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India News(इंडिया न्यूज), New Parliament House:19 सितंबर, 2023 यह ऐसी तारीख़ है जिसे भारत के संसदीय इतिहास में ऐतिहासिक दिन के तौर पर याद किया जाएगा, यह पहला दिन होगा जब देश के सांसद नए संसद भवन में बैठेंगे, यह पहला दिन होगा जब देश के जन प्रतिनिधि अंग्रेज़ी हुकूमत की इमारत से निकलकर एक ऐसे संसद भवन से नई शुरुआत करेंगे जो अपने निर्माण से लेकर साज सज्जा तक में भारतीय है। नई इमारत सुरक्षा और सुविधा के साधनों से लैस है और आने वाले समय की आवश्यकताओं के लिहाज़ से तैयार भी, संसद के विशेष सत्र का पहला दिन पुराने संसद भवन में रखा गया ताकि पिछले 75-77 वर्षों में लोकतंत्र को जो ऊर्जा और दिशा जिस भवन में मिली उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की जाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले भाषण से लेकर इंदिरा गांधी के बांग्लादेश विजय के उद्बोधन तक, नरसिंहराव सरकार की आर्थिक उदारीकरण की घोषणा से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कई महत्वपूर्ण ऐलान तक, सब का विस्तार से उल्लेख किया, उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार के 370 हटाने से लेकर ट्रिपल तलाक़ के विरुद्ध क़ानून लाने तक के महत्वपूर्ण फ़ैसले इसी पुराने संसद भवन की उपज रहे। परमाणु परीक्षण जैसे गर्व और गौरव की घोषणाओं से लेकर आपातकाल लगाने जैसे विवादित फैसलों तक का गवाह वह संसद भवन रहा है, जिमी कार्टर और बराक ओबामा जैसे विदेशी मेहमानों को भारतीय संसद के संयुक्त सदनों को उसी भवन में संबोधित करने का गौरव हासिल हुआ जो पिछले 95 बरसों से भारतीय सत्ता का शक्तिपीठ रहा, 18 जनवरी, 1927 को तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने संसद भवन का उद्घाटन किया था, अगलें दिन यानी 19 जनवरी 1927 को संसद भवन में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली के तीसरे सत्र की पहली बैठक हुई।
अब इतिहास में दर्ज तारीखे कहती हैं कि उसी इमारत में 9 दिसंबर, 1946 संविधान सभा की पहली बैठक हुई, और उसी संसद भवन में 14-15 अगस्त, 1947 को संविधान सभा के अर्द्धरात्रि सत्र के दौरान सत्ता हस्तांतरण हुआ, दो सौ साल पुराना अंग्रेज़ी शासन भारतीयों के आया। स्वतंत्र भारत की संसद पिछले 75 वर्षों से जिस भवन में चलती रही है, उसकी अपनी प्रासंगिकता और लोकतांत्रिकता रही है।
कलकत्ता ( आज कोलकाता) 1911 तक ब्रिटिश भारत की राजधानी थी, दिल्ली को इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सामरिक स्थिति के कारण 1912 में तत्कालीन पंजाब से अलग कर भारत की राजधानी बनाया गया था।
जब नई राजधानी को नई दिल्ली स्थानांतरित किया गया, तो कई नई इमारतों की आवश्यकता पड़ी, इसलिए गवर्नर जनरल का आवास जो आज राष्ट्रपति भवन कहलाता है, सैन्य अधिकारियों के लिए निवास और सरकारी कार्यालयों के लिए नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक बनाए गए, यह काम सर एडविन लुटियंस नामक एक अंग्रेज वास्तुकार ने किया था, यही कारण है कि यह इलाका ‘लुटियंस दिल्ली’ के नाम से जाना जाता है। यहां ब्रिटिश काल के बंगले भी हैं, जिन्हें मंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट के जजों, वरिष्ठ सांसदों और उच्च सरकारी अधिकारियों को आवंटित किए गए हैं।
लुटियंस ने जो संसद भवन बनाया उसमें 64 गोल खंभे हैं और यह मध्य प्रदेश के मुरैना में योगिनी मंदिर से प्रभावित हैं, वैसे इसका कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं है लेकिन जब आप योगिनी मंदिर को देखते हैं तो समझ आता है कि डिज़ाइन को लुटियंस ने वहीं से लिया था, इस इमारत को बनाने में 2,500 मूर्तिकार और राजमिस्त्री लगे हुए थे, समय के साथ साथ भारतीय संसदीय व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में इस भवन में कुछ कठिनाइयां महसूस होने लगी। इसलिए वर्ष 2009 में संसदीय क्षेत्र के विस्तार के लिए नए भवन के निर्माण का फ़ैसला लिया गया, उसके बाद 2012 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने इस मुद्दे पर एक समिति का गठन किया गया था, मतलब यह कि संसद भवन बनाये जाने का विरोध करने वाली कांग्रेस ने ही नई बिल्डिंग का प्रस्ताव किया था।
दावा ये किया जाता है कि नई संसद और सेंट्रल विस्टा को डिज़ाइन करते समय वर्तमान और भविष्य की ज़रूरतों को ध्यान में रखा गया, अगर आप सेंट्रल विस्टा की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं तो नई संसद की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कई तर्क दिए गए हैं।
मसलन, साल 2026 के बाद देश में लोकसभा और राज्यसभा की सीटों की संख्या बढ़ाने पर लगा प्रतिबंध हटा लिया जाएगा, फिर लोकसभा और राज्यसभा में अतिरिक्त सांसदों की व्यवस्था करनी होगी, मुद्दा इतना ही नहीं है बल्कि तर्क यह भी दिया गया कि पुराने संसद भवन के मूल डिज़ाइन में सीसीटीवी केबल, ऑडियो वीडियो सिस्टम, एयर कंडीशनिंग, अग्निशमन प्रणाली की सुविधा नहीं थी, इसलिए बेहतर व्यवस्था की ज़रूरत थी जिसका नई संसद में बाक़ायदा ख़याल रखा गया है।
सरकार का कहना है कि जब भवन बनाया गया था तब यह क्षेत्र सिस्मिक जोन-2 में था, लेकिन वह आज उसे सिस्मिक जोन-4 में तब्दील कर दिया गया है, जिससे बिल्डिंग पर ख़तरा मंडरा रहा था। जो ज़िम्मेदारी अंग्रेजों के समय एडवर्ड लुटियंस को दी गई थी, नये संसद भवन के लिए यह दायित्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के आर्किटेक्ट बिमल पटेल को सौंपा गया, 19 सितंबर 2023 एक ऐसी तारीख़ है जहां से भारतीय लोकतंत्र की दशा और दिशा तय करने की परंपरा नए संसद भवन के ज़रिये आगे बढ़ेगी।
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