India News (इंडिया न्यूज़), राशिद हाशमी, बातों बातों में: नक़वी मैम सिखाती थीं- “हम को मन की शक्ति देना मन विजय करे, दूसरों की जय से पहले खुद को जय करे”। मधु मैम ने पढ़ाया- लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी, ज़िंदगी शम्मा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी” और सिस्टर चार्ल्स ने बताया- “हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन, मन में है विश्वास पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन”। मेरे स्कूल ने मुझे मज़हब, पंथ, धर्म, संप्रदाय, समुदाय नहीं सिखाया- जिस पर मुझे आज भी नाज़ है। हमारे स्कूल की प्रार्थना में प्यारे भईया की ढोलक की थाप थी, वज़ीर की आवाज़ थी, रागिनी मैम का साज़ था, सिस्टर लिलियाना का एहसास था। क्या मजाल कि कोई धर्म के नाम पर कोई तंज़ या मज़ाक कर ले। हमारे मुल्क़ में टीचर का मतलब डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, चाणक्य, रविंद्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और स्वामी दयानंद सरस्वती है।
मेरे भारत के महान टीचर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने आध्यात्मिक शिक्षा को महत्व दिया और दर्शन की सबसे कठिन अवधारणाओं को समझने और साझा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन कभी धर्म के बंधन में नहीं बंधे। मेरे हिंदुस्तान में सावित्रीबाई फुले को भारत की पहली महिला शिक्षिका के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने भारत में क्रांति ला दी और अपने पति के साथ मिलकर 1848 में एक स्कूल खोला। इस स्कूल में सावित्रीबाई फुले ने समाज की अछूत लड़कियों का दाख़िला कराया। उन्होंने निचली जाति की महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ बुलंद आवाज उठाई। मेरे इंडिया में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम उन प्रसिद्ध शिक्षकों में से एक थे जो छात्रों के स्तर को समझते थे और उन्हीं की तरह सोचते और बताते थे। ये दर्जा है मेरे भारत में शिक्षकों का।
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में स्कूली बच्चे की पिटाई का वीडियो देख कर रूह कांप गई। एक टीचर बच्चों से मुस्लिम बच्चे को थप्पड़ मरवाती नज़र आ रही है, इतना ही नहीं टीचर ने मासूम बच्चे पर आपत्तिजनक टिप्पणी भी की। वीडियो देखने के बाद समूचा भारत आक्रोश में है। बच्चे की ग़लती बस इतनी थी कि उसने पहाड़ा नहीं याद किया था। इसी बात पर टीचर को इतना गुस्सा आया कि बच्चे को बुरी तरह पिटवाया। ज़रा सोचिए नादान बच्चे के मन मस्तिष्क पर क्या असर पड़ा होगा। वीडियो वायरल होने के बाद शिक्षा विभाग ने एक्शन लिया। न केवल टीचर के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया बल्कि स्कूल मैनेजमेंट को भी नोटिस जारी कर पूछा गया है कि क्यों न स्कूल की मान्यता निरस्त कर दी जाए। लेकिन बच्चे के दिमाग़ में पहाड़ा और पिटाई दोनों अंकित हो चुके हैं। ये पिटाई किसी सदमे से कम नहीं। ऐसा नहीं कि हमारे ज़माने में शिक्षक पिटाई ना करते हों, लेकिन पिटाई वाले डंडे पर धर्म का मुलम्मा कभी नहीं चढ़ा। मैं चौथी क्लास में था, एक बच्चे ने मुझसे पूछा कि तुम्हारे धर्म में पूजा कैसे होती है, हमारे माटसाब को पता चला। क्या क्लास लगाई थी, उस ज़माने में माटसाब ने हमारी- कहा फिर कभी धर्म की बात की तो वापस घर भेज देंगे।
बीजक में कबीर लिखते हैं- गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय। आसान शब्दों में समझें तो कबीर कहते हैं- गुरू और गोविंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को या गोविंद को ? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
शिक्षक का दर्जा भारतीय समाज में हमेशा से ही पूजनीय है। कोई उसे गुरु कहता है, कोई शिक्षक, कोई आचार्य जी, तो कोई अध्यापक या टीचर। ये सभी शब्द एक ऐसे शख्स को चित्रित करते हैं, जो ज्ञान देता है, सिखाता है, पढ़ाता है। टीचर का योगदान राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करना है। एक शिक्षक अपने छात्र का जीवन गढ़ता, तराशता और मांजता है। शिक्षक ही समाज की आधारशिला है। एक शिक्षक अपने जीवन के अंत तक मार्गदर्शक की भूमिका अदा करता है और समाज को राह दिखाता रहता है, तभी तो शिक्षक को समाज में सबसे ऊंचा दर्जा दिया गया है।
इस समय भारत में 36 करोड़ छात्र हैं। इनमें से 27 करोड़ तो सिर्फ स्कूलों में पढ़ रहे हैं। सोचिए मुज़फ़्फ़रनगर का वीडियो देख कर करोड़ों छात्रों के दिल में शिक्षक को लेकर क्या भाव आए होंगे। हर साल इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आईएलओ), यूनिसेफ और यूनेस्को मिलकर वर्ल्ड टीचर्स डे या इंटरनेशनल टीचर्स डे मनाते हैं। यूनिसेफ और यूनेस्को ने भी इस टीचर की शर्मनाक करतूत तो देखी ही होगी। एक शिक्षक की करतूत उन टीचर्स को कमतर नहीं करती जो अभावों के बीच समाज में शिक्षा के झंडाबरदार बन कर खड़े हैं।
मुज़फ़्फ़रनगर की टीचर जी से कुछ बातें कहना चाहता हूं, और ये बातें दिल से निकल रही हैं तो उम्मीद करता हूं कि दिल तक जाएगी। हर मां-बाप की पहली चाहत होती है कि अपनी औलादों को अच्छी शिक्षा दिलाएं, पढ़ा-लिखाकर उन्हें बड़ा बनाएं। लेकिन सिर्फ किताबी ज्ञान या सामान्य शिक्षा किसी को बड़ा नहीं बना सकती। सफलता के शीर्ष को छूना हो तो शिक्षा के साथ बच्चों को संस्कार देना भी ज़रूरी हैं। संस्कार को ज्ञान के साथ गूंथना ज़रूरी है। संस्कार सोच से आते हैं, विचार और व्यवहार से आते हैं। संस्कार समरसता से आते हैं, एकसूत्र में पिरोने से आते हैं। संस्कारों को ज्ञान में गूंथने का काम टीचर्स का है। एक शिक्षक ही अपने शिष्य को ऊंचे मुकाम तक पहुंचा सकता है, लेकिन इसके लिए ज्ञान के साथ-साथ संस्कार की ज़रूरत है। संस्कार की बुनियादी शर्त है- धारण करें फिर धारणा बनवाएं। शिक्षक और गुरु में एक बारीक़ फर्क है।
शिक्षक शिक्षा तो दे सकता है, लेकिन संस्कार देने के लिए शिक्षक को गुरु की भूमिका निभानी पड़ती है। बच्चे के गाल पर मज़हबी थप्पड़ से शख़्सियत नहीं बना करती। मुझे मेरी नक़वी मैम, मधु मैम, प्रीति मैम, ममता मैम याद हैं और हमेशा याद रहेंगी। इन सभी ने मेरे व्यक्तित्व को बनाया है, सजाया और संवारा है। लेकिन मुज़फ़्फ़रनगर वाली मैम को मैं तो क्या 140 करोड़ का हिंदुस्तान भी कभी याद नहीं रखना चाहेगा। मेरे शिक्षक वंदनीय हैं और रहेंगे, मेरे गुरु के लिए हमेशा शीष झुकेगा लेकिन मुज़फ़्फ़रनगर वाली मैडम आपसे देश करोड़ों सवाल ही करता रहेगा- सवाल कि आपने एक मासूम बच्चे के बचपन पर मज़हबी कलंक क्यों लगाया ?
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