की अहम घड़ी को स्मरण करते हुए आगे बढ़ने का ये अवसर है। हम सब, इस ऐतिहासिक भवन से विदा ले रहे हैं। आज़ादी के बाद इस भवन को संसद भवन के रूप में पहचान मिली। इस इमारत का निर्माण करने का फैसला विदेशी शासकों का था। हम गर्व से कह सकते हैं कि इस भवन के निर्माण में पसीना, और परिश्रम मेरे देशवासियों का लगा था। पैसे भी मेरे देश के लोगों के लगे।” संसद सत्र छोटा है लेकिन मोदी के संकेत बड़े हैं, PM के एक-एक शब्द में देश को संदेश है। 75 साल की यात्रा ने लोकतांत्रित प्रक्रियाओं का सृजन किया। भारत का लोकतंत्र नए भवन में जा रहा है, लेकिन पुरानी इमारत भी आगे आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी। उम्मीद है कि भारत अपने लोकतंत्र की स्वर्णिम यात्रा का अध्याय लिखता रहेगा। प्रेम धवन का लिखा गीत याद कीजिए और साक्षी बनिए बड़े बदलाव के,
“आज पुरानी ज़ंजीरों को तोड़ चुके हैं
क्या देखें उस मंज़िल को जो छोड़ चुके हैं
चांद के दर पर जा पहुंचा है आज ज़माना
नए जगत से हम भी नाता जोड़ चुके हैं
नया खून है नई उमंगें, अब है नई जवानी
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी”
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