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India will have to Maintain Neutrality भारत को बनाए रखनी होगी तटस्थता

India will have to Maintain Neutrality

वेदप्रताप वैदिक

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक

भारत के लिए चिंता का विषय यह है कि अभी पिछले हफ्ते ही अमेरिका ने एक नया संगठन खड़ा कर दिया है। उसका नाम है आॅकुस यानी आॅस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और यूएस। प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी काफी दिनों बाद इस हफ्ते विदेश यात्ना करनेवाले हैं। वे वाशिंगटन और न्यूयॉर्क में कई महत्वपूर्ण मुलाकातें करनेवाले हैं।

सबसे पहले तो वे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से मिलेंगे और फिर चौगुटे (क्वाड) के नेताओं से मिलेंगे यानी जापान के प्रधानमंत्नी योशिहिदे सुगा और आॅस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्नी स्कॉट मॉरिसन से भी मिलेंगे। इस दौरान वे अमेरिका की कई बड़ी कंपनियों के मालिकों से भी भेंट करेंगे। संयुक्त राष्ट्र में उनके भाषण के अलावा उनका सबसे महत्वपूर्ण काम होगा चौगुटे के सम्मेलन में भाग लेना। यह चौगुटा बना है अमेरिका, भारत, जापान और आॅस्ट्रेलिया को मिलाकर। इसका अघोषित लक्ष्य है चीनी प्रभाव को एशिया में घटाना लेकिन चीन ने इसका नया नामकरण कर दिया है। वह कहता है कि यह ‘एशियाई नाटो’ है। यूरोपीय नाटो बनाया गया था सोवियत संघ का मुकाबला करने के लिए और यह बना है चीन का मुकाबला करने के लिए।

भारत के लिए चिंता का विषय यह है कि अभी पिछले हफ्ते ही अमेरिका ने एक नया संगठन खड़ा कर दिया है। उसका नाम है आॅकुस यानी आॅस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और यूएस। इसमें भारत और जापान छूट गए हैं और ब्रिटेन जुड़ गया है। अमेरिका ने यह नए ढंग का गुट क्यों बनाया है, समझ में नहीं आता। अब चौगुटे का महत्व घटेगा या उसका दर्जा दोयम हो जाएगा। इस नए गुट में अमेरिका अब आॅस्ट्रेलिया को कई परमाणु-पनडुब्बियां देगा। क्या वह भारत को भी देगा? परमाणु पनडुब्बियों का सौदा पहले आॅस्ट्रेलिया ने फ्रांस से किया हुआ था। वह रद्द हो गया। फ्रांस बौखलाया हुआ है। यदि मोदी-बाइडेन भेंट और चौगुटे की बैठक में अफगानिस्तान, प्रदूषण और कोविड जैसे ज्वलंत प्रश्नों पर भी वैसी ही घिसी-पिटी बातें होती हैं, जैसी कि सुरक्षा परिषद, शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स की बैठकों में हुई हैं तो भारत को क्या लाभ होना है?

भारत और अमेरिका के आपसी संबंधों में घनिष्ठता बढ़े, यह दोनों देशों के हित में है लेकिन हम यह न भूलें कि पिछले 74 साल में भारत किसी भी महाशक्ति का पिछलग्गू नहीं बना है। सोवियत संघ के साथ भारत के संबंध अत्यंत घनिष्ठ रहे लेकिन शीतयुद्ध के दौरान भारत अपनी तटस्थता के आसन पर टिका रहा। अब भी वह अपनी गुट-निरपेक्षता या असंलग्नता को अक्षुण्ण बनाए रखना चाहता है। वह रूस, चीन, फ्रांस या अफगानिस्तान से अपने रिश्ते अमेरिका के मन मुताबिक क्यों बनाए? मोदी को अपनी इस अमेरिका यात्ना के दौरान भारतीय विदेश नीति के इस मूल मंत्न को याद रखना है।

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