India News (इंडिया न्यूज़), Indian Politics: ज़ुबान में ईमान है तो समझिए इक़बाल है। ज़ुबान बेलगाम है तो मान कर चलिए बेईमान है। सियासत में आप ज़ुबान से बनते हैं, ज़ुबान से ही बिगड़ा करते हैं। अजीब होती है ज़ुबान, ग़लत चल जाए तो कटार और बदतमीज़ हो जाए तो आरपार। जिगर मुरादाबादी कहते हैं, “तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूं, लेकिन ज़ुबां में आंख नहीं आंख में ज़ुबान नहीं।” मिर्ज़ा ग़ालिब ने ज़ुबान पर क्या ख़ूब लिखा है- “मैं भी मुंह में ज़ुबान रखता हूं, काश पूछो कि मुद्दआ क्या है।
“मीर तक़ी मीर ने ज़ुबान पर जो लिखा वो नज़ीर है- “गुफ़्तुगू रेख़्ते में हम से न कर, ये हमारी ज़ुबान है प्यारे”। बोल में मुहब्बत से आप किसी को अपना बनाते हैं, अहंकार आ जाए तो ख़ुद कहीं खो जाते हैं। ज़ुबान पर क़ाबू रख कर आप अटल बन जाते हैं, मीठी रख कर मनमोहन कहलाते हैं, संजीदगी रख कर चंद्रशेखर हो जाते हैं। सियासत में शब्दों के तीर गंभीर होने चाहिए, अधीर नहीं। भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी और हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान ने जो बोला वो बदतमीज़ी और बदज़ुबानी की श्रेणी में आता है। आज़ाद भारत का इतिहास पटा पड़ा है उन भाषणों से जिनमें आलोचना के साथ संजीदगी है, आरोपों के साथ तमीज़ है।
रमेश बिधूड़ी और उदयभान जैसे नेताओं को आईना दिखाने वाले कुछ भाषणों का ज़िक्र करूं, उससे पहले भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की एक याद का ज़िक्र ज़रूरी है। एक बार देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जनसंघ की आलोचना की तो अटल ने कहा, “मैं जानता हूं कि नेहरू जी रोज़ शीर्षासन करते हैं। वो शीर्षासन करें, मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है। लेकिन मेरी पार्टी की तस्वीर उल्टी ना देखें।”
यह सुनते ही जवाहर लाल नेहरू ठहाका मारकर हंस पड़े। इसे कहते हैं आलोचना का स्तर। एक और क़िस्से का ज़िक्र करना ज़रूरी है। नेहरू और अटल सियासत में एक दूसरे के विरोधी रहे हैं, लेकिन सच ये है कि पंडित जी अटल के मुरीद थे। एक बार नेहरू ने भारत यात्रा पर आए एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री से वाजपेयी को मिलवाते हुए कहा था, “इनसे मिलिए, ये विपक्ष के उभरते हुए युवा नेता हैं।
हमेशा मेरी आलोचना करते हैं लेकिन इनमें भविष्य की बहुत संभावनाएं हैं।” ध्यान दीजिएगा इन दोनों क़िस्सों में दो राजनीतिक विरोधी हैं, लेकिन किसी के शब्द ओछे नहीं हैं। शब्दों से मान होता है और शब्दों का मान होता है। रमेश बिधूड़ी और उदयभान को समझने की ज़रूरत है कि आपके शब्द किसी और का नहीं, आपका ही अपमान कर रहे हैं। राजनीति में शिष्टाचार ज़रूरी है, याद रखिए आपकी बदज़ुबानी गर्त में पहुंचाती है।
भारत की लोकतांत्रिक और संसदीय परंपरा के कई ऐसे उदाहरण हैं जब संसद के अंदर और बाहर शब्दों का संसार रचा गया। ‘गीता की गूंज और गुलाब की गंध’ में लिपटी आलोचना, शेरो शायरी के साथ वार पलटवार, सब कुछ तो देखा है हमने। पंद्रहवीं लोकसभा के दौरान UPA का शासन था, सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस थी और विपक्ष में भारतीय जनता पार्टी के आरोपों का दौर था। भाजपा और कांग्रेस के बीच अक्सर वाकयुद्ध होता रहता था। ये उसी दौर की बात है जब सुषमा स्वराज और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच शेरो-शायरी का दौर चला।
संसद में एक बहस के दौरान मनमोहन सिंह ने भाजपा पर निशाना साधते हुए मिर्ज़ा ग़ालिब का मशहूर शेर पढ़ा, “हम को उनसे वफ़ा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।” इसके जवाब में सुषमा स्वराज ने कहा कि अगर शेर का जवाब दूसरे शेर से नहीं दिया जाए तो ऋण बाक़ी रह जाएगा। इसके बाद उन्होंने बशीर बद्र की मशहूर रचना पढ़ी, “कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।” सुषमा यहीं नहीं रुकीं, एक और शायराना हमला करते हुए कहा, “तुम्हें वफा याद नहीं, हमें जफ़ा याद नहीं, ज़िंदगी और मौत के दो ही तराने हैं, एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं।”
भारत का मज़बूत लोकतंत्र नई संसद में प्रवेश कर चुका है। वक़्त का तक़ाज़ा है कि भारतीय राजनीति में शिष्टाचार की याद दिलाई जाए। 21 अगस्त 1963 को लोकसभा में अपने भाषण में राममनोहर लोहिया ने कांग्रेस सरकार पर जमकर हमला बोला। लोहिया ने कहा कि देश की 60 प्रतिशत आबादी हर दिन 3 आना प्रतिदिन पर जीवन यापन कर रही है और प्रधानमंत्री के कुत्ते पर हर दिन 3 रुपये खर्च हो रहा है। बहस हुई, पक्ष-विपक्ष ने हिस्सा लिया, लेकिन गालीगलौज या बदज़ुबानी नहीं थी। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर देश के उन नेताओं में गिने जाते हैं, जिनकी पहचान स्पष्ट बात कहने के लिए रही। उनके संसद में कई ऐसे भाषण हैं, जिनमें उन्होंने बहुत साफगोई से कई मुद्दों पर बात रखी।
करगिल युद्ध के बाद संसद सत्र हुआ। चंद्रशेखर ने कहा, “आज भारत और पाकिस्तान बराबर हैं क्योंकि दोनों के पास परमाणु ताक़त है। अब लड़ाई की बात बंद होनी चाहिए।” चंद्रशेखर उन नेताओं में रहे हैं जिनके बयान में ठसक रही है। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ युद्ध जीतने के बाद संसद में चंद्रशेखर का खड़े होकर वाजपेयी से कहना कि “प्रधानमंत्री जी, आप हमसें लड़ लें, पाकिस्तान से ना लड़ें”, उनका जिगरा ही दिखाता है। रमेश बिधूड़ी और उदयभान जैसों को समझने की ज़रूरत है कि मानवता आज खिन्न है, उसका पुजारी सो गया। शांति आज अशांत है, उसका रक्षक चला गया। भाषा आज उदास है, क्योंकि शब्दों और तथ्यों से दिवालिया नेता उसका स्तर गिरा रहे हैं।
रमेश बिधूड़ी ने दानिश अली नहीं, नई संसद का अपमान किया है। उदयभान ने प्रधानमंत्री नहीं, 140 करोड़ हिंदुस्तानियों का निरादर किया है। विवेक का इस्तेमाल करेंगे तो शब्दों पर ख़ुद सेंसरशिप लगाएंगे। अभिव्यक्ति की आज़ादी का मतलब ये नहीं कि नेता बदज़ुबानी करने लगें। बेलगाम नेता पार्टी के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को संयम और अनुशासन बरतने का संदेश नहीं दे सकते।
सरकार की नीतियों की आलोचना करना स्वस्थ लोकतंत्र की परंपरा और ज़रूरत है, लेकिन व्यक्तिगत आक्षेप लगा कर राजनीति को गंदा किया जाए, तो आम लोगों से जुड़े मुद्दे हाशिए पर चले जाएंगे। ज़ुबान से निकली बात उस तीर की तरह है, जिसे वापस नहीं लिया जा सकता। असंसदीय छींटाकशी और प्रतिद्वंदियों के प्रति अपमानजनक टिप्पणियों से राजनीति का स्तर गिरता है। कंटीली भाषा सिर्फ भारतीय राजनीति में हो, ऐसा नहीं है।
ब्रिटिश नेताओं में सबसे विवादित भाषा विंस्टन चर्चिल की मानी जाती थी। उनकी एक राजनीतिक विरोधी ने संसद में कहा था कि “प्रधानमंत्री महोदय, अगर मैं आपकी पत्नी होती तो किसी सुबह आपकी कॉफी में ज़हर मिला देती।” ख़ैर भारत की ओर लौटते हैं जिसकी संस्कृति में मीठी ज़ुबान और उच्च स्तर की भाषा है। मेरा मानना है कि राजनीतिक दल कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दें, जिसकी परिपाटी बंद हो चुकी है।
हर नेता शार्टकट की तलाश में है, जिसका नतीजा बदजुबानी है। संसद में चंद्रशेखर के कहे अल्फ़ाज़ याद कीजिए, “ग़ैर मुमकिन है कि हालात की गुत्थी सुलझे, अहले दानिश ने बहुत सोच के उलझाया है।” बदतमीज़ ज़ुबान वाले नेता सावधान रहें, क्योंकि जनता के पास आपका बही खाता है, वो कभी भी कह सकती है, “लहजे में बदज़ुबानी, चेहरे पे नक़ाब लिए फिरते हैं। जिनके ख़ुद के बही खाते बिगड़े हैं, वो मेरा हिसाब लिए फिरते हैं”।
(लेखक राशिद हाशमी इंडिया न्यूज़ चैनल में कार्यकारी संपादक हैं)
India News (इंडिया न्यूज़),UP By-Election: उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव…
India News (इंडिया न्यूज), Maharana Pratap Death Anniversary: आगामी 19 जनवरी को पटना के मिलर…
Benjamin Netanyahu Gaza Visit: इजरायल और हमास के बीच शांति की कोई उम्मीद नजर नहीं…
India News (इंडिया न्यूज),Delhi Assembly Winter Session News: दिल्ली विधानसभा के शीतकालीन सत्र में प्रश्नकाल…
India News (इंडिया न्यूज), Munger Murder: बिहार के मुंगेर जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के…
Muslim Couple Nikah in Temple: दिल्ली से सटे गाजियाबाद के गोविंदपुरी इलाके में एक मंदिर…